विशाल यादव
छत्तीसगढ़ में बस्तर की तस्वीर तेजी से बदल रही है। स्थानीय लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार मुहैया कराने के लिए हरसंभव कदम उठाए गए हैं। बारिश के मौसम में प्रदेश से कट जाने वाले इलाकों को अधोसंरचनात्मक विकास के जरिये जोड़े रखने का भगीरथी प्रयास किया जा रहा है। बस्तर में विकास की नई इबारत लिखी जा रही है। ऐसी ही एक इबारत है दंतेवाड़ा जिले के छिंदनार में इन्द्रावती नदी पर 47 करोड़ रूपए की लागत से बना पुल। इस पुल की लम्बाई 712 मीटर और 8.40 मीटर है। इस पुल के बन जाने से अब ग्रामीणों का रास्ता उफनती इन्द्रावती भी नहीं रोक सकेगी। पुल न होने की वजह बरसात के दिनों में इन्द्रावती नदी के उस पार स्थित कई गांवों का जन-जीवन और आवागमन पूरी तरह थम जाता था, इस पुल के निर्माण से लोगों को बारहमासी आवागमन की सुविधा मिलने लगी है। इस पुल के बन जाने से सबसे ज्यादा सुविधा उन लोगों को हो रही है जो राशन लाने के लिए लंबा और जटिल रास्ता होने की वजह से घर से अपना खाना बांधकर निकलते थे। चिंता रहती थी कि जल्दी घर पहंुच पाएंगे या नहीं…। लेकिन अब नदी पर बने पुल ने सबकुछ आसान कर दिया है। पुल बन जाने से मानो यहां के लोगों को नया जीवन मिल गया हो यहां से गुजने वालों के चेहरों पर इसकी खुशी देखते ही बनती है। गौर हो कि जहां ये पुल बना है वहां से नक्सलियों की मांद का इलाका शुरू हो जाता है। कहते है वो यहां अक्सर अपनी उपस्थित दर्ज कराते हैं और वारदात का अंजाम देते रहते है। छिंदनार के इस पुल को पार करते ही आबुझमाड का हिस्सा लगता है यहां किसी के लिए भी पहंुच जाना आसान नहीं है लेकिन इस पुल को बनाने में जो हिम्मत जवानों और सरकार ने दिखाई है वो अपने आप में तारीफ करने लायक है।
ये पुल अबूझमाड़ को समूचे बस्तर से 365 दिन जोड़े रखेगा। बारिश के मौसम में इंद्रावती नदी में भारी जल प्रवाह के कारण जून से सितंबर के महीनों में यह क्षेत्र पूरी तरह से अलग-थलग रहता था, लेकिन इंद्रावती नदी पर छिंदनार पुल के निर्माण ने स्थानीय लोगों का जीवन सुगम कर दिया है। जब हम इस पल को देखने छिंदनार पहुंचे तो वहां साप्ताहिक बाजार भरा हुआ था। इसी पुल के जरिये महिलाएं, बच्चे और पुरुष बाजार में खरीदी-बिक्री के लिए आ जा रहे थे। चेरपाल, तुमरिगुण्डा, पाहुरनार, कौरगांव के लोग छिंदनार बाजार में पहुंचे हुए थे। चेरपाल की एक आदिवासी महिला ने हमें बताया कि कई वर्षों पहले उसकी डिलीवरी के वक़्त इंद्रावती उफान पर थी। बड़ी मुश्किल से उसे डोंगी में बैठाकर नदी पार करवाकर अस्पताल पहुंचाया गया था। लेकिन अब पुल बन जाने से हमारे गांव की महिलाओं को वो दिक्कत नहीं उठानी पड़ती, जो उसने उठाई थी।
सीएम बघेल ने दी जनता को सौगात
पिछले वर्ष यानि 2022 में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पुल को लोकार्पित कर आम जनता के लिए खोल दिया है। इसका नामकरण ग्राम पंचायत पाहुरनार के पूर्व सरपंच स्वर्गीय पोसेराम कश्यप के नाम पर रखने की घोषणा की गयी है। छिंदनार पुल के निर्माण में शहीद हुए प्रधान आरक्षक स्वर्गीय लक्ष्मीकांत द्विवेदी की शहादत को भी सीएम ने नमन किया था। उल्लेखनीय है कि पुल निर्माण की मांग सबसे पहले उन्होंने ही उठाई थी। जिसके लिए उन्हें व उनके परिवार को नक्सलियों की प्रताड़ना सहनी पड़ी। बाद में नक्सलियों ने पोसेराम की हत्या कर दी थी। बहरहाल छिंदनार पुल को अपनी आंखों से देखना एक दिलचस्प अनुभव था। धुर नक्सल प्रभावित इलाके में विकास के पहिये को घूमते हुए देखना रोमांचित कर देता है। लेकिन सबसे बड़ी बात ये है कि स्थानीय लोग ब्रिज बनने से खुश हैं। उससे भी बढ़कर ये कि स्थानीय लोग जीवन में गति का महत्व समझने लगे हैं।
– क्या कहते हैं यहां के लोग
– छिंदनार जैसे संवेदनशील इलाके में रहने वाले शंभु ठाकुर कहते हैं कि हमारा तो बचपन ही यहां बीता है। यहां जो असुविधाएं और परेशानी हमने देखी वो बहुत दुखी करने वाली रही हैं। बीमार होने पर लोगों को अस्पताल ले जाना परेशानी भरा था। राशन लेने के लिए लोग उस पार से बहुत दिक्कत में आते थे। लेकिन अब सरकार ने जब से पुल बना दिया है यहां से वहां जाने में और वहां से यहां आने वालों को कोई दिक्कत नहीं होती। आसानी से दूसरे गांव तरफ चले जाते हैं।
– छिंदनार से चिरपाल के लिए ये पुल बन जाने बहुत सुविधा हो गई है। यहीं रहने वाले विष्णु का कहना है कि बारिश में राषन तक नहीं मिलता था। चिरपाल से छिंदनार आना होता था तो नाव के सहारे आना होता था जब पानी ज्यादा होता था तो आना ही बंद हो जाता था। उस पार के लोगों को खाने की दिक्कत हो जाती थी। ऐसा कई बार होता था पानी उतरता था तब जाकर वो अपने परिवार के लिए कुछ ले जा पाते थे।
– छिंदनार में रहने वाले राजेंद्र का कहना है कि जब पुल नहीं था और हमे उस पार किसी काम के लिए जाना होता था तो घर से खाना लेकर चलना पडता था। पता नहीं होता था कब लौटना होगा पानी बड गया तो फिर उस पार ही रूकना पडेगा। लेकिन अब ऐसा नहीं है पुल से जल्दी जाकर जल्दी आ जाते हैं। सरकार ने सुविधा दी है वो अच्छी है।
– यहीं रहने वाले बनसिंह का कहना है कि इस पुल की सुविधा मिल जाने से सबसे ज्यादा सुविधा बच्चों को पढाई की हो गई है। वो यहां पढने के लिए आ जाते हैं और आसानी से अपने घर चले जाते हैं। पहले यहां गाडी भी कई दिनों में दिखाई देती थी लेकिन अब गाडियां पुल पर दौडती हैं तो अच्छा लगता है जब किसी को इधर से उधर जाना होता है तो वो गाडी भी ले जाता है। पहले नाव ही सहारा था वो कई बार पानी में बह जाती थी।