नफीसा अली,उनके पिता और बस्तर का चेंदरु……

{किश्त 53}

अभिनेत्री,सामाजिक कार्यकर्ता,राजनेता नफीसा अली किसी पहचान की मोहताज नहीं है उसके पिता अहमद अली उसके जन्म के पहले बस्तर प्रवास पर आये थे।1956 में तब उन्होंने बस्तर की खूब सूरती जीवन,कला और संस्कृति को कैमरे में कैद किया था।नफीसा अली ने पिता के लिये गयेछाया चित्रों को ‘बस्तर द लॉस्ट हैरिटेज’के नाम से संकलित कर काफी टेबल पुस्तक का रूप दिया था।दिल्ली में पुराने चित्रों की प्रदर्शनी भी लगाई गई थी।18 जनवरी 1957 को कोलकाता में जन्म लेने वाली नफीसा अली के पिता अहमद अली बंगाली मुसलमान थे तो उनकी मां फिलोमना रोमन कैथोलिक थी।नफीसा के दादा एस वाजिदअली बंगाली के प्रसिद्ध लेखकों में एक थे।नफीसा के पति कर्नल आर एस सोढ़ी प्रसिद्ध पोलो खिलाड़ी,अर्जुन पुरस्कार विजेता रहे हैं। नफीसा तैराकी की राष्ट्रीय चैम्पियन 1972-74 में थी तो1976 में मिस इंटर नेशनल में भारत का प्रतिनिधित्व किया।नफीसा हिन्दी फिल्म जुनून,मेजर साब, बेवफा, यमला पगलादीवाना,बिग बी में काम कर चुकी हैँ ।2004,2009 में लोक सभा का चुनाव भी लड़ा।वैसे उनके जन्म के पहले उनके पिता,प्रसिद्ध फोटो ग्राफर अहमदअली का बस्तर प्रवास फिल्म ‘टायगर बॉय चेंदरू’ से जुड़ा है।ब्रिटिश फिल्म निर्देशक अर्नसक्स डॉफ बस्तर के टायगर बॉय ‘चेंदरू’ को लेकर एक फिल्म बना रहे थे।उन्हें फिल्म के लिए एक बाध के शावक की जरूरत थी।बाघ के शावक को फिल्माने ज़ब सारी कोशिशेँ बेकार गई तो किसी की सलाह पर ही कलकत्ता(कोलकाता)
पशु निर्यातक जार्ज मुनरो से संपर्क किया गया।मुनरों एक समृद्ध परिवार से संबंध रखते थे और उन्होंने घर में भी बाघ का शावक पाल रखा था, तब मुनरो ने बाघ के एक शावक को बेच दिया और उस समय स्टील के एक पिंजड़े में कोल काता से बाघ का शावक बस्तर के नारायणपुर लाया गया था।मुनरो ने अपने मित्र फोटोग्राफर अहमद अली (नफीसा के पिता)को भी बस्तर चलने मना लिया अहमद अली इस तरह बस्तर आये।बस्तर की खूबसूरती,वहां के सामाजिक जनजीवन रीति-रिवाज से इतने प्रभावित हुये,उन्होंने आदिवासी जन-जीवन, संस्कृति की सैकड़ों तस्वीरें ले ली,तस्वीरों के माध्यम से बस्तर को पूरे भारत में चर्चा में ला दिया था।’टाईगर बॉय चेंदरू’ फिल्म के कारण भी बस्तर पूरी दुनिया में चर्चा का केन्द्र बन गया था।बाद में नफीसा अली ने अपने पिता द्वारा बस्तर में खींची गई तस्वीरों को ‘बस्तर द लॉस्ट हेरिटेज’ नाम से संकलित कर काफी टेबल बुक का नाम दिया और राजधानी दिल्ली में उन चित्रों की प्रदर्शनी भी लगाई थी।

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