“लोरिक चंदा” की प्रेमगाथा आज भी छ्ग में चर्चित…

         {किश्त 167}

*राजा महर के बेटी ये ओ…
लोरिक गावत हंवव चंदा…
ये चंदा हे तोर…..
मोर जौने समे के बेटा म ओ…
लोरिक गावत हंवव चंदा…
ये चंदा हे तोर…*

यह लोकगीत आज भी सुनाई देता है, इसका सम्बन्ध लोरिक-चंदा की प्रेम गाथा से जुडा है।छत्ती सगढ़ी लोकगाथाओं के अंतर्गत लोरिक चनैनी की गाथा प्रचलित है। छत्ती सगढ़ी गद्य में इसकी कथा को सर्वप्रथम सन1890 में श्री हीरालाल काव्योपध्याय ने चंदा के कहानी के नामसे प्रकाशित किया था।वहीँ बेरियर एल्विन ने सन 19 46 में लोेकगाथा के छत्ती सगढ़ी रूप को अंग्रेजी में अनुवाद करके अपने ग्रंथ ‘फोक सांग्स आफ छत्ती सगढ़’ में उद्भुत किया है।लोरिक चंदा निश्चित रूप से ऐतिहासिक पात्र है। इस तथ्य के प्रमाण में यह तर्क दिया जा सकता है,लोक में रचे-बसे होने के कारणऔर छत्तीसगढ़ में इसकी गाथा और स्थान नामों के संदर्भ में लोक मानस आस्थावान है। ऐसा लगता है इसकी मूलकथा,घटना-प्रसंग छत्ती सगढ़ की ही है। लोकगाथा गायकों के अतिरिक्त अनेक लोक साहित्य-मर्मज्ञों,लोक कलाकारों ने राय दी कि रायपुर जिलांतर्गत आरंग- रींवा और मध्य ’’लोरिक चंदा’’ के प्रेमप्रसंग कीसाक्षी है। वास्तव में स्थान-नाम में निहित घटना-कथा ही जन श्रुति और लोककथा बन कर लोकमानस में प्रचलित और प्रतिष्ठित होती है। इसे इतिहास ना मानकर केवल कल्पना की सामग्री सम झना गलत है। जिस तथ्य को लोग अनेक पीढ़ियों से मान रहे है और युग उसे गाथा-रूप में स्वीकृत कर रहा है। वास्तव में लोरिक चंदा की गाथा छ्ग लोक मानस के लिए वह प्रेरक प्रसंग है। इस पर फ़िल्म भी बनी थी,नाटकों का मंचन भी हुआ है। लोरिक और चंदा की कहानी लोकगीत के मादक स्वरों में गूंथी हुई है। अंचल के लोग ’’चंदैनी’’ कहते है। चंदैनी से पता चलता है कि रींवा, लोरिक का मूलगांव था या कम से कम इस गांव से उसका गहरा संबंध था। चंदैनी का एक टुकड़ा ही प्रमाण स्व रूप है….

बारह पाली गढ़ गौरा, सोलह पाली दीवना के खोर….
अस्सीपाली पाटन, चार पाली गढ़ पिपही के खोर…

एक रोज पनागर नामक राज्य से बोड़र साय अपनी पत्नी बोड़नीन,भाई कठा वत और पत्नी खुलना के साथ गढ़गौरा अर्थात् आरंग पहुंचे थे। राजा महर को उसने एक ‘‘पॅंड़वा’’ (भैंस का बच्चा) जिसका नाम सोनपड़वा रखा गया था, भेंट किया,इस भेंट से राजा महर अति प्रसन्न हुए और बोड़रसाय को बदले में रीवां राज्य दे दिया। बोड़रसाय राऊत परि वार सहित रींवा राज्य में राज करने लगा। इसी बोड़रसाय का एक पुत्र था- बावन, वहीं सहोदर का पुत्र था-लोरिक..।संयोग की बात है कि राजा महर की लाडली बेटी और बोड़रसाय का पुत्र बावन हम उम्र थे। राजा महर ने बावन को योग्य समझकर चंदा से उसका विवाह कर दिया, पर कुछ समय व्यतीत हो पाया था कि बावन किसी कारणवश नदी तट पर तप स्या करने चला गया (संभ वतः बावन निकटस्थ महा नदी पर तपस्या करने गया हो) उधर राजा महर का संदेश आया कि चंदा का गौना करा कर ले जाओ। इस विकट स्थिति में राजा बोड़रसाय को कुछ सूझ नहीं रहा था। अंततः इस विपदा से बचने का उन्हें एक उपाय नजर आया… लोरिक,जो कि बावन का चचेरा भाई था, दूल्हा बना कर गौना कराने भेज दिया। लोकगीत नाट्य चंदैनी में लोरिक का रूप बड़ा आक र्षण बताया गया है। लोरिक सांवले बदन का बलिष्ठ युवक था। उसके केश घुंघ राले थे, लोरिक गढ़गौरा चला गया और सभी रस्मों को निपटाकर वापसी के लिए चंदा के साथ डोली में सवार हुआ। डोली के भीतर जब चंदा ने घूंघट हटाकर अपने दूल्हे को निहारा तो उसके रूप में एक अज्ञात व्यक्ति को देखकर वह कांप उठी। चंदा इतनी भयभीत हो गई कि वह डोली से कूद कर जंगल की ओर भाग गयी। लोरिक भी घबरागया और चंदा के पीछे भागा, उसने चंदा को रोका और अपना परिचय दिया।अब जब संयत होकर चंदा ने लोरिक को देखा,तब उस पर मुग्ध हो गयी,लोरिक का भी लगभग यही हाल था। यह चंदा के धवलरूप को एकटक देखता रह गया दोनों एक-दूसरे के रूप- जाल में फंस गये। वही उनके कोमल और अछूतेे मन में प्रणय के बीज पड़े।धीरे-धीरे दोनों की प्रेम की कहानी आसपास के क्षेत्र में भी प्रचलित होने लगी,कुछ लोगों को यह पसंद नहीं आ रहा था,इसी के कारण लोरिक को काफी प्रताड़ित करने की भी कोशिश की गई जैसा कि कई प्रेम गाथा ओं में देखने और सुनने को मिलता है,इस तरह के प्रेम में राजा समाज सहित अन्य लोगों की ओर से काफी व्यवधान उत्पन्न किए जाते रहे,इस बीच लोरिक-चंदा को काफी यातनाएं और प्रताड़ना भी सहनी पड़ी। अंत में लोरिक-चंदा के प्रेम को राजा, समाज सहित अन्य सभी लोगों को स्वी कार करना पड़ा, काफी संघर्ष के बाद जब लोरिक और चंदा का मिलन हुआ तो हर्ष की स्थिति भी देखने को मिली। यह कथा आज भी लोग गांवों में अपने- अपने ढंग से बताते हैं।

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