कबीर पंथियों का तीर्थ स्थल दामाखेड़ा..

{ किश्त 104}

कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे,वह हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग के प्रवर्तक थे।निर्गुट विचारधारा को मानते थे, उनकी रचनाओं का काफी असर पड़ा।कबीर के शिष्यों ने फिर उनकी विचारधारा पर एक पंथ की शुरुआत की,जिसे कबीरपंथ कहा जाता है।माना जाता है कि देशभर में करीब एक करोड़ लोग इस पंथ से जुड़े हुए हैं, हालांकि ये पंथ अब कई धाराओं में बंट चुका है।संत कबीर ने अपने विचारों को फैलाने का जिम्मा चार प्रमुख शिष्यों को दिया,ये चारों शिष्य ‘चतुर्भुज’, ‘बंकेजी’, ‘सहतेजी’ और ‘धर्मदास’ थे,जो देश भर में चारों ओर गये,ताकि कबीर की बातों को फैलाकर ही अलग तरह का समाज बनाया जा सके ,हालांकि उनके पहले तीन शिष्यों के बारे में कोई बहुत ज्यादा विवरण नहीं मिलती है हां, चौथे शिष्य धर्मदास ने कबीर पंथ की ‘धर्मदासी’ या ‘छत्तीसगढ़ी’ शाखा की स्थापना की थी,जो इस समय देश भर में सबसे मजबूत कबीरपंथी शाखा भी है।यह भी माना जाता है कबीर के शिष्य धर्मदास ने उनके निधन के लगभग सौ साल बाद इस पंथ की शुरु आत की थी,रायपुर के ही समीप कबीर पंथियों का तीर्थ स्थल है।देश-दुनिया से श्रद्धालु दर्शन के लिएआते हैं,बिलासपुर सड़क मार्ग पर सिगमा से 10 किमी की दूरी पर एक छोटा सा ग्राम है।कबीरपंथियों के आस्था का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है। संत के सत्य,ज्ञान मानवतावादी सिंद्धांतों पर आधारित दामाखेड़ा में कबीरमठ की स्थापना 19 03 में कबीरपंथ के 12वें गुरु अग्रनाम साहेब ने दश हरा के शुभ अवसर पर की थी।दामाखेड़ा,कबीरपंथियों के तीर्थ स्थल के रूप में प्रसिद्ध है।मप्र के उमरिया जिले के बांधवगढ़ निवासी संत धर्मदास, कबीर साहब के प्रमुख शिष्य थे।जिन्हें कबीर साहब ने संपूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान दिया, द्वितीय पुत्र मुक्तामणि नाम साहब को 42 पीढ़ी तक कबीरपंथ का प्रचार प्रसार करने का आशीर्वाद प्रदान किया। मुक्तामणि नाम साहब कबीरपंथ के प्रथम वंशगुरु कहलाए, छग के ग्राम कुटुमाल,जिला कोरबा को कबीर पंथ के प्रचार प्रसार के लिए कार्य क्षेत्र बनाया।

दामाखेड़ा में है कबीर
आश्रम,समाधि मंदिर

छत्तीसगढ़ में कई स्थानों पर कबीर आश्रम हैं।पर दामाखेड़ा,कबीर आश्रम बेहद पवित्र और प्रमुख माना जाता है। इसी आश्रम से सभी आश्रमों की गति विधियां संचालित होती हैं। कबीरपंथ में चौका,आरती का बहुत महत्व है। यह गुरु पूजा विधान है। चौका- आरती भारत की प्राचीन परंपरा है।गतिविधियां आश्रम से संचालित होती हैं।वहीं समाधि मंदिर में कबीर साहब की जीवनी को बड़े ही मनमोहक एवं कलात्मक ढंग से दीवारों में नक्काशी कर उकेरा गया है,कबीर साहब के प्रगट स्थल की जीवंत झांकी यहां पर श्रद्धालु देखने के लिए देश-दुनिया से लोग आते हैं।समाधि मंदिर के मध्य में वंशगुरु उग्रनाम एवं गुरु माताओं की समाधियां स्थित हैं,साथ ही यहां पर कबीरपंथ के प्रथम वंशगुरु मुक्तामणि नाम साहब का मंदिर बना हुआ है।जिसके ठीक सामने कबीरपंथ का प्रतीक सफेद ध्वज संग मरमर के चबूतरे पर लहरा रहा है। श्रद्धालु यहां माथा टेकते हैं।पंथ,अनुयायियों की यह तीर्थस्थली विश्व प्रसिद्ध है।

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