उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय में स्तब्ध कर देने वाली घटना सामने आने के बाद से एक बार फिर बहस छिड़ चुकी है कि जिहादी गतिविधियों में सम्मिलित रहने वाले लोग शासकीय संस्थानों में नियुक्त कैसे हो जाते है? ऐसी कौनसी विशेष योग्यताएं होती है, जिनके आधार पर उनकी सभी अनैतिक गतिविधियों को नजरअंदाज कर शासकीय संस्थाओं पर स्थापित कर दिया जाता है और इसके लिए सरकारी तंत्र को अपना दायित्व बोध तक नहीं होता है। सर्वप्रथम किसी एक के द्वारा किसी भी प्रकार से शासकीय पद को प्राप्त करना और फिर अपने पद का दुरूपयोग करते हुए एक इकॉसिस्टम तैयार करना और फिर अपने एजेंडे को पूरा करना उनका मुख्य उद्देश्य होता है।
उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय में भी यही सभी कुछ निकलकर सामने आया है। विश्वविद्यालय में अध्यापन के नाम पर असंवैधानिक कार्यो के साथ ही ज़िहादी एजेंडे को पूरा किया जा रहा था। विश्वविद्यालय मे अध्ययन करने वाले विद्यार्थियो ने बतलाया कि आरोपित जिहादी मानसिकता से ग्रसित के द्वारा विश्वविद्यालय की छात्रों को पढाई के नमाज पढ़ने के फायदे गिनाते हुए धर्म परिवर्तन के उद्देश्य से भ्रमित करने का काम किया जा रहा था। यह सभी कुछ घटनाक्रम काफी लंबे समय से चल रहा था।
इस पूरे प्रकरण के चलते मध्य प्रदेश के सभी शासकीय और निजी शिक्षण संस्थानो मे बड़े पदो पर बैठे लोगो के प्रति संदेह की स्थिति उतपन्न हो गयी है। जिसकी जांच होना आवश्यक है। केवल शैक्षणिक योग्यता ही नहीं बल्कि उनके निजी व्यवहार और जीवन मे होने वाली गतिविधियो के विषय मे भी जानकारी सार्वजनिक होना जरूरी हो गया है। एसे सभी पदो पर नियुक्त लोगो की जांच के साथ-साथ किसके द्वारा उनकी नियुक्ति की अनुशंसा की गयी है तथा किसके कार्यकाल मे नियुक्तिया हुयी उन सभी लोगो की जवाबदेही भी तय की जाने की आवश्यकता है। पुलिस कार्यवाही के साथ-साथ प्रशासनिक जांच कर उचित कार्यवाही की जानी चाहिए जिससे कि राष्ट्र विरोधी गतिविधियो मे लगे लोगो को उचित दण्ड मिल सके और उदाहरण बन सके।
इंदौर का शासकीय विधि महाविद्यालय के साथ ही उज्जैन का विक्रम विश्वविद्यालय भी भारत के उन्ही शिक्षण संस्थानो मे शामिल हो गया है। जहा देश विरोधी गतिविधियो को बिना किसी रोक-टोक के आगे बढ़ाया जा रहा था। इंदौर के विधि महविद्यालय के बाद विक्रम विश्वविद्यालय में भी कार्यरत लोगो के द्वारा बड़े स्तर पर अपने सगे-सम्बन्धियो को अस्थायी नियुक्तीया प्रदान कर अपने एजेंडे को धार दी जा रही थी। जिसे रोकने का काम विश्वविद्यालय प्रबंधन की भी जिम्मेदारी थी, किन्तु विश्वविद्यालय प्रबंधन ने भी अपनी भूमिका को संदिग्ध रखा और किसी भी प्रकार की कार्यवाही नहीं की गयी। एसी स्थिति मे राष्ट्र विरोधी गतिविधियो के मामले मे प्रशासन को गंभीरता से कार्यवाही करने की आवश्यकता है।
– सनी राजपूत, एडवोकेट, उज्जैन ( लेखक के अपने निजी विचार हैं )