{किश्त 57 )
मोहला क्षेत्र के पानाबरस गांव में जमींदार के घर 1 मई 1919 कोजन्मे लाल श्याम शाह चर्चित आदिवासी नेता के रूप में उभरे। वे आदिवासी और कमजोर वर्ग के लोगों के लिए खुलकर संघर्ष करते थे।उन्होंने मांग की थी आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र को अलग राज्य बना दिया जाए। जिसमें उन्होंने वजह बताते हुए कहा था कि ‘आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र को गोंडवाना राज्य का दर्जा दिया जाए।रायपुर में हो रहे अखिलभारतीय कांग्रेस कमेटी के अधि वेशन की पूर्व संध्या करीब 30 हजार आदिवासी रायपुर पहुंचे थे। कहा गया कि लाल श्याम शाह पीएम नेहरू से दो प्रमुख मांग छ्ग- गोंडवाना राज्य के नाम से एक पृथक राज्य का गठन किया जाए जिसमें रायपुर, दुर्ग,बिलासपुर, सरगुजा,रायगढ़,बालाघाट,शहडोल और भंडारा तथा चांदा (चंद्रपुर) के कुछ हिस्सों को शामिल किया जाए,भिलाई इस्पात संयंत्र में छग के आदिवासियों को काम दिया जाए.. आदि मांग को लेकर मिलेंगे। नेहरू से किसी ने कहा कमिश्नर नरोन्हा का कहना है वहां जाना ठीक नहीं होगा?तब नेहरू ने कहा था कि नरोन्हा अपना काम कर रहे हैं,मुझे अपना काम करने दीजिये । पुलिस अधिकारियों को हैरत और बेचैनी में डालने वाला कदम उठाते पंडित नेहरू दोपहर अचानक हिंद स्पोर्टिंग ग्राउंड के मैदान में डेरा डाले लाल और आदिवासियों से मुलाकात करने का फैसला किया।मप्र के सीएम कैलाशनाथ काटजू के साथ वह कार से आदिवासियों से मिलने के लिए गये।चारों ओर घेरा बना रहे पुलिस कर्मियों को दरकिनार कर सीधेआदिवासियों के बीच पहुंच गए। वहां करीब दस हजार आदिवासी मौजूद थे। पंडित नेहरू करीब दस मिनट मैदान में रहे और आदिवासियों से बात की।लोगों का हालचाल भी पूछा।उन्होंने तब आश्वासन दिया था वह उनकी मांगों पर जरूर विचार करेंगे।
विधायक की कुर्सी छोड़ी……
दरअसल,श्याम शाह ने राजनीति में कदम रखते ही अलग गोंडवाना राज्य की मांग शुरू कर दी थी। 1952 में अंबागढ़ चौकी के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सूजनीराम से 125 मतो से पराजित हो गये फिर वहीं से उप चुनाव में विजयी रहे, फिर आदिवासियों के शोषण के नाम पर इस्तीफा दिया,फिर वहीं से उप चुनाव में विजयी रहे,बाद में उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा और उप चुनाव में कांग्रेस की कनक कुमारी विजयी रही थी।जंगल में लगातार पेड़ों की अवैध कटाई होने पर श्याम शाह ने वन मंत्री को टेलीग्राम से इसकी सूचना दी थी। सीएम से भी शिकायत की। लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई तो विधायक का पद छोड़ दिया। उस दौर में पांच साल में इस एक सीट पर चार बार चुनाव कराने पड़े।
किसी पार्टी से नहीं जुड़े….
लाल श्याम शाह निर्दलीय ही लड़ते और जीतते रहे चुनाव।शाह की लोकप्रियता महाराष्ट्र तक थी।लोकप्रियता ऐसी कि मानपुर, मोहला, पानाबरस,बिजईपुर सहित आसपास के गांवों में आज भी इनकी प्रतिमा देखने को मिलती है। आदिवासी इन्हें मसीहा के रूप में मानते हैं।10 मार्च 1988 को श्याम शाह की मृत्यु हो गई। छत्तीसगढ़ अलग राज्य की मांग पूरी तो हुई, लेकिन उनकी मृत्यु के 12 साल बाद……!