काठमांडू : नेपाल के उच्च सदन ने गुरुवार को सर्वसम्मति से एक राष्ट्रीय मानचित्र संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी है। इस नए नक्शे में नेपाल ने भारत के तीन क्षेत्रों को अपना बताया है। पिछले हफ्ते ही इस विधेयक को निचले सदन से मंजूरी मिल गई थी। तब भी सभी 258 सांसदों ने इसे अपना समर्थन दिया था। इससे नई दिल्ली और काठमांडू के रिश्तों तनाव बढ़ सकता है। बिल के समर्थन में 57 वोट जबकि विपक्ष में एक भी वोट नहीं पड़ा।
नए नक्शे में नेपाल ने लिपुलेख, कालापानी और लिंप्युधारा को अपना क्षेत्र बताया है। नेपाल के निचले सदन में मानचित्र के पारित होने पर प्रतिक्रिया देते हुए नई दिल्ली ने कहा था, दावों का यह कृत्रिम इजाफा ऐतिहासिक तथ्य या सबूतों पर आधारित नहीं है और न ही इसका कोई मतलब है। सीमा मुद्दों पर बातचीत करने के लिए यह हमारी मौजूदा समझ का भी उल्लंघन है।’
प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली सरकार ने पिछले महीने इस विवादित नक्शे को प्रकाशित किया था। उनका दावा है कि नेपाल बातचीत के जरिए भारत द्वारा अधिकृत की गई जमीन को वापस ले लेगा। उनके इस कदम से नेपाल और भारत के बीच कूटनीतिक विवाद बढ़ने की आशंका है। यह विवाद उस समय शुरू हुआ था जब काठमांडू ने पिछले महीने नई दिल्ली द्वारा चीनी सीमा पर लिपुलेख तक 80 किलोमीटर की सड़क खोलने का विरोध किया।
नेपाल लिपुलेख पर अपना दावा करता है लेकिन भारत का कहना है कि सड़क पूरी तरह से उसके क्षेत्र में है। नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ग्यावली ने पिछले हफ्ते संसद को बताया कि लिपुलेख की नई सड़क देश की संप्रभुता को कमजोर करती है। नेपाल की सीमा काली नदी के उद्गम स्थल लिंप्युधारा से शुरू होती है। भारत के साथ नेपाल की सीमा का निर्धारण 1816 की सुगौली की संधि द्वारा हुआ था। उन्होंने कहा कि भारत ने 1997 में कालापानी और सुस्ता में सीमाओं को अनसुलझा माना था।