0 शंकर पांडे
अविभाजित मध्यप्रदेश में शामिल छत्तीसगढ़ के प्रमुख शहर रायपुर में 1960/61 में कांग्रेस का राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ था जिसमे पंडित जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, कमलापति त्रिपाठी जैसे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता आए थे। पंडित जवाहर लाल नेहरू राजकुमार कॉलेज में रुके थे तो लाल बहादुर शास्त्री,साइंस कालेज के छात्रावास के वार्डन के सरकारी आवास पर ठहरे थे तो कमलापति त्रिपाठी सहित करीब 70/80 कांग्रेसी छात्रावास में ठहरे थे। (वर्तमान में उमदास मुखर्जी छात्रावास )शारदाचरण तिवारी 1957 से 1962 तक रायपुर विधानसभा से विधायक रहे और ऐसा माना जा रहा है कि उनके कार्यकाल में ही रायपुर में कांग्रेस का राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ था। दरअसल उस समय साइंस कालेज का छात्रावास तब के विधायक शारदाचरण तिवारी ने खाली करवा दिया था। सम्मेलन में क्या तय हुआ था इसकी तो जानकारी नहीं मिल सकी है पर उस समय राजकुमार कॉलेज रायपुर के कार्यक्रम में जवाहर लाल नेहरू ने शिरकत की थी। तब साइंस कॉलेज में शिक्षा ग्रहण कर रहे, छात्रावास में रह रहे वरिष्ठ अधिवक्ता तथा लेखक, चिंतक कनक तिवारी का उस समय का संस्मरण उन्ही की जुबानी….
कोई 62बरस पहले मैं विज्ञान महाविद्यालय रायपुर में छात्र और छात्रावास का प्रीफेक्ट भी था। दशहरा-दीवाली अवकाश में अखिल भारतीय कांग्रेस सम्मेलन के कारण महाविद्यालय का मैदान, छात्रावास और उपलब्ध प्राध्यापक निवास भी आरक्षित कर दिए गए थे। रायपुर के तत्कालीन विधायक शारदाचरण तिवारी की मदद ने मुझे अपने ही छात्रावास में ठहरने वाले अतिथियों के लिए स्वागत सचिव बनवा दिया। छात्रावास में उत्तरप्रदेश एवं अन्य प्रदेशों से आने वाले प्रतिनिधियों के ठहरने का प्रबंध था।जवाहरलाल नेहरू के कारण राष्ट्रीय एकीकरण के नारे का नशा छाया हुआ था। तब चौदह प्रदेशों के प्रतिनिधियों को छात्रावास में ठहरना था, हालांकि एक बड़ा हिस्सा उत्तरप्रदेश के लिए मुकर्रर था। पंडित कमलापति त्रिपाठी आए। एक छोटे कमरे में अपनी खड़ाऊ, पूजापाठ का खटराग तथा आस पास के कमरों में चरण स्पर्श करने वालों की छोटी टीम के साथ ठहर गए।चन्द्रभानु गुप्त बस भरकर प्रतिनिधियों के साथ आए। जानकारी लेने के बाद व्यवस्था को तहस नहस करते समर्थकों को खाली कमरों पर कब्जा जमा लेने का फरमान जारी कर दिया। खुश हुए कि मेरे पूर्वज कानपुर ज़िले के थे। सहसा सामने से एक कार को आता देख सभी चौंक गए। ड्रायवर ने मुझसे मेरे ही छात्रावास के अधीक्षक के बंगले का पता पूछा….चंद्रभानु गुप्त ने बताया कि कार में लाल बहादुर शास्त्री थे। उनके आवास का प्रबन्ध छात्रावास अधीक्षक के बंगले में था।
कनक तिवारी ने बताया कि ऑटोग्राफ की बीमारी ने उन्हें कभी तंग नहीं किया पर न जाने किस कीड़े ने काटा कि दूसरे दिन शास्त्री जी का ऑटोग्राफ लेने उनके पास पहुंच गया। वे तब शायद बिना विभाग के मंत्री थे। वे कॉंग्रेस के सत्र में जाने तैयार होकर अखबार और कागजात पढ़ रहे थे। बाहर आकर अभिवादन के बाद सोफे पर बिठाकर पानी मंगवाया। चाय पीने का आग्रह किया। फिर आने का कारण पूछा।एक केन्द्रीय नेता इतना विनम्र था! मैंने अचकचा कर कहा ‘ऑटोग्राफ‘ चाहता हूं। शास्त्रीजी ने ऊपर से नीचे तक मुझे निहारते सहज स्मित शैली में पूछा कि मैं किस कक्षा का विद्यार्थी हूं। मैं स्नातक कक्षा के अन्तिम वर्ष में गणित तथा भौतिकी का छात्र था। उन्होंने मासूमियत से कहा कि उन्होंने तो उतनी ऊंची शिक्षा ही नहीं पाई है। मुझे लगा ऐसा व्यक्ति राजनीति में इतने बड़े पदों तक कैसे पहुंचा? उनकी विनम्रता फिरकी वाली गेंद थी। उस पर चौका, छक्का लगाने के फेर में अच्छे अच्छे सूरमाओं की गेंदे लपक ली गई थीं। यह मुझे बहुत बाद में मालूम हुआ।शास्त्रीजी कलम खोलकर पूछते हैं कि क्या मैं खादी पहनता हूं? स्पष्ट है मैं खादी नहीं पहनता। पूछते हैं खाना पकाना आता है? उत्तर ‘नहीं‘ में होता है। तैरना आता है‘? उत्तर ज़्यादा आश्वस्त ‘नहीं‘ में होता है। पूजा पाठ करता हूँ? उत्तर फिर ‘नहीं‘ में होता है। सवाल उछलता है ‘क्या गांधी की ‘हिन्द स्वराज्य‘ पढ़ी है? ‘नहीं, नहीं‘ कहता मैं झेंपने लगता हूँ। यह भी बता देता हूं कि धोती पहननी भी नहीं आती। दो वर्ष बाद मुझे वेलेस हैन्गेन की किताब ‘आफ्टर नेहरू‘, हू ‘पढ़कर ही मालूम हुआ कि यह आदमी बरसाती बाढ़ में गंगा पारकर पढ़ने जाता था। मेरे ब्राह्मणत्व को पहली बार किसी कायस्थ ने पराजित किया।धीरे-धीरे लेकिन आश्वस्त मुद्रा में आजादी के आन्दोलन में खादी के अर्थशास्त्र पर प्राथमिक सूत्रों में बात करता है। कहता है कि कॉलेज का विद्यार्थी केवल एक जोड़ा खादी के कपड़े पहनने लगें तो खादी ग्रामोद्योग की काया पलट सकती है। उसे नवयुवकों द्वारा पतलून पहनने पर परहेज़ नहीं है।वह शतरंज का एक सधा हुआ खिलाड़ी लगता है। अपनी गिरफ्त में पाकर कहता है जब तक खादी का एक जोड़ा कपड़ा पहनने का वचन नहीं देता, वह ऑटोग्राफ देना स्थगित रखेगा। समर्पण का कोई विकल्प नहीं है। हारकर मैं उससे मुक्त होता हूं। लेकिन मैं इस आदमी से नहीं हारूंगा।मैं भाषणवीर बन्द कमरे में बुदबुदाने वाले बुजुर्ग से वाक्पटुता में हार गया! यह हठवादी है। वैसा दिखता नहीं है। रेल एक्सीडेन्ट की वजह से मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिए बैठा है। नेहरू की बात नहीं मानी। लेकिन इसकी एक बात मान लेने में क्या बिगड़ता है? एक अदद कुर्ता, पाजामा और एक अदद मैं। तीसरे पहर फिर उनके सामने। मुझे नये कपड़ों में देखकर उनकी सरल बांछें खिल गईं। हस्ताक्षर करते हुए बोले ‘मुझे आपसे ऐसी ही उम्मीद थी।‘ मैं कहता हूं कि वादा करता हूं कि जीवन भर खादी के कपड़े अपने पास रखूंगा, पहनूंगा।वे आज नहीं हैं। खादी जिस दिन पहनता हूँ, उनसे ऑटोग्राफ‘ लेने लगता हूं। वैसे हस्ताक्षर करने के क्षण भर पहले शास्त्रीजी के पास एक फोन आया था। कलम हाथ में रखे वे चिरपरिचित विनम्रता में मना कर रहे हैं। ‘नहीं, नहीं, मैं यहां ठीक हूं। आप पंडितजी को कह दीजिए। मैं वहां बड़े बड़े लोगों के साथ कहां ठहरूंगा।‘ एकाध मिनट बाद फिर फोन की घनघनाती घंटी। फिर वही विनयशीलता, वही दृढ़ उत्तर। सामने वाला पंडित नेहरू का अनुरोध उन तक पहुंचा रहा है। वह अनुरोध तो आदेश था। शास्त्रीजी नेहरूजी को भी विनम्र हठयोग में मनाही कर देते हैं। अच्छा हुआ मैंने उसकी बात मान ली जो नेहरूजी की बात नहीं मानता….।
बहरहाल कांग्रेस का यह सम्मेलन अधिवेशन तो नहीं था क्योंकि 1961 में गुजरात में नीलम संजीव रेड्डी की अध्यक्षता में,1962 में भुवनेश्वर में कॉंग्रेस का अधिवेशन हुआ था। रायपुर में कॉंग्रेस के राष्ट्रीय सम्मेलन की जानकारी भी कई कांग्रेस नेताओं को नहीं है। ( लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं )