। {किश्त 227 }
कुदरगढ़ पहाड़ की चोटी पर मूर्ति विराजित है,इसी लिये माँ कुदरगढ़ी भी कहते हैं जहां शिला के एक खांचे में देवी की प्रतिमा है।यहाँ भैरव प्रतिमा भी स्थापितहै। कहा जाता है कि इस मंदिर को 17 वीं सदी में कोरिया के शासक राजा बालांद ने बनाया था।सरगुजा,सूरज पुर जिले में प्राचीन कुदर गढ़ धाम में मां बागेश्वरी का एक पुराना मंदिर स्थापित है। प्राचीन कुदरगढ़ धामका इतिहास रोचक मान्यताओं से भरा है।मान्यता है कि इसी क्षेत्र में मां भगवती ने राक्षसों का संहार कियाथा। जगह की इसी विशेषता के कारण यहां आस-पास के ही जिलों,पड़ोसी राज्यों से भीश्रद्धालु आते हैं।सूरजपुर मुख्यालय से लगभग 60 किमी दूर ओडगी विकास खंड में स्थित कूदरगढ़ धाम घने जंगल के बीच बसा है।यह स्थान दुर्लभ पेड़-पौधों, झरनों से भरा है,लंबे-लंबे साल के विशालकाय वृक्ष मौजूद है, जंगल के बीच खुले स्थान पर ‘वट वृक्ष’ के नीचे माता बागेश्वरी विराज मान हैं।कुदरगढ़ी माताधाम को शक्तिपीठ के नाम से भी जानते हैं,लगभग15 सौ फीट ऊंचे पहाड़ पर विराज मान है।मान्यता के अनुसार कुदरगढ़ क्षेत्र मां पार्वती की तपोस्थली रही है। माता भगवती ने शक्ति का रूप धारण कर राक्षसों कासंहार किया था,बाद में इसी जगह लगभग 400 साल पहले राजा बालंद ने बागेश्वरी माँ को स्थापित किया। वे माता के भक्त थे।बाद में चौहान वंश के राजा ने बालंद को युद्ध में पराजित किया था, बाद उसी वंश ने माता के मंदिर की देख-रेख की तब से हर साल नवरात्र में सुबह की पहली आरती चौहान वंश के वंशज ही यहां करते हैं।
वटवृक्ष के नीचे हैं मां
बागेश्वरी स्थापित…
राजा बालंद द्वारा कुदरगढ़ धाम के माता बागेश्वरी की स्थापना के बाद कुछ चोर माता की मूर्ति चोरी कर ले गये।इसी दौरान चोरों नेमूर्ति को कुछ दूर ले जाकर रख दिया।इसके बाद मूर्ति को उठा नहीं पाये,यही कारण है कि वटवृक्ष के नीचे ही माता की मूर्ति स्थापित है। 18 वीं सदी में चौहान राजा ओं ने छत्तीसगढ़ के मूल आदिवासी बैगा जनजाति को माता के देख-रेख और पूजा की जिम्मेदारी सौंपी थी।तब से आज तक बैगा समुदाय के लोग ही माता पूजा करते है। मंदिर ट्रस्ट के सदस्य ने बताया कि ये मंदिर काफी प्राचीन है, यहां लोगों में मां के प्रति आस्था साफ तौर पर देखी जाती है,कहा जाता है कि मंदिर में श्रद्धालु जो भी मन्नत मांगते हैं,वो पूरी हो जाती है।