{किश्त121}
कुछ लोग जीते जी ही किंवदंती बन जाया करते हैं। 36 भाषाओं में 50 हजार से भी अधिक गानों को स्वर देने वाली ‘स्वर कोकिला’ के नहीं रहने पर बहुत से रिकॉड उनके नाम स्पष्टतःदिखाई देंगे, रोचक यह भी है कि वह सहज ही किस तरह आम से खास, खास से आम होती गई। इस सिलसिले में खास-ओ -आम के करीब भी रहीं। बात उन कुछ प्रसंगों की कर रहे हैं,लता मंगेशकर नाम के एक हाड़- मांस के पुतले को कुछ खास लोग देखते-सुनते समय क्या सोचते रहे।यह जरूर था कि हमारे-आप जैसे उस शरीरधारी को देव तुल्य भी मान लिया गया।गायक तलत महमूद ने तो कहा भी था कि सरस्वती और लक्ष्मी दोनों एक साथ कम ही रहा करती हैं।लता,शायद इन दोनों के मेल से अवतरित तीसरी देवी हैं।लताजी को देवी न भी मानें, तो भी वह विशिष्ट इंसान जरूर थीं।देश-दुनिया को पता है कि चीन के साथ 1962 केयुद्ध के बाद 1963 में सैनिकों के बीच लताजी ने ‘ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी’ गाया तो वहां मौजूद अन्य लोगों के साथ पीएम जवाहर लाल नेहरू की आंखें भी भर गईं थीं। निश्चित ही वह माहौल गीत के शब्दों के साथ लता मंगेशकर के सुर की संगति से उत्पन्न हुआ था। इंदौर से,भारतरत्न, गायिका लता मंगेशकर का गहरा नाता था, इंदौर की ही ‘सिखगली’ में 28 दिसंबर1929 उनका उनका जन्म हुआ था,लता की जन्मस्थली इंदौर है और कर्मस्थली मुंबई थी सिख मोहल्ला इंदौर के एमजी रोड स्थित जिला अदालत के बगल में बसा हुआ है। वैसे लताजी का छत्तीसगढ़ से भी गहरा नाता रहा है, छत्तीसगढ़ी में एक ही गीत गया है,आज भी बेटियों की बिदाई में यह जरुर बजता है। 2005 में छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘भकला’ के लिए ‘छूट जाई अंगना अटारी ’ गीत गाया था।गीत,आज भी बेटियों की विदाई के वक्त सुनाई पड़ जाता है।छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ के इंदिरा कला व संगीत विश्वविद्यालय से भी लताजी का गहरा नाता रहा है। 9 फरवरी 1980 को विश्वविद्यालय में डी-लिट की उपाधि से नवाजा गया था। लताजी का खैरागढ़ से भी बहुत पुराना नाता रहा है, 2 फरवरी 1980 को लताजी खैरागढ़ स्थित इंदिरा कला एवं संगीत विश्व विद्यालय में डी. लिट् की मानद उपाधि लेने खास तौर पर तब के कुलपति डॉ.अरूण सेन के विशेष आग्रह पर खैरागढ़ आयीं थी।मुंबई से खैरागढ़ तक लता मंगेशकर का आना या यूं कहें कि उस दौर में उन्हें खैरागढ़ लाना किसी सपने से कम नहीं था,यह सपना साकार हुआ था। 2 फरवरी 1980 का दिन संगीत की दुनियां के लिये बहुत महत्व पूर्ण माना जाता रहा है जब लताजी की प्रतिभा को एक मुकाम मिला था और उन्हें डी. लिट् की मानद उपाधि के लिये डॉक्टरेट की डिग्री खैरागढ़ विश्वविद्यालय ने दी थी। समाजसेवी उत्तमचंद जैन के अनुसार 2 फरवरी 1980 को इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय में सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर को डी. लिट् की मानद उपाधि दी जानी थी,तब कुलपति डॉ.अरूण सेन के आग्रह पर वे श्रीमती अनिता सेन, अपने ड्राईवर के साथसडक़ मार्ग से नागपुर , लताजी को खैरागढ़ लाने पहुंचे थे। उनके अनुसार लताजी बिल्कुल नहीं चाहती थीं कि मुंबई से खैरागढ़ प्रवास के दौरान जब वे नागपुर एयर पोर्ट पर उतरें तो किसी को भी इस बात की भनक लगे की वह नागपुर में रूकी हैँ । इसके लिये प्रशासन ने खास इंतजाम किया था। एयरपोर्ट से खैरागढ़ आने के लिये नागपुर में रवि भवन में कुछ घंटे विश्राम व भोजन के लिये रूकवाया था। नागपुर के रवि भवन से भोजन, विश्राम के बाद श्रीमती सेन,दो मेहमानों के साथ सडक़ मार्ग से एक विशेष कार में खैरागढ़ के लिये रवाना हुई थी।छग की लोकगायिका ममता चन्द्रा कर,लता मंगेशकर को याद करते हुए कहती हैं किसाल 1980 में जब लता दीदी इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय आईं थीं तो उन्होंने भोजन के समयउन्हें कढ़ी परोसी थी। हालांकि उनकी लताजी से बात नहीं हो पाई थी।उस प्रवास पर लता मंगेशकर, डोंगरगढ़ मंदिर जाकर मां बम्लेश्वरी के दर्शन भी किये थे , दर्शन के बाद साथ के लोगों से कहा था की मॉ के दर्शन से वे अभिभूत हैं, शायद दर्शन के बाद ही कुछ सालों तक उनके नाम ज्योति कलश भी डोंगरगढ़ में मॉ बम्लेश्वरी में जलाये जाते रहने की भी खबर है.!मशहूर पंडवानी गायिका, पद्मभूषण तीजन बाई कहती हैं कि लताजी, पंडवानी सीखना चाहती थीं। उन्होंने तीजन से 2 बार फोन पर बात भी की थी लेकिन पंडवानी सिखाने का अवसर ही नहीं बन पाया…!तीजन कहती हैं कि लताजी से हाँलाकि मुलाकात कभी नहीं हुई, और उनकी ये इच्छा अधूरी ही रह गई…!