मुंबई : देश में कोरोना के मरीजों की संख्या तीन लाख के आंकड़े को छूने वाली है। पिछले 24 घंटे में 9 हजार 996 नए मरीज मिले। उधर, महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में हालत हद से ज्यादा बदतर है। मुंबई ने अब कोरोना के पहले मुख्य केंद्र रहे चीन के वुहान को भी पीछे छोड़ दिया है। ‘देश की आर्थिक राजधानी’ में कोरोना संक्रमित मामले 51 हजार के आंकड़े को पार कर चुके हैं। अस्पतालों के मुर्दाघर में लाश रखने की जगह नहीं है।
मृतकों के परिजन अपने रिश्तेदारों का शव नहीं ले जा रहे। उपनगर परेल स्थित किंग एडवर्ड मेमोरियल (केईएम) अस्पताल में 12 अज्ञात शव पिछले तीन हफ्ते से अंतिम संस्कार के इंतजार में हैं। या तो इनके परिजन की पहचान नहीं हो पा रही या फिर घरवाले कोरोना वायरस के संक्रमण के डर से ही अपने नाते-रिश्तेदारों को पहचानने से इनकार कर दे रहे हैं।
मजबूर पत्नी की दर्दभरी दास्तां…
कांदीवली में रहने वाले सुधीर रूपचंद का शव पिछले 23 मई से केईएम अस्पताल के मुर्दाघर में पड़ा है, लेकिन उनकी पत्नी भीमा रूपचंद लगातार अपने 42 वर्षीय पति के क्रियाकर्म से घबरा रही हैं, उन्हें डर है कि वह और उनके दो बच्चे, जिनकी उम्र छह और 10 साल है, वे भी वायरस की चपेट में आ जाएंगे। मूलत: उत्तर प्रदेश का रहने वाला यह परिवार अपने गृह राज्य जाने की योजना बना रहा था, लेकिन 20 मई को सुधीर बुखार से पीड़ित हुए। स्थानीय डॉक्टर को दिखाने के बाद उनकी तबीयत बिगड़ती ही चली गई। सांस लेने में तकलीफ होने लगी और दो दिन बाद केईएम अस्पताल में उनकी मौत हो गई। अब भीमा घर से बाहर निकलने में भी घबराती हैं। उनकी पूरी जिंदगी ही बदल गई। अब पत्नी की अनुमति के बाद अस्पताल प्रबंधन ही सुधीर का अंतिम संस्कार करेगा।
पुलिस की मदद से होगा अंतिम संस्कार…
अब अस्तपाल प्रबंधन ने मजबूरन पुलिस से मदद मांगी है। भोईवाड़ा पुलिस मुद्राघर को खाली करने के लिए इन अज्ञात शवों का अंतिम संस्कार करेगा। अस्पताल में एक बार में सिर्फ 36 शवों को ही सुरक्षित रखा जा सकता है, लेकिन मुंबई में बढ़ते कोरोना के मामले और अज्ञात मृतकों की वजह से स्थिति खराब हो रही है। 2 मई को जारी हुए राज्यपाल के आदेश के मुताबिक मृतकों के परिजन को मौत के 30 मिनट के भीतर ही शव सौंपना होता है। अगर मृतक की पहचान नहीं हो पाती तो 48 घंटे उसे अपने निगरानी में रखने का प्रावधान है। ऐसी जानकारी केईएम अस्पताल के फॉरेंसिंक डिपार्टमेंट के डॉक्टर हरीश पाठक ने दी, लेकिन अज्ञानता कई रिश्तेदारों के पैर पीछे खींच रही है।