गुफ्तगु के लिए लोग आते रहे …. उनकी कहानी रोज बदलती रही….

शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )      

छग की कुल 90 विधानसभा सीटों में 29आदिवासियों के लिए सुरक्षित हैं और उसमे से 11सीटें बस्तर से आती हैं, इसलिए यह कहा जाए कि छत्तीसगढ़ की सत्ता की चाबी बस्तर से आती है तो गलत नही है….! वर्तमान में सभी विस पर कांग्रेस का कब्जा है। छग में भाजपा 15 सालों तक सत्तासीन रही तो बस्तर की आदिवासी सीटों का बड़ा हिस्सा रहा… इसलिए भाजपा बस्तर में चिंतन शिविर करके वहां सक्रिय हो चुकी है तो कांग्रेस वहां राहुल गांधी को लाने प्रयासरत है, वैसे बस्तर को भूपेश सरकार , आदिवासी मंत्री कवासी लखमा को एक तरह से बस्तर को सौंप चुकी है…! इतिहास बताता है कि बस्तर में पहले दमदार कांग्रेस, भाजपा ( जनसंघ) के नेता रह चुके हैं।आदिवासी अंचल बस्तर में बलीराम कश्यप, महेन्द्र कर्मा, मनकूराम सोढ़ी तथा अरविंद नेताम परिवार राजनीति जगत में ऊंचाइयों पर था पर फिलहाल स्व. बलीराम कश्यप का परिवार राजनीति में सबसे अधिक सक्रिय है, महेन्द्र कर्मा की पत्नी विधायक है तो मनकूराम सोढ़ी तथा अरविंद नेताम का परिवार राजनीति में अलग-थलग हो गया है।                 
बलीराम कश्यप बस्तर में लोकसभा सदस्य बनते रहे तो अविभाजित म.प्र. में विधायक भी बनते रहे। 1977-80 की जनता सरकार में राज्यमंत्री रहे तो 90-92 में कबीना मंत्री रहे। वहीं उनके निधन के पश्चात उनके पुत्र दिनेश कश्यप लगातार लोस सदस्य बनते आ रहे थे वहीं छोटा बेटा केदार कश्यप डॉ. रमन सिंह सरकार में लगातार मंत्री बनता रहा था।                  
स्व. महेन्द्र कर्मा भाकपा और कांग्रेस की टिकट पर विधायक बनते रहे तो 96-98 में लोकसभा सदस्य भी रहे वहीं अविभाजित म.प्र. सहित छग की सरकार में मंत्री रहे तो छग में नेता प्रतिपक्ष भी रहे। वर्तमान में उनकी पत्नी देवती कर्मा विधायक है वहीं बेटे भी राजनीतिक मुकाम हासिल करने प्रयासरत है।
वहीं कभी बस्तर में कांग्रेस की रीढ़ रहे मनकूराम सोढ़ी तथा उनका परिवार भी राजनीति से दूर होता जा रहा है। 1962 में बतौर निर्दलीय विधायक बनने वाले मनकूराम सोढ़ी अविभाजित म.प्र. में कई बार विधायक बने तथा बाद में लगातार कांग्रेस की टिकट पर सांसद भी बनते रहे। उनके पुत्र शंकर सोढ़ी भी विधायक रहे। अविभाजित म.प्र. तथा छग सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल रहे पर आजकल पिता-पुत्र नेपथ्य में है।
अरविंद नेताम बस्तर के एकमात्र ऐसे आदिवासी नेता थे जिन्हें केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था। कांकेर लोकसभा से कांग्रेस की टिकट पर 1971, 80, 84, 89, 91 में चुने जाते रहे तथा केन्द्रीय मंत्रिमंडल में भी शामिल रहे। हवाला में नाम आने पर इनके स्थान पर इनकी पत्नी छबीला नेताम को प्रत्याशी बनाया गया और वे जीतकर सांसद बनी। बाद में कांग्रेस से नाता तोड़कर वे बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गये बाद में भाजपा, कांग्रेस की उनकी यात्रा चलती रही फिर वे पीए संगमा की पार्टी में शामिल हो गये उनकी पुत्री डॉ. प्रीति नेताम भी कांग्रेस की टिकट पर विधानसभा चुनाव में पराजित हो गई। वहीं एक भाई शिव नेताम भी सक्रिय राजनीति में रहे पर आजकल इनका परिवार भी राजनीति से काफी दूर है।

फांसी की सजा और निब तोड़ने
की परंपरा…      

हमेशा देखा गया है कि न्यायाधीश मौत की सजा सुनाने के बाद इस्‍तेमाल किए गए कलम की निब की नोक तोड़ देते हैं। ऐसा ब्रिटिश काल से चला आ रहा है जिसको भारत आज भी फॉलो कर रहा हैं। आखिर इसके पीछे की वजह क्‍या हैं। दरअसल ऐसा करने की कई वजह है ।मौत की सजा सुनाने के बाद जज द्वारा कलम तोड़ने के पीछे एक नहीं बल्‍कि कई वजह हैं। निब तोड़ना एक सिम्‍बॉलिक कार्य है। इससे ये दर्शाया जाता है कि जिस कलम का इस्‍तेमाल करके व्‍यक्‍ति से जीने का हक छीन लिया गया हो वो कलम का इस्‍तेमाल दोबारा ना हो। किसी अपराधी को मौत की सजा बहुत ही ज्‍यादा संगीन कार्य के लिए दी जाती हैं और तब ही दी जाती है जब कोई दूसरा विकल्‍प ना बचा हो।
जज निर्णय के समय इस्‍तेमाल किए गए पेन की निब इसलिए भी तोड़ते है क्‍योंकि ऐसा कर के वो अपने आप को इस अपराध से मुक्‍त करते है… कि उन्‍होंने किसी की जिंदगी को खत्‍म कर दिया। ये एक रिवाज है जो वो फॉलो करते हैं।
एक जज के पास यह अधिकार नहीं होता की उसके द्वारा लिखा और हस्‍ताक्षर किया हुआ निर्णय वो रद्द कर सके। ये निब इसलिए भी तोड़ दी जाती है ताकि एक बार निर्णय देने के बाद जज अपने फैसले पर दोबारा विचार ना करे….।
एक पुरानी कहावत कही गई है कि मौत की सजा बहुत ही दुखद सजा होती है, पर कभी-कभी इसे देना जरूरी हो जाता है और कलम की नोक तोड़कर इस दुख को व्‍यक्‍त किया जाता है।

नवें जिले के पुलिस अधीक्षक….    

छग कोटे के आईपीएस बद्री नारायण मीणा का छग में पुलिस अधीक्षक बनने का रिकार्ड बन गया है, हाल ही में उन्होंने दुर्ग में पुलिस अधीक्षक का कार्यभार संभाला है और नवें जिले की कप्तानी संभाली है , वे छग में रायपुर के भी कप्तान रह चुके हैं ।बलरामपुर, कवर्धा,राजनादगांव, जगदलपुर, कोरबा,बिलासपुर, रायपुर, रायगढ़ में पुलिस अधीक्षक रह चुके हैं तो जांजगीर में भी कार्यवाहक अधीक्षक रह चुके हैं। वैसे जनवरी 23में वे आईजी पदोन्नत के हकदार होने वाले हैं।

पत्रकार परिवार और संवाद
में पदस्थापना….  

छग में पत्रकार परिवार के सौमिल चौबे की जनसंपर्क विभाग से संबंधित महत्वपूर्ण संवाद में ए सीईओ के पद पर नियुक्ति की गई है, यहां यह बताना जरूरी है कि इनके दादा डी पी चौबे , बिलासपुर टाइम्स के प्रधान संपादक तथा मलिक रह चुके हैं तो शहीद पिता विनोद चौबे (एसपी राजनादगांव) भी पुलिस में आने के पहले इसी प्रेस में संपादकीय तथा ने अन्य काम सम्हाल चुके हैं। वैसे जनसंपर्क में मनीष मिश्रा( पुत्र बबन प्रसाद मिश्र) संजय नैयर (पुत्र रमेश नैयर) भी सेवा दे चुके हैं।

और अब बस..
0आईपीएस अजय यादव सरगुजा के प्रभारी आईजी बन गए हैं वहीं उनसे सीनियर ओपी पाल अभी भी डीआईजी का कार्यभार ही सम्हाल रहे हैं….!
0एक जिले में नए पुलिस अधीक्षक के कार्यभार संभालने के बाद नीचे के अफसर क्यों वहां रहना नही चाह रहे हैं….
0भाजपा के वर्तमान विधायकों में आधे से अधिक की अगले चुनाव में टिकट कटेगी…! यह चर्चा अभी से हो रही है।                                                                                                     0 प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी 71साल के हो गए हैं… क्या 70 साल में मार्गदर्शक मंडल में शमिल होने का उनका फार्मूला वे ख़ुद पर भी लागू करेंगे….?

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