छ्ग के महर्षि महेश योगी, विश्व के ध्यानगुरु और राम नाम की मुद्रा का चलन..

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छत्तीसगढ़ के एक गांव में जन्म लेने वाला बालक बाद में विश्वविख्यात महर्षि बना उसने ध्यान पारलौकिक के माध्यम से विश्व में वैदिक संस्कृति का परिचय दिया, और विश्व के नामचीन लोग बेहतर स्वास्थ्य और आध्यात्मिक ज्ञान सीखने लगे।यही नहीं श्रीराम के ननिहाल में पैदा होकर इस योगी ने ‘रामनाम’ की मुद्रा भी विदेशों में चलाई थी।महर्षि महेश योगी का जन्म 12 जनवरी 1918 को छत्तीसगढ़ के राजिम के पास ही स्थित पांडुका गांव में हुआ,उनके पिता राम प्रसाद श्रीवास्तव था।महर्षि का पूरा नाम महेश प्रसाद श्रीवास्तव था।उनके पिता राजस्व विभाग में कार्यरत थे।नौकरी के सिलसिले में उनका तबादला जबलपुर हो गया।लिहाजा परिवार गोसलपुर में रहने लगा।योगी का प्रारंभिक बचपन वहीं बीता।उन्हें वहां की प्रकृति बहुत पसंद थी।हित कारिणी स्कूल से मैट्रिक करने के बाद इलाहाबाद विवि से बीएससी की उपाधि ली और साथ ही गन कैरिज फैक्टरी में उच्च श्रेणी लिपिक के पद पर उनकी नियुक्ति हो गई। फैक्टरी की नौकरी से लेकर विश्वविख्यात महर्षि बनने तक की यात्रा में कई रोचक पड़ाव भी आए।एक दिन रास्ते में गुजरते हुए स्वामी ब्रह्मानंद के प्रवचन सुने,वे बहुत प्रभावित हुए और उनमें वैराग्य का जीवन जाग्रत हो गया,इसके बाद वे अध्यात्म की ओर बढ़े। गुरु स्वामी ब्रह्मानंद से आध्यात्मिक शिक्षा ली और उनके साथ विश्व भ्रमण किया।महर्षि ने पारलौकिक ध्यान के माध्यम से विश्व में वैदिक संस्कृति का परिचय दिया।इसके बाद विश्व के नामचीन लोग उनसे बेहतर स्वास्थ्य और आध्यात्मिक ज्ञान सीखने लगे।वह लोगों को ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन सिखाते थे,ताकि लोग अपने अंदर झांक सकें, लोग अपनी खुशी को महसूस कर सकें,अपने हर पल का आनंद उठा सकें। महर्षि योगी ने ऋषिकेश में 18 एकड़ में एक आश्रम बनाया जो अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस था।जहां विदेशी मेहमान योग सीखने आते थे और उन मेहमानों को शाकाहारी भोजन दिया जाता था,विदेशी मेहमानों में गायक डोनोवन,यूके के रॉक बैंड आदि शामिल थे।कहा जाता है कि उनके शिष्यों में पूर्व पीएम इंदिरा गांधी से लेकर आध्यात्मिक गुरु दीपक चोपड़ा तक शामिल थे।इसके बाद 1970 के दशक में गुरु और उनके शिष्य आश्रम छोड़कर नीदरलैंड चले गये, योगी ने जबलपुर से एक समाचार पत्र ‘ज्ञान युग प्रभात’ भी शुरू किया जो 5 कॉलम का देश का संभवत:पहला अख़बार था,उसके संपादक छग के के वरिष्ठ रम्मू श्रीवास्तव थे।

राम नाम की मुद्रा भी चलाई थी योगी ने…

महर्षि महेश योगी ने राम नाम की मुद्रा यानी एक, पांच और दस रुपये के नोटों में चलाई थी।जिसे बाद में नीदरलैंड सरकार ने 2003 में कानूनी मान्यता दे दी थी।जो नीदरलैंड के गांव व शहरों में दुकान पर चलने लगी थी,अमेरिका की महर्षि वैदिकसिटी में राममुद्रा प्रचलन शुरू हो गया था।इसके अलावा अमेरिका के 35 राज्यों में रामनाम के बांड भी शुरू किये गये थे।

91 वर्ष की आयु में
हुआ निधन……..

‘मेरे न होने से कुछ नुकसान नहीं होगा।मैं नहीं होकर और भी ज्यादा प्रगाढ़ हो जाऊंगा’ उनके इन शब्दों से महर्षि पहले से अधिक प्रासंगिक ज्यादा प्रगाढ़ हो गए थे। महर्षि योगी ने भावातीत ध्यान के माध्यम से पूरी दुनिया को वैदिक वांग्मय की संपन्नता की सहज अनुभूति कराई।नालंदा व तक्षशिला के अकादमिक वैभव को साकार करते हुए स्कूल, कॉलेज,विश्वविद्यालय की सुपरंपरा को गति दी।महर्षि द्वारा भावातीत ध्यान एक विशिष्ठ शैली है,जो चेतना के विकास को प्राप्त करने का मार्ग दिखाती है।महर्षि योगी ने भारतीय संस्कृति के संदेश वाहक,विश्वबंधुत्व,आध्यात्मिक,महापुरुष और आधुनिकता,संसार के महान समन्वयक होने का गौरव हासिल किया। नर्मदा के तट पर ऋषि जाबालि के पवित्र जबलपुर सेभावातीत उड़ान भरने वाली इस दिव्य विभूति ने अपने वैदिक ज्ञान से विश्व को आलौकित किया। ध्यान के आध्यात्मिक गुरु महर्षि महेश योगी का नीदर लैंड्स स्थित घर में 5 फरवरी 2008 को 91 वर्ष की आयु में निधन हो गया था। महेश प्रसाद ने महर्षि महेश योगी बनकर संपूर्ण दुनिया को शांति और सदाचार की शिक्षा दी और विश्व भर में भारत का नाम रोशनकिया।

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