नोरोन्हा:मप्र के दो बार सीएस,बस्तर में भी रहे,उनके नाम से 2 गांव भी..

{किश्त60}

रोनाल्ड नोरोन्हा:मुख्य सचिव जो मोपेड पर चलते थे।एक एमबीई और पद्म भूषण पुरस्कार विजेता, मुक्ति के बाद गोवा के पहले नागरिक प्रशासक भी थे और यहां तक ​​कि मध्य भारत में उनके नाम पर दो गांव और एक अकादमी भी है।मप्र कैडर के भारतीय सिविल सेवा(आईसीएस) अधिकारी रोनाल्ड नोरोन्हा, को गोवा में बहुत कमजाना जाता है क्योंकि उनके दादा दादी गोवा से बाहर चले गये थे।मप्र जहां उन्होंने 35 वर्षों तक सेवा की,वहां के लोग आज भी उन्हें प्रेम से याद करते हैं।आरसीवीपी नोरोन्हा गोवा के पहलेमुख्य नागरिक प्रशासक भी थे जब गोवा स्वतंत्र भारत का हिस्सा बना।जनरल कैंडेथ के नेतृत्व वाली टीम में वह एकमात्र गोवावासी थे।गोवा के एकमात्र सिविल सेवक थे,जिनके नाम दो गाँव हैँ,जिनका नाम से बस्तर (बीजापुर)में ‘नरोनापल्ली’ मप्र के भोपाल जिले में ‘नोरोन्हा सांकल’ है।मप्र में प्रशासनिक अकादमी का नाम’आरसीवीपी नरोन्हा प्रशासन अकादमी’ भी रखा गया है।नोरोन्हा को 1946 में एमबीई और1975 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।1941 में अंग्रेजी साहित्य में स्वर्ण पदक विजेता एमीअल्वारेस से शादी की। इस जोड़े के चार बच्चे गैब्रिएल, टेरेंस, अशोक और अंजलि हुए।नोरोन्हा का जन्म 14 मई 1916 को हैदराबाद में एक रेलवे इंजीनियर टेरेंस,एक मेडिकल डॉक्टर मैरी नोरोन्हा के घर हुआ था। 14 साल की उम्र में रोनाल्ड के पिता को खोने के बाद अकेले ही पालन पोषण किया था।वह इकलौता बच्चा था।प्रशंसित वास्तुकार चार्ल्स कोर्रा उनके पहले चचेरे भाई थे।रोनाल्ड की शिक्षा घर पर ही हुई।12 साल की उम्र में सीनियर कैम्ब्रिज परीक्षा उत्तीर्ण की और 17 साल की उम्र में लोयोला कॉलेज सेअंग्रेजी साहित्य मेंस्नातक की उपाधि प्राप्त की।और अध्ययन करने,आईसीएस प्रवेश परीक्षा में बैठने के लिए लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स भेजा गया था।रोनाल्ड 1938 में 22 साल की उम्र में भारतीय उम्मीदवारों की सूची में शीर्ष पर आ गए। उन्होंने मध्य प्रांत और बरार कैडर को चुना।1940 के दशक के अंत में सूखे के दौरान नागपुर में सचिव खाद्य के रूप में अपनी पोस्टिंग के बाद,नोरोन्हा ने बस्तर में जिला कलेक्टर के रूप में फील्ड पोस्टिंग की मांग की।एक वरिष्ठअधिकारी के लिए यह असामान्य था लेकिन जंगल और गाँव में उसके लिए एक अजीब आकर्षण था।अविभाजित बस्तर उस समय देश के सबसे बड़े और सबसे पिछड़े जिलों में से एक था,जहां घने जंगल थे, न सड़कें और न बुनियादी ढांचा था,आदिवासियों का प्रतिशत बहुत अधिक था। कलेक्टर (डीसी) के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान नोरोन्हा ने बस्तर के भीतरी हिस्सों की पैदल यात्रा की, यहां तक ​​कि उन्हें मलेरिया भी हो गया! यह कुनैन की खोज से पहले की बात है।आदिवासियों ने सिनकोना की छाल के अर्क से उन्हे बचाया था।

2 बार सीएस बने…

नरोन्हा 1963-68 और 1972-74 के बीच मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव रहे। वह आज तक मप्र के एक मात्र मुख्य सचिव रहे, जिनका दो कार्यकाल रहा , उन्होंने कभी भी केंद्र में पोस्टिंग स्वीकार नहीं की। एक प्रशासक के रूप में नोरोन्हा को इसलिये अद्वितीय बनाया क्योंकि वे वह सामान्य व्यक्ति के लिए हमेशा उपलब्ध रहते थे। आम के साथ कभी भी गलत व्यवहार नहीं करते थे और गांव के लोगों से प्यार करते थे।यह एक वरिष्ठ अधिकारी में दुर्लभ गुण होते हैं। लोग उनके बारे में कई किस्से सुनाते हैं।किसी ने उनसे कहा कि उन्हें नई सरकारी योजना के तहत एक कार खरीदनी चाहिए जब उनकी मोपेड सड़क पर रुक गई,एक कांस्टेबल ने उनकी मोपेड पर लिफ्ट ले ली,यह नहीं जानते हुए कि वह मुख्य सचिव थे। नोरोन्हा सरकारी कार से नहीं बल्कि अपनी विक्की मोपेड से ऑफिस गए थे! ऐसा करने वाले एकमात्र मुख्य सचिव थे।नोरोन्हा 1974 में रिटायर हुए और उन्हें कैबिनेट,अधिकारी सहयोगियों और कर्मचारी संघों द्वारा गर्मजोशी से विदाई दी गई।सेवानिवृत्ति के बाद नोरोन्हा भोपाल के पास एक छोटे से गाँव में एक कमरे के घर में रहते थे,जहाँ वे खेती करते थे। गाँव के लोग ‘बाबा’ कहते थे,सलाह और प्राथमिक उपचार के लिए उनके पास आते थे।गंभीर स्थिति में वह मरीज को गाड़ी से भोपाल भी ले जाते थे।23 नवंबर,1982 में अपने गांव में गेहूं की बुआई की करते समय तबियत ठीक न होने के बावजूद,उन्हें ज़बरदस्त दिल का दौरा पड़ा। दुर्भाग्य वश,जब तक उन्हें भोपाल के अस्पताल ले जाया गया तब तक वे जीवित नहीं रह सके थे।राजकीय सम्मान में उन्हें अंतिम संस्कार दिया गया,जिसमें सैकड़ों लोग शामिल हुए थे।

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