{किश्त 212}
छत्तीसगढ़ जमींदारी बाहु ल्य क्षेत्र था, प्राचीनकाल से ही इस क्षेत्र में छोटी-छोटी जमींदारियां स्थापित थीं।जमींदारियां कल्चुरी यापोप की अधिसत्ता को स्वीकार करती थीं। इस काल में ही जमींदारी अधिपति को किसी भी प्रकार से कर, उद्योग तकोली अदा नहीं करते थे, लेकिन आवश्य कता थी उसके अनुसार अपने अधिपति या शक्ति को सैनिकों, आर्थिक सहा यता पहुँचाने की।1741में छत्तीसगढ़ में कल्चुरीराज की स्थापना हुई। मराठों ने छग के जमींदारी क्षेत्रों को खालसा में परिवर्तित करने के बजाय यथावत रहने दिया, अपने लाभार्थ ही नई जमींदारियां क्रमशः राजनां दगाव,खुज्जी,छुईखदान का निर्माण किया।1818 से 1830 ब्रिटिश संरक्षण का काल था।जमीँदारों से लिखित संबंध स्थापित हो गया था। कप्तान एग्न्यु ने जमींदारों से लिखित दस्ता वेज़ पर हस्ताक्षर कराया दस्तावेज़ तैयार किया,जिसे ‘इक़रारनामा’कहा गया था। जमींदारों से निश्चित राशि टकॉली के रूप में वसूलकी जाने लगी।1818 छत्तीस गढ़ में ब्रिटिश नियंत्रण स्था पित किया गया उस समय यहां 27 जमींदारियां स्थित थीँ।छत्तीसगढ़ की रियासतेँ 1857 की क्रांति के समय कई देशी रियासतों, जागीरों ने तन-मन-धन से ब्रिटिश सरकार की सहायता से क्रांति को स्थापित कियाथा 1857 के पूर्व महारानी विक्टोरिया ने एक नई नीति की घोषणा की।महारानी की घोषणा,ब्रिटिश सरकार के फैसले अनुसार 1862 शक्तिशाली,अधिक जन संख्या वाली जमींदारियों में सामंती राज्य… फ़्यूडेटरी राज्य घोषित किया गया। छत्तीसगढ़ के जमीदारों को रियासत का अधिकार दिया गया, कांकेर, राजनांदगांव, खैरागढ़, छुईखदान,कवर्धा, रायगढ़, सक्ती, सारंगढ़ थे। 1905 में बंगाल,छोटा नाग पुर क्षेत्र से सरगुजा,जशपुर, कोरिया तथा चांगभार की जमीदारों को अलग करके मध्य प्रांत में शामिल किया गया। छत्तीसगढ़ में 14 रियासतें बनाई गईं, लार्ड कैनिंग ने स्पष्ट कर दिया था कि ‘सनदें भारत सरकारको देशी रियासतों द्वारा अनु चित कदमों से जाने, राज्य में प्राकृतिक निर्माण करने से रोक नहीं लगाई जाएगी। यदि किसी देशी रियासतके संस्थागत प्रशासन को भी ब्रिटिश सरकार द्वारा सम्भा लने की आवश्यकता उत्पन्न हुई तो सरकार के आदेश करने से भी कोई विफलता नहीं होगी। ‘समझौता या संधियों के उल्लंघन या फिर आज्ञाओं के अनुसार राज्य स्तर पर बढ़ी हुई रियायतें, संपत्ति तक की जब्ती कर छूट’ का भी प्रावधान किया गया।छग के सभी जमीदारों को जमीन का अधिकार नहीं दिया जा सका। जिन जमीँदरियों कोआधिकारिक तौर पर कोई संपत्ति नहीं मिली उनमें कौड़िया,नर्रा, सांगीमार, देवरी, फिंगेश्वर बिंद्रानवागढ़,खरियार, भट गांव, बिलाईगढ़, फुलझर, परपोड़ी, गंडई, ठाकुरटोला डौंडीलोहारा,अंबागढ़,पाना वरस,औंधी, पेंड्रा मतीन, उपरोरा माटिन भी शामिल थे।केन्द्रा, छुरी,कोरबा, चाम्पा,लाफा, सोनाखान था। इन जमींदारियों को केवल भूमि और जंगल का अधिकार दिया गया था 18 62 में रिचर्ड टेम्पल ने ज़मीं दारी के संस्थापक से सर्वे क्षण किया।1865 में 14 जागीरदारों को साम्यवादी राजा की उपाधि दी गई, प्रमुखों को सामंती प्रमुख, शासक प्रमुख या राजा कहा गया, उनके अलावा अन्य जागीरों को खालसा क्षेत्र के अधीन कर दिया गया।1905 के पुनर्गठन के बाद 14 रियासतें छत्तीस गढ़ क्षेत्र में शामिल हो गईं। इन रियासतों के साथ सर कार ने विभिन्न मुद्दों पर समझौता किया।1862 में रिचर्ड टेम्पल ने ज़मींदारी के संस्थापक से सर्वेक्षण किया। भारत की आजादी 15 अगस्त 1947 के बाद रियासतों का भारतीय संघ में विलय प्रस्ताव आया और 1जनवरी1948 तक छत्ती सगढ़ क्षेत्र की प्रमुख 14 रियासतों का विलय भारत में कर लिया गया, इसमें पं. रविशंकर शुक्ल का प्रमुख योगदान था, रियासतों के भारत संघ में संविलियन हेतु ठाकुर प्यारेलाल की अध्यक्षता में ‘कौंसिल ऑफ एक्शन इन छत्तीसगढ़ स्टेट स’ की स्थापना की गई थी, सचिव जयनारायण पांडे थे।संविलियन पर हस्ताक्षर करने वाली पहली रियासत खैरागढ़ तथा अंतिम रिया सत बस्तर थी।