{किश्त 179}
छत्तीसगढ़ में विभिन्न क्षेत्रों में ऋषि-मुनियों के आश्रम, तपोस्थली रहे हैं। सरगुजा से लेकर बस्तर तक राम के वनवास के समय के अनेक स्थलों का विवरण मिलता है। विभिन्न स्रोतों से मिली जानकारी के अनुसार रामा यण के पूर्ववर्ती और परा वर्ती ऋषि-मुनि इस क्षेत्र में रहे, महरकंडा, शरभंग, अत्रि,वाल्मिकी,अंगिराअगस्त्य आदि ऋषि मुनियों का यह क्षेत्र रहा है। 0महरकंडा ऋषि- अंबिकापुर से बना रस रोड पर महानदी के तट पर प्राचीन गुफा है।अंदर से देखने पर ओम की आकृति की बनी हुई दिखाई देती है ।जनश्रुति के अनुसार इसी गुफा में महर्षि महरकंडा तप-साधना करते थे,पास ही उनका एक आश्रम भी था।जहाँ वनवास के दौरान श्रीराम, सीता और लक्ष्मण उनसे भेंट करने आए थे। 0जमदग्निआश्रम- सूरजपुर तहसील में देवगढ़ नामक स्थान है,जो अंबिकापुर से लगभग 38 किमी दूर रेड नदी के तट पर स्थित है।यह ऋर्षि जमदग्नि आश्रममाना जाता है।रामायण काल में इसी जगह पर जमदग्नि का आश्रम था। भगवान परशु राम के पिता उनकी माता रेणुका थीँ। कहते हैं कि ‘रेणुका’ रेण नदी के नाम से यहाँ पर बहती हैं। वनवास के दौरान इस क्षेत्र में राम गये थे। 0मतंगऋषि- रामा यणकाल में महर्षि मतंग का आश्रम शिवरीनारायण के पास स्थित था। कुछ लोग मतरेंगा नामक स्थल को मतंग ऋषि का आश्रम स्थल मानते हैं।रामायण काल में मतंग की शिष्या शबरी से श्रीराम की भेंट हुई थी।जो आश्रम की रक्षा करती थीँ। उनके गुरु मतंग ने श्रीराम से उनकी भेंट की भविष्यवाणी भी पहले ही कर दी थी। 0शरभंग मुनि– किवदंती के अनुसार मैन पाट के मछली प्वाइंट के पास सरभंजा ग्राम है।वहीं शरभंग मुनि का आश्रम था।वनवास के दौरान राम पहले बंदर कोट से केसरी वन पहुँचे और उसके बाद सूतीक्ष्ण मुनि के साथ ही महर्षि दंतोली के पास गये। वहां से सभी महर्षि शरभंग मुनि के आश्रम में मुलाकात की। 0मंडूक ऋषि–बिलास पुर के पास मदकूद्वीप को मंडूकऋषि का आश्रमस्थल मानते हैं।उत्खनन के बाद यहां कुछ मंदिरों के भग्नाव शेष प्राप्त हुये हैं। मान्यता है कि यहीं वे तप-साधना भी करते थे। 0वाल्मीकि आश्रम- बारनवापारा वन, तुरतुरिया के पास उनका आश्रम था।जहाँ पर लव और कुश का जन्म हुआ था। बेग्लर और कनिंघम ने भी सर्वे रिपोर्ट में तुरतुरिया ग्राम में ही वाल्मीकि आश्रम होने को मान्यता दी थी। 0 अत्रि ऋषि-ऋग्वेद केपांचवें मंडल के ऋषि,अत्रि को माना जाता है।किवदंतियों के अनुसार पांडुका के पास अतरमरा में उनकाआश्रम था। 0लोमस ऋषि -शरीर पर अत्यधिक रोम होने के कारण इस ऋषि का नाम लोमस पड़ा था।रामायण काल में दक्षिण यात्रा में श्रीराम से लोमस ऋषि की भेंट हुई।लोमस संहिता,लो मस रामायण आदि ग्रंथ के रचयिता महर्षि थे।दक्षिण कोसल में राजिम के पास महानदी के तट पर उनका आश्रम हुआ करता था। 0 श्रृंगी ऋषि-इनका आश्रम सिहावा के पास पहाड़ी पर था।इसके अलावा सिहावा के गिरिकंदराओं में ऋषियों के आश्रम थे। श्रृंगी ऋषि श्रीराम की बहन शांता के पति थे, उन्होंने अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्रेष्टि यज्ञ संपन्न कराया था। किवदंती है कि उनके कमंडल से एक समय जल गिर गया था।जो दक्षिण की ओर बहने लगा, उसे उन्होंने उत्तर की ओर बहने का आदेश दिया। तब यहाँ से कुछ दूर जाने पर महानदी दक्षिण की ओर जाते हुए उत्तर की ओर बहने लगी थी। 0अंगिरा ऋषि-ऋग्वेद के अनुसार अग्नि की खोज इसी ऋषि ने किया था,महर्षि वृहस्पति के पुत्र थे। इनका आश्रम भी इसी क्षेत्र में था। 0ऋषि कंक- धमतरी के गंगरेल बांध के पास ही देवखूंट ग्राम था। यहाँ मंदिरों का एक समूह था। पर जब गंगरेल बांध बना तो क्षेत्र बांध के पानी में डूब गया। यहीं देवखूंट में ऋषि कंक का आश्रम था। इनका एक आश्रम कांकेर में भी था। माना जाता है कि कांकेर का नाम इसी ऋषि कंक के नाम पर ही पड़ा। 0महर्षि अगस्त्य- इन्हें मंत्रदृष्टा भी कहा जाता है।इनका विवाह विदर्भ की राजकुमारी लोपा मुद्रा से हुआ था।कहा जाता है कि मंत्रशक्ति के प्रभाव से उन्होंने एक बार समुद्र को भी पी लिया था। 0गौतम ऋषि-न्याय शास्त्र के रच यिता गौतम का आश्रम भी था। राम ने यात्रा के दौरान विश्वामित्र की आज्ञा से ही ऋषि की पत्नी अहिल्याका उद्धार भी किया था। 0 अखंड ऋषि- लाटामारी के पास अखंड ऋषि का आश्रम था। 0माण्डकर्णी ऋषि-मांडु कर्णी नदी के तट पर एक आश्रम हुआ करता था।नदी की धारा यहाँ पर 5 शाखा ओं में बंटकर गिरती है।