किश्त {244}
प्राचीन पांच ललित कला केंद्रों में से एक खरौद छग के काशी के नाम विख्यात है। राम वनगमन परिपथ में स्थान दिया गया है। ऐसी मान्यता है कि रामायण कालीन शबरी के उद्घार और लंका विजय के पहले लक्ष्मण ने यहां खर-दूषण के वध के बाद ब्रह्महत्या के पाप से छुट कारा पाने महा देव की स्थापना की थी जो लक्ष्मणेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्घ है। मंदिर संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के संर क्षण में हैं।खर-दूषण कावध यहां होने के कारण नगरका नाम खरौद पड़ा है, मन्दिर नगर के प्रमुख देव के रूप में पश्चिम में पूर्वाभिमुख स्थित हैं,चारों ओर पत्थर की मजबूर दीवारेँ हैं,दीवारों के भीतर 110 फीट लम्बा, 45 फीट चौड़ा चबूतरा है। इसके ऊपर 48 फीट ऊँचा और 30 फीट गोलाई का मन्दिर है। गर्भगृह में एक विशिष्ट शिवलिंग स्थापित हैं इस शिवलिंग की विशेषता यह हैं कि इसमें एक लाख छिद्र हैं इसीलिए इसे लक्ष लिंग कहा जाता है।मान्यता है कि श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण द्वारा लक्ष्यलिंग की स्थापना की गई थी।आठवीं शताब्दी में जीर्णोद्घार चन्द्र वंशी हैहयवंशी रतनपुर के राजाओं द्वारा कराया गया था। यहां अनेक मन्दिर मठ और तालाब निर्मित करने का उल्लेख इस शिलालेख में है।इतिहासकारों की मानें तो राजा रत्नदेव तृतीय की रहला,पद्मा नामक2 रानियां थी। रानी रहला के सम्प्रद -जीजक नामक पुत्र हुए, पद्मा से पराक्रमी पुत्र खड्ग देव हुए जो रतनपुर केराजा भी थे।लक्ष्मणेश्वर मन्दिरका जीर्णोद्घार कराया,इससे पता चलता है कि मंदिर 8वीं शताब्दी तक जीर्ण हो चुका था।इतिहासकार कनिं घम ने भी 1873 -74 में इस जगह की यात्रा की थी। उन्होंने इसके इतिहास की चर्चा की है। कनिंघम ने भी माना,जगह का ‘खरौद’नाम संभवत: खर-दूषण से ही प्रेरित है। स्थानीय परंपरा के मुताबिक़,रामायणकाल में रावण के भाई खर और दूषण इसी क्षेत्र में रहते थे।यहां के तुरतुरिया में उनका एक और भाई,जबल रहता था। रामायण की कथा में राम लक्ष्मण और खर-दूषण के बीच के जिस लड़ाई का जिक्र हुआ है, वह यहीं पर लड़ी गई…! खरौद में एक पुराना पेड़ भी है। इस पर ढेर से चमगादड़ रहते हैं। यहां के लोग मानते हैं कि इसी के नीचे भगवान ने दोनों राक्षस भाइयों का वध किया था। लोग शबरीमाता, लखनेश्वर जैसे मंदिरों को भी रामायण काल से ही जोड़ते हैं। 07 वीं शताब्दी के कई ऐतिहासिक प्रमाण खरौद की प्राचीनता को तो सिद्ध करते ही हैं।लखनेश्वर मंदिर में अद्भुत लेट राइट (एक तरह की मिट्टी का) शिवलिंग है। कहते हैं कि इस लेटराइट शिवलिंग में लाख छिद्र हैं। कुछ लोग एक लाख शिवलिंग भी मानते हैं।लक्ष्मण ने यहां शिव की पूजा की थी। शिव लिंग पर चाहे जितना जल चढ़ाइए, जलस्तर हमेशा एक समान बना रहता है।लक्ष्मणेश्वर मन्दिर खरौद परिसर में महा शिवरात्रि पर मेला भी लगता है,श्रद्घालु मनो कामना पूर्ण करने एक लाख चावल सफेद रंग के कपड़े के थैले में भरकर ही चढ़ाते है। इसे लक्ष्य या लाख चावल भी कहते हैं।