{किश्त91}
पहाड़ी मैना की प्रजाति अब विलुप्ति के कगार पर है।उसकी मानवध्वनि की असाधारण,अनुकरणीय क्षमता ही उसकी सबसे बड़ी शत्रु सिद्ध हुई।बस्तर के जंगलों में जो सारिका, पहाड़ी मैना पाई जाती है उसकी नकल सुनकर ही बड़े-बड़े ध्वनि विशेषज्ञ भी चकरा जाते हैं।भारत में तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जब बस्तर के दौरे पर आईं थीं,वे ओरछा,नारायणपुर क्षेत्र भी गई थीं।यह वही क्षेत्र है,आजकल नक्सल वादी उथल-पुथल के लिए छाया रहता है।किंवदंती है कि इंदिरा,नारायणपुर के विश्रामगृह में अपनी ही आवाज सुनी तो कौतूहल से भर गईं कि यहां मेरी आवाज में बोलने वाला कौन है…?उनके सामने पिंजरबद्ध बस्तरिया मैना प्रस्तुत की गई।इंदिरा को विश्वास नहीं हुआ।वहां के वन अधिकारियों ने उन्हें पहाड़ी मैना की मानवध्वनि अनुकरण,विलक्षणता के बारे में बताया, उन्हें विश्वास नहीं हुआ।उन्होंने मैना से स्वयं बातचीत भी की।मैना संवादों को ज्यों का त्यों, आरोह-अवरोह और बलाघात में दुहरा रही थी।इंदिराजी ने जानना चाहा, इसे पहाड़ी मैना क्यों कहते हैं ?क्योंकि ये पहाड़ों में ही रहती हैं,केवल बस्तर के पहाड़ों में क्या कोई मैदानी मैना भी होती है…?बहर हाल प्रयासों के बाद भी इस प्रजाति की वंश वृद्धि करने में अभी सफलता नहीं मिली है।
वंश वृद्धि का
प्रयास असफल….
छत्तीसगढ़ की राजकीय पक्षी,पहाड़ी मैना के वंश वृद्धि के लिये करीब 23 सालों से प्रयास के बाद भी सफलता शून्य ही रही है। जिला जगदलपुर में स्थित वन विद्यालय ब्रीडिंग सेंटर में प्रजनन और संवर्धन के लिए लाई गई आख़री मैना ने दम तोड़ दिया है।बताना जरुरी है कि इस केंद्र मेंअब तक 8 पक्षियों की मौत हो चुकी है,वन विद्यालय ब्रीडिंग सेंटर में राजकीय पक्षी मैना को संवर्धन के लिए रखा गया था।कुल 8 पक्षियां थीं। दो दशकों से एक-एक कर सभी पक्षियों ने दम तोड़ दिया।इससे पहले रितू नाम की मैना, फिर हाल ही में सोनू नाम की मैना की मौत हो गई। मोनू (मैना) को एक छोटे पिंजरे में रखा गया था और उसका इलाज किया जा रहा था।गौरतलब है कि इसी साल यहां पल रहे सभी पक्षियों को आजाद करने का फैसला लिया गया था। इंतजार था तो बस वन मुख्यालय की अनुमति का।लेकिन उससे पहले ही इस सेंटर में पल रही आखरी मैना ने भी दम तोड़ दिया। इसके बाद यह सेंटर सूना पड़ गया है।