{किश्त 15}
बस्तर के झीरमघाटी की घटना नक्सली वारदात थी या यह कोई राजनीति साजिश थी….? इसका खुलासा छ्ग के आम जन,पीड़ित परिवार के सदस्य चाहते हैँ पर क्या यह हो पाएगा…!
25 मई 2013 को बस्तर के सुकमा से कांग्रेस नेता राज्य में सत्ता परिवर्तन यात्रा का शंखनाद करने निकले और सवा सात बजे सुकमा से जगदलपुर मार्ग में दरभा घाटी में नक्सलियों के नरसंहार में 2 दर्जन कांग्रेस के बड़े-छोटे नेता,सुरक्षा कर्मी शहीद हो गये।इस परिवर्तन यात्रा में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर भी सवाल उठाये गये पर अभी भी दोषी कौन है यह अतीत के गर्त में है…?हाँ उस समय वहाँ पदस्थ अफसर तो अभी भी बड़े- बड़े पदों पर हैँ ? उनकी लगातार पदोन्नति भी होती जा रही है….? दिवंगत लोगों के परिवारजनों के लिए तो यह त्रासदी सालती ही रहेगी कि झीरम घाटी हमले को 10 साल पूरे हो चुके हैं पर,अभी भी कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं सहित अन्य लोगों की मौत के मामले में कई खुलासे बाकी हैं..? देश की सबसे बड़ी संस्था एनआईए की तीन साल जांच चली पर घटना से बचकर लौटे लोगों से भी पूछताछ की जरूरत नहीं समझी…! जस्टिस प्रशांत मिश्रा की अध्यक्षता 2013 में घटना के बाद ही गठित जांच आयोग की जांच चलती रही…कॉंग्रेस की सरकार बनने के बाद आयोग ने और समय माँगा था वहीं इस पर निर्णय के पहले ही आनन-फानन में सचिव द्वारा राज्यपाल को अपनी रिपोर्ट सौंप दी गई..भूपेश सरकार ने कुछ और बिंदु जोड़कर दो सदस्यीय आयोग बनाया और उसी के बाद तब के नेता प्रतिपक्ष तथा भाजपा नेता धरम लाल कौशिक उसकी वैधानिकता को लेकर हाईकोर्ट पहुंच गये….।खैर तब विपक्ष में होने पर कांग्रेस ने तो आयोग के सामने तत्कालीन गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे,तत्कालीन सीएम डॉ. रमन सिंह तथा तत्कालीन गृह मंत्री ननकीराम कंवर को गवाही के लिए बुलाने आयोग को आवेदन भी दिया,कांग्रेस का तर्क था कि बाबरी मस्जिद तथा इंदिरा की मृत्यु के बाद सिक्ख दंगों के मामले में तत्कालीन मंत्रियों सहित राज्यपाल की गवाही हो चुकी है तो झीरम जैसे बड़े नक्सली हमले में आयोग ने महत्वपूर्ण लोगों को गवाही के लिए क्यों नहीं बुलाया….? एनआईए की जांच चली,इस एजेन्सी ने जिन्हें आरोपी बनाया उनमें से कई अभी भी कानून के शिकंजे के बाहर हैं।बाद में विधानसभा में कार्यवाहक गृहमंत्री अजय चंद्राकर ने इस मामले में सीबीआई जांच की घोषणा की थी पर भिलाई में पदस्थ सीबीआई के प्रभारी डीएसपी ने एनआईए जांच के बाद सीबीआई जांच की जरूरत नहीं बताई और जांच नहीं हुई…. सवाल उठता है कि बड़ा या छ्ग मंत्रिमंडल?बहरहाल कई सवालों का जवाब अभी भी नहीं आया… महेन्द्र कर्मा तो नक्सलियों के निशाने में थे पर नंदकुमार पटेल और उनके बेटे की नक्सलियों ने घटनास्थल से दूर ले जाकर क्यों हत्या कर दी.. नक्सली उनसे क्या बात करना चाहते थे….? विद्याचरण शुक्ल,उदय मुदलियार को तो क्रॉस फायरिंग में गोली लग गई पर कांग्रेस का एक विधायक वहां से एक मोटर सायकल से कैसे निकलने में सफल रहा…? हमलावर नक्सलियों में युवतियों की संख्या अधिक थी वे क्रूरता से हत्या कर रही थीं ..?गोलियां मारने के बाद चाकूओं से भी हमला किया गया….आखिर महेन्द्र कर्मा को छोड़कर बाकी कांग्रेसियों से उनकी क्या दुश्मनी थी..?नक्सली तो कई कांग्रेसी नेताओं को पहचानते भी नहीं थे,हमले के बाद किसी देवा नाम के नक्सली नेता से लगातार सेटेलाइट फोन पर निर्देश ले रहे थे ये देवा कौन है…? किस रमन्ना नामक नक्सली नेता ने सभी की हत्या के निर्देश दिये बाद में बचे लोगों को छोड़ दिया गया….। पीड़ित पक्ष 10साल पूरे होने पर भी घटना से परदा नहीं उठने पर कहते हैँ कि हमने अपने परिवार के मुखिया को खो दिया है क्या हमे झीरम घाटी की सच्चाई जानने का हक भी नहीं है? सरकार 10साल में किसी भी नतीजे पर नहीं पहुंची है…।