किस्मत हमारी हमसे ही मांगे है अब हिसाब ऐसे में तुम बताओ कि हम दें भी क्या जवाब

शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )             

करीब सवा साल सरकार चलाने के बाद आखिरकार म.प्र. के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस्तीफा दे दिया उनके इस इस्तीफे की उल्टी गिनती उसी दिन शुरू हो गई थी जब उनके कुछ विधायक गुरुग्राम और बंगलुरू भाग गये थे। सिंधिया परिवार के उत्तराधिकारी ज्योतिरादित्य सिंधिया का पाला बदलना भाजपा की सदस्यता ग्रहण करना राज्यसभा का प्रत्याशी बनना, इसी के पहले उनके समर्थक कांग्रेस के 22 विधायक तो चार्टड विमान से बंगलुरू चले गये थे। यही नहीं उन्होंने इस्तीफा भी भेज दिया। भाजपा द्वारा बुक कराये गये चार्टड विमान से कांग्रेस के विधायक गये, भाजपा नेता भूपेन्द्र सिंह उनके इस्तीफे लाकर म.प्र. विधानसभा स्पीकर को लाकर दिये। फिर राजनीति ड्रामा शुरू हुआ, उनसे विमानतल पर भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा की मुलाकात, भोपाल नहीं जाने की जिद, दिग्विजय सिंह से मिलने से इंकार, इसी बीच सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हलफनामा के आधार पर 23 घंटे के भीतर फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश, बागी 22 विधायकों को फ्लोर टेस्ट में आने मजबूर करने में असमर्थता, विधायकों द्वारा अपने मन से पार्टी से दुखी होकर इस्तीफा देने की बात पर यकीन करने के अलावा अदालत के पास कोई चारा भी नहीं था। कानून ने अपना काम किया, संख्याबल में पर्याप्त आंकड़े नहीं जुटापाने के नाम पर कमलनाथ का इस्तीफा, कांग्रेस के पास पर्याप्त संख्या नहीं होने की चर्चा तथा 15 माह पूर्व जनता के फैसले के विरूद्ध भाजपा सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त हो गया।
वैसे पिछले 4-5 सालों में अदालतों को लगातार इसी तरह का काम करना पड़ रहा है। म.प्र. का ताजा उदाहरण सामने हैं। इसके पहले अरूणांचल जब सरकार गिरी थी तब उसके पास दो-तिहाई बहुमत था। रातों-रात अधिकतर विधायक पाला बदल गये, अदालत ने विधायकों के पाला बदल को गलत माना और कांग्रेस की सरकार दोबारा बहाल हुई, बाद में विधायकों ने फिर वहीं कियाऔर सरकार जाती रही। उत्तराखंड में भी हरीश रावत की सरकार भी कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के प्रताप से तकरीबन गिर ही गई थी। लेकिन अदालत के हस्तक्षेप से बच गई बाद हरीश रावत ने अपना राजनीतिक प्रबंधन कर लिया था। मणीपुर, गोवा और दूसरे राज्यों में भी यह बात देखी जा चुकी है। बिहार में नीतिश-लालू गठबंधन टूटने के बाद भाजपा से गठबंधन कर नीतिश मुख्यमंत्री बने हुए हैं। कर्नाटक में चुनाव के तुरंत बाद भाजपा के येदियुरप्पा की सरकार बनाई जो 2-3 दिन बहुमत की तलाश में रही फिर गिर गई उसके बाद कांग्रेस जेडीएस ने सरकार बनाई, साल भर चलने के बाद कांग्रेस जेडीएस के विधायकों के इस्तीफे से सरकार गिर गई और येदियुरप्पा दोबारा मुख्यमंत्री बन गये। महाराष्ट्र में शिवसेना- भाजपा ने मिलकर चुनाव लड़ा पर चुनाव बाद दोनों में नहीं बनी, भाजपा के देवेन्द्र फणवनीस मुख्यमंत्री बने, राकांपा के अजीत पवार उपमुख्यमंत्री बने बाद में अदालत ने फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया, अजीत पवार ने पाला बदला शिवसेना, कांग्रेस, राकांपा के गठबंधन की सरकार के मुखिया उद्धव ठाकरे बने और अजीत पवार इस सरकार के उपमुख्यमंत्री…।

नया कानून लाना जरूरी…

जाहिर है कि कोई भी राजनीतिक दल या नागरिक नहीं चाहेगा कि लोकतंत्र पर से लोगों का भरोसा उठ जाए… दरअसल जनमत और बहुमत के बीच सरकार बनती बिगड़ती जा रही है। पहले दल बदल कानून नहीं था बाद में दलबदल कानून बना, जब इससे बात नहीं रूकी तो दलबदल के लिए आवश्यक संख्या को एक तिहाई से बढ़ाकर दो -तिहाई किया गया, इस कानून के बाद दल बदल करना कठिन तो हो गया पर उसके बाद विधायकों के थोक में इस्तीफे कराने की पहल शुरू हो गई है। अब क्या थोक में इस्तीफे लाने भी कानून लाया जाएगा…..। पहले गोवा, मणिपुर, झारखंड जैसे छोटे राज्यों में विधायकों के पाला बदलने के बाद अब बड़े-बड़े राज्यों में चुनाव का मतलब ही समाप्त होता जा रहा है। जनता किसी पार्टी को चुनती है फिर उस पार्टी के लोगों को दूसरी पार्टी अपनी तरफ ऐन केन प्रकारेण आकर्षित कर लेती है और वे लोग दलबदल कानून से बचकर सामूहिक इस्तीफा देकर दूसरी पार्टी को लाभ पहुंचाते है यह जनादेश से खिलवाड़ ही है।
वैसे लोकतंत्र की प्रतिष्ठा बनाए रखने तथा जनादेश की भावना से खिलवाड़ न हो इसके लिए कानून में संशोधन किया जाना चाहिए, दलबदल करने या इस्तीफा देने पर उस पूरे 5 साल के टर्म में चुनाव लडऩे से रोकना भी विकल्प हो सकता है। यानि ऐसा प्रबंधन किया जाना चाहिए कि यदि विधायक या सांसद स्वेच्छा से इस्तीफा देते हैं तो जिस कार्यकाल के लिए वे चुने गये हैं उन्हें उस कार्यकाल में पुन: उपचुनाव लडऩे से वंचित किया जाना चाहिए पर संसद में कानून बनाएगा कौन…। क्योंकि पिछले 4-5 सालों में रिसोर्ट संस्कृति से तो सबसे अधिक लाभ भाजपा को ही हुआ है और उनकी पार्टी की राज्य सरकारें लगातार बढ़ रही है। बहरहाल 1967 में हरियाणा में एक विधायक गयाराम एक दिन में 3 बार पार्टी बदली थी तब से आयाराम-गयाराम प्रचलित हो गया था। 1985 में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने दलबदल विधेयक लाया था। 1985 में संविधान की 10 वीं अनुसूची जोड़ी गई, ये संविधान में 52 संशोधन था पर अब नये प्रावधान की जरूरत महसूस की जा रही है।

पावरफूल और पावरलेस     

म.प्र. में सियासी उलटफेर हो गया, अब कांग्रेस शासित प्रदेश राजस्थान में भी ऊंट अब किस करवट बैठता है कहा नहीं जा सकता है पर छत्तीसगढ़ में जरूर भाजपा की कभी दाल नहीं गल सकती है। क्योंकि भाजपा को मालूम है कि 14 के मुकाबले चार गुना अधिक मजबूत कांग्रेस की सरकार को छोडऩा असंभव ही है पर यहां की अफसरशाही जरूर बेचैन है। भूपेश की सरकार बनने के बाद गौरव द्विवेदी ताकतवर अफसर बनकर उभरे थे पर उनकी हालत किसी से छिपी नहीं है। पहले जनसंपर्क विभाग और अब मुख्य मंत्री सचिवालय से उन्हें हटाया गया है। दरअसल वे कुछ अधिक ही ताकतवर बन गये थे? मुख्यमंत्री सचिवालय के अफसरों सहित अन्य विभागों के अफसर तो उनके व्यवहार से कुछ नाखुश थे ही हाल ही में एक कांग्रेसी विधायक से गौरव का व्यवहार भी उन पर भारी पड़ा…। विधायक तो आहत होकर इस्तीफा देने की जिद कर बैठे थे । भूपेश सरकार में सबसे शक्तिशाली अफसर के रूप में मुख्यसचिव आर.पी. मंडल हैं तो अब अतिरिक्त मुख्य सचिव सुब्रत साहू भी ताकतवर बनकर उभरे हैं यदि ऐसा ही चलता रहा तो सुब्रत साहू, आर .पी. मंडल के बाद अगले मुख्य सचिव बन जाएं तो आश्चर्य नहीं होगा। हाल ही में एसीएस गृह के बाद उन्हें अपर मुख्यसचिव मुख्यमंत्री बनाया गया।उसी के बाद सुब्रत ने बिजली कम्पनी के चेयरमेन की भी जिम्मेदारी सम्हाल ली है। यानि प्रदेश के मुख्यमंत्री के एसीएस और बिजली पावर कंपनी के अध्यक्ष पद पर काबिज होकर पावरफूल बन गये हैं। इधर चर्चा है कि पुलिस मुख्यालय में कुछ अफसरों की कार्यप्रणाली से भी सीएम सचिवालय सहित हाऊस नाखुश हैं इसलिए जल्दी ही वहां भी, बड़ा परिवर्तन हो सकता है वैसे आज की स्थिति में डीजीपी डीएम अवस्थी, एडीजीपी जीपी सिंह तथा एडीजी गुप्तवार्ता गुप्ता पावर सेंटर बने हुए हैं। वैसे डीजीपी को छोड़कर दोनों अफसर सीएम सचिवालय के रहमो करम पर ही काबिज हैँ l

और अब बस..

Oकांग्रेस की कार्यकारिणी में गिरीश देवांगन की जगह रवि घोष को प्रभारी महामंत्री बनाना बड़ा परिवर्तन है l
Oसंजय पिल्ले, आर के विज और अशोक जुनेजा के डीजी पदोन्नति में दिक्क़त क्या है…. l
Oविस अध्यक्ष डॉ चरण दास के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव और बृज मोहन, अजय चंद्राकर के खिलाफ विशेषाधिकार हनन की मांग चर्चा में है l

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