त्याग के आनंद का पर्व है करवा चौथ : प्रवीण कक्कड़

           ( लेखक एक पूर्व अधिकारी हैं )      
आज करवाचौथ है। पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इलाके में सदियों से मनाया जाने वाला यह पर्व आज पूरे भारत का एक बहुत ही लोकप्रिय त्यौहार बन गया है। अगर भारत के बाहर का कोई व्यक्ति आकर इस त्यौहार को देख ले, तो वह निश्चित तौर पर इसे अत्यंत कठिन व्रत के तौर पर देखेगा लेकिन *भारतीय महिलाएं जिस उत्साह और आस्था के साथ दिनभर निराहार और निर्जला रहकर यह व्रत रखती हैं, वह अपने आप में बहुत ही विलक्षण बात है।*
दिन भर जल ग्रहण ना करना और शाम को चंद्रमा को अर्घ्य चढ़ाकर पति के हाथ से पानी पीना बहुत ही श्रम साध्य काम है। इसकी तुलना का अगर दूसरा कोई व्रत हिंदू धर्म में है तो वह तीजा का व्रत है। जिसमें दिनभर उपवास रखने के साथ ही रात में जागरण भी करना पड़ता है। पुराने समय की व्यवस्था पर जाएं तो उत्तर और मध्य भारत में जिन इलाकों में करवा चौथ नहीं मनाया जाता, वहां पर हरतालिका तीज मनाया जाता है लेकिन अब तो उन इलाकों में भी करवा चौथ का प्रचलन हो गया है, जहां पहले यह नहीं मनाया जाता था।
व्रत की इस तपस्या और साधना के साथ ही इसके इस पक्ष पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि यह दांपत्य की पवित्रता का भी पर्व है। एक बार तो पति पत्नी विवाह के समय अग्नि के सात फेरे लेकर परिणय सूत्र में बंधते हैं। पुराने जमाने में मैरिज एनिवर्सरी का चलन तो था नहीं, ऐसे में करवा चौथ जैसा व्रत पति पत्नी को सार्वजनिक रूप से एक दूसरे का जीवन साथी होने का मौका देते थे। भारतीय समाज की बनावट कुछ इस तरह की है कि पति और पत्नी भले ही जीवन साथी हों, लेकिन सामाजिक जीवन में वे एक दूसरे के साथ कम ही नजर आते थे।* यहां तक कि दावतों में भी पुरुषों की दावत अलग होती थी और महिलाओं की दावत अलग होती थी। वे किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में जाते थे तो पति आगे चलता था और पत्नी पीछे चलती थी। ऐसे में हमारे पूर्वजों ने करवा चौथ जैसे व्रत की संकल्पना की ताकि विवाह के बाद भी हर साल कम से कम एक बार तो पति और पत्नी समाज के सामने साथ साथ आएं।
जहां तक आज के समय की बात है तो अब तो पति और पत्नी ज्यादातर सार्वजनिक जगहों और कार्यक्रमों में साथ ही होते हैं। अब तो शहरों में उस तरह के संयुक्त परिवार नहीं बचे हैं, जहां पर सास ससुर और बड़े भारी परिवार के बीच पति और पत्नी एक दूसरे से बात करने में भी संकोच का अनुभव करें। ऐसे में करवा चौथ उनके लिए एक नए मायने लेकर आया है।
अब जो न्यूक्लियर फैमिलीज हैं या शहरों में पति पत्नी और बच्चों का परिवार है या ऐसे भी परिवार हैं जहां पति और पत्नी दोनों ही नौकरी पेशा है। ऐसे परिवारों में पति और पत्नी के बीच संवाद सीमित हो जाता है।
सुबह दोनों अपना-अपना टिफिन लेकर दफ्तर चले जाते हैं और शाम को घर वापस लौटते हैं। इस वापसी में दिनभर की थकान शामिल रहती है। ऐसे में कई बार घरों में झगड़े बढ़ने लगते हैं। पति और पत्नी के अहंकार का टकराव होने लगता है। छोटी-छोटी बातों पर झगड़े होने लगते हैं। कई बार तो ऐसी स्थिति आती है, जब दोनों ही नहीं चाहते कि उनमें झगड़ा हो, लेकिन आदतन किसी मामूली से बात पर टकराव और बहस हो जाती है।
यह टकराव और बहस आज के शहरी परिवारों का एक आम हिस्सा है। इसी हिस्से का एक रूप हम मानसिक बीमारियों के तौर पर देखते हैं, जिसके कारण डिप्रेशन एक आम बीमारी की तरह हमारे घरों में जगह बनाता जा रहा है।
लेकिन करवा चौथ जैसे त्यौहार पर जब कोई स्त्री अपने पति के लिए व्रत रखती है तो कितना भी आधुनिक होने के बावजूद पति की अंतरात्मा में इतनी बात तो आती ही है कि जिस पत्नी से वह बेवजह झगड़ा करता जाता है, वह उसके लिए दिन भर से भूखी प्यासी है। व्रत तोड़ने के समय पति इस बात का एहसास करता है कि कहीं उसके आचरण में कोई भूल तो नहीं है। भारतीय संस्कृति में माना भी गया है कि प्रेम का मूल तत्व त्याग है। ऐसे में इस तरह त्याग का प्रदर्शन करके महिला दांपत्य के उस रिश्ते को एक नई ऊंचाई और गहराई प्रदान करती हैं जो असल में तो पति और पत्नी के बीच हमेशा ही होना चाहिए। यह उनके रिश्ते में आई किसी भी तरह की जड़ता को तोड़ने का काम करती है।
इसलिए करवा चौथ सिर्फ पति और पत्नी के प्रेम का त्यौहार नहीं है, यह पारिवारिक रिश्ते की मिठास का त्यौहार भी है। अगर यह मिठास ना हो तो कोई महिला दिन भर भूखे प्यासे रहने के बाद शाम को इस तरह से सोलह सिंगार करके चंद्रमा और अपने पति की आरती नहीं कर सकती। ऐसे त्योहारों की रचना भारतीय समाज ही कर सकता है और उनका निर्वाह भी सिर्फ भारतीय स्त्री ही कर सकती है।
त्याग, समर्पण और प्रेम के पर्व करवाचौथ की बहुत-बहुत बधाई।

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