खैरागढ़ उपचुनाव: सीट लोधी बहुल लेकिन निर्णायक भूमिका निभाएंगे साहू

(प्रियंका कौशल) वरिष्ठ पत्रकार 

छत्तीसगढ़ की खैरागढ़ विधानसभा सीट पर उपचुनाव हो रहा है। छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के विधायक देवव्रत सिंह के आकस्मिक निधन से रिक्त हुई खैरागढ़ सीट पर 12 अप्रैल को मतदान होना है। सीट भले छजकाँ की हो, लेकिन उपचुनाव का असल मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच नज़र आ रहा है। कांग्रेस ने यहां से यशोदा वर्मा को टिकट दिया है।। भाजपा ने पूर्व विधायक कोमल जंघेल को तो छजकाँ ने नरेंद्र सोनी को मैदान में उतारा है।

उम्मीदवारों का दमखम-

कांग्रेस उम्मीदवार यशोदा वर्मा ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष हैं।अपने गृह ग्राम देवारी भाटा की सरपंच रह चुकी हैं। जिला पंचायत सदस्य रही हैं। इनके पति भी जनपद पंचायत सदस्य रहे हैं।
भाजपा प्रत्याशी कोमल जंघेल इस सीट से विधायक बनकर संसदीय सचिव रह चुके हैं। उन्होंने उपचुनाव से ही खैरागढ़ में अपना खाता खोला था और पहली बार विधायक बने थे। खैरागढ़ में चार बार चुनाव लड़े और दो बार जीते। पिछले चुनाव में केवल 800 वोटों से देवव्रत सिंह से चुनाव हार गए थे।
स्व. अजीत जोगी की पार्टी छजकाँ से प्रत्याशी नरेंद्र सोनी स्व. देवव्रत सिंह के बहनोई हैं। तीन महीने पहले हुए नगरपालिका चुनाव में पार्षद चुनाव हारे हैं और अब विधानसभा उपचुनाव लड़ रहे हैं। इनकी यूएसपी इतनी है कि ये स्व. देवव्रत सिंह के बहनोई हैं और अप्रत्यक्ष रूप से ही सही राजपरिवार से जुड़े हुए हैं। उनको टिकट मिलने के बाद छजकाँ के कार्यकर्ता बड़ी संख्या में कांग्रेस प्रवेश कर चुके हैं।

जातिगत समीकरण का तानाबाना

खैरागढ़ विधानसभा सीट अपने जातिगत समीकरण और राजमहल के प्रभाव के लिए जानी जाती है। यहां तकरीबन 55 प्रतिशत लोधी निवास करते हैं। जिनका मुख्य व्यवसाय खेती-किसानी है। इसके बाद क्रमशः साहू, पटेल, आदिवासी व सतनामी जनसंख्या है।
लोधी बहुल होने के कारण कांग्रेस और भाजपा ने लोधी उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। इससे लोधी वोट बंट जाएगा। ऐसे में इस सीट पर दूसरे बड़ी जनसंख्या ‘साहू’ निर्णायक भूमिका में दिखाई दे रही है। कांग्रेस की तरफ से गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू और भाजपा की तरफ से पूर्व संसदीय सचिव डॉ सियाराम साहू ने मोर्चा संभाल रखा है। खैरागढ़ में आदिवासी मतदाताओं का भी ठीकठाक दखल है। वे भी इस उपचुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

राजमहल बैकफुट पर-

खैरागढ़ चुनाव को अपने रंग में रंगने के लिए मशहूर राजपरिवार इस उपचुनाव में बैकफुट पर दिखाई दे रहा है। कभी खैरागढ़ के चुनाव राजमहल से प्रभावित रहते थे,किन्तु इस बार ऐसा नहीं है। देवव्रत सिंह के निधन के बाद उनकी पूर्व पत्नी और वर्तमान पत्नी दोनों ही तटस्थ हैं। हालांकि प्रत्याशी के नाम की घोषणा के पहले स्व देवव्रत सिंह की पूर्व पत्नी पद्मा सिंह सक्रिय थीं। वे अपने दोनों बच्चों और समर्थकों के साथ सघन दौरा कर रही थीं। सम्भवतः वे कांग्रेस से टिकट की आशा रख रही थीं। लेकिन यशोदा वर्मा के नाम की घोषणा के बाद वे परिदृश्य से बाहर हो गईं।

पूरी भाजपा जुटी-

खैरागढ़ में भाजपा और कांग्रेस दोनों दल जान लगाकर लड़ रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह और उनके पुत्र अभिषेक सिंह का पूर्व संसदीय क्षेत्र होने से वे लगातार दौरे कर रहे हैं। भाजपा ने अपने दिग्गज नेताओं को जुटा दिया है। भीड़ दोनों की सभाओं में उमड़ रही है, चाहे रमन सिंह हों या भूपेश बघेल। लेकिन 15 साल सत्ता में रहने के बाद भाजपा द्वारा अंग्रेजों के जमाने की महत्वपूर्ण तहसील खैरागढ़ को जिला नहीं बनाने की टीस भी लोगों के मन में है।

 

भूपेश बघेल का मास्टरस्ट्रोक-

वहीं सत्तारूढ़ कांग्रेस के लिए भी ये सीट मायने रखती है। ऐसे में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उपचुनाव के घोषणा पत्र में मतदाताओं की नब्ज़ पर हाथ रख दिया है। खैरागढ़ को जिला बनाने की घोषणा का मास्टर स्ट्रोक मारकर उन्होंने अपनी राजनीतिक दूरदर्शिता का प्रमाण दिया है। दूसरा अतरिया के लोगों की नाराजगी दूर करने के लिए महाविद्यालय और हाईटेक बस स्टैंड की घोषणा कर जीत पक्की करने का प्रयास किया है। जानकारी के लिए बता दूं कि अतरिया में लोगों ने महाविद्यालय न होने के कारण चुनाव बहिष्कार की धमकी दे दी थी। लेकिन उन्हें महाविद्यालय के साथ बोनस में बस स्टैंड भी मिलने का वादा मिल गया।

अंततः मतदाता ही सर्वोपरि-

खैरागढ़ में 12 अप्रैल को मतदान होगा। 16 अप्रैल को नतीजे आएंगे। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही यहां मजबूत स्थिति में हैं। इसलिए परिणाम कुछ भी हों, वह चौकाने वाले नहीं होंगे। ये जरूर है कि ये उपचुनाव आने वाले विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है। यहां कांग्रेस को कुछ नहीं खोना है, लेकिन भाजपा यहां बहुत कुछ दांव पर लगाकर लड़ रही है। फ़िलवक्त यहां चुनावी सरगर्मी मौसमी गर्मी से भी ज्यादा चढ़ी हुई है। मतदाता क्या निर्णय करता है। उसके लिए चुनावी नतीजों की प्रतीक्षा करनी होगी।

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