छ्ग में चर्चित है एक स्वामिभक्त कुत्ते का प्राचीन मंदिर…

{किश्त111}

छत्तीसगढ़ के बालोद जिले (पहले दुर्ग जिला) में है एक अनोखा मंदिर.. बालोद जिला मुख्यालय से महज 6 किलोमीटर खपरी गांव में स्थित इस प्राचीन मंदिर को कुकुरदेव मंदिर के नाम से जाना जाता है।यह मंदिर किसी देवता को नहीं बल्कि कुत्ते को भी समर्पित है।खपरी गांव में 200 सालों से “कुकुरदेव” नाम का एक प्राचीन मंदिर है।हालांकि यहां शिवलिंग सहित अन्य मूर्तियां भी हैं। माना जाता है कि यहां जाने से खांसी,कुत्ते के काटने का खतरा नहीं रहता है।मंदिर का इतिहास काफ़ी प्राचीन है… इस मंदिर का निर्माण फणी नागवंशी शासकों ने 14वीं-15वीं शताब्दी में करवाया था। मंदिर के गर्भ गृह में एक कुत्ते की मूर्ति स्थापित है,उसके बगल में एक शिवलिंग है। कुकुरदेव मंदिर 200 मीटर के दायरे में फैला हुआ है। मंदिर के प्रवेश द्वार के दोनों ओर कुत्ते की मूर्ति स्थापित है।शिव के साथ-साथ लोग कुत्ते (कुकुरदेव) की भी उसी तरह पूजा करते हैं जैसे सामान्य शिव मंदिरों में नंदी की पूजा की जाती है। मंदिर के गुंबद के चारोंतरफ सांपों के चित्र हैं। चारों ओर इसी काल के शिलालेख भी लगे हैं लेकिन स्पष्ट नहीं हैं। इन पर बंजारे,चांद-सूरज और तारों की बस्ती की आकृति बनी है।श्रीराम, लक्ष्मण और शत्रुघ्न की मूर्तियां भी रखी गई हैं। इसके अलावा मंदिर में पत्थर से बनी दो फुट की गणेश प्रतिमा भी स्थापित है। लोककथाओं की मानें तो यहां कभी बंजारों की बस्ती थी।मालीघोरी नाम के एक बंजारे के पास एक पालतू कुत्ता था।सूखे के कारण बंजारे को कुत्ते को साहूकार के पास गिरवी रखना पड़ा,इसी बीच साहूकार के घर में चोरी हो गई। कुत्ते ने देखा कि चोर साहूकार के घर से चुराया हुआ सामान पास के एक तालाब में छिपा रहे हैं,सुबह कुत्ते ने चोरी का सामान जहां छिपाया गया था,वहीं साहूकार को ले गया और साहूकार को भी चोरी का सामान मिल गया।उसे कुत्ते की वफादारी का एहसास हुआ,उसने कागज के एक टुकड़े पर सारी जानकारी लिख दी, उसे उसके गले में बांध दिया, और उसेअसली मालिक के पास जाने के लिए स्वतंत्र कर दिया। कुत्ते को साहूकार के घर से वापस आते देख बंजारे ने समझा कि कुत्ता वहाँ से भागकर आ गया है और उसने गुस्से में कुत्ते को डंडे से पीट कर मार डाला, मृत्यु के बाद कुत्ते के गले में बंधे पत्र को देखने के बाद उसे गलती का एहसास होता है और बंजारे अपने प्रिय,एक समर्पित कुत्ते की याद में मंदिर परिसर में ही एक समाधि बनवाता है। बाद में किसी ने कुत्ते की मूर्ति भी स्थापित वहां कर दी।आज यह स्थान कुकुरदेव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।कहा जाता है कि कुकुरदेव मंदिर 200 मीटर के दायरे में है। मंदिर के प्रवेशद्वार के दोनों तरफ कुत्तों की प्रतिमा हैं। यहां आनेवाले लोगभगवान शिव के साथ कुकुरदेव की भी पूजा करते हैं क्योंकि सामान्य शिव मंदिरों में नंदी की पूजा की जाती है।मंदिर के गुंबद के चारों तरफसांपों के चित्र हैं। तो पूरे परिसर में एक ही समय के शिला लेख भी लगे हैं, देखने पर ऐसा लगता है जैसे इस पर बंजारे चाँद,सूरज,तारों की आकृति बन गई हो।माली धोरी गांव, बंजरा मालीधोरी नामक मंदिर के सामने सड़क पार से शुरू होता है। इस मंदिर में ऐसे लोग भी आते हैं, जिन्हें कुत्ते ने काट लिया हो।हालांकि किसी का इलाज नहीं होता है, लेकिन माना जाता है कि यहां आने से व्यक्ति ठीक हो जाता है। कुकुरदेव मंदिर का बोर्ड देखकर लोग कौतूहलवश यहां आते हैं।

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