


{किश्त 238}
मप्र के पचमढ़ी में एक जटाशंकर प्रसिद्ध है वहीँ मनेंद्रगढ़ के पास स्थित है छ्ग का जटाशंकर मंदिर।घनघोर जंगल में पहाड़ी के नीचे स्थित प्राचीन शिव मंदिर ‘जटाशंकर’ है। दुर्गम वन,पगडंडियों,पथरीले रास्तोँ को पार कर पहाड़ी के अंदर लगभग 52 हाथ अंदर घुटनों, कोहनियों के बल पर चल शिव के दर्शन करने पहुंचा जा सकता है। मंदिर का नाम जटाशंकर पड़ने के पीछे शिवलिंग में जटाओं जैसी आकृति साफ दिखाई पड़ती है। गुफा के इस मंदिर से कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं,बीहड़ जंगल के बीच गुफा में भोलेनाथ पर प्रकृति आदिकाल से शिव लिंग पर अनवरत जला भिषेक कर रही है। जटा शंकर की सबसे खास बात यह है कि भोलेनाथ एक पहाड़ी गुफा में विराजमान हैं और 52 हाथ अंदर घुटने व कोहनी के बल पहुंचने पर भक्तों को दर्शन देते हैं। आदिकाल से ही गुफा के भीतर विराजित शिवलिंग की प्रकृति 24 घंटे अनवरत जलाभिषेक कररही है,जटा शंकर धाम बैकुंठपुर से लग भग 80 किमी दूर मनेंद्रगढ़ के ग्राम चपलीपानी बिया वन जंगल में स्थित है। दूर -दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं और सावन में हर सोमवार को मेले जैसी भक्तों की भीड़ उमड़ती है। घनघोर जंगल में पहाड़ी के नीचे स्थित प्राचीन शिवमंदिर जटा शंकर है। भोलेनाथ तक पहुंचने के लिए पहले 730 सीढ़ी उतरनी पड़ती है।फिर दुर्गम वन,पगडंडी, पथरीली रास्ते को पार कर गुफा के पास पहुंचते हैंगुफा के अंदर लगभग 52 हाथ अंदर घुटने-कोहनियों के बल पर चलकर भगवान भोलेनाथ का दर्शन होता है। प्राचीन शिव मंदिर तक पहुंचने सिर्फ पैदल जाने का मार्ग ही है।
शिव,भस्मासुर की
मान्यता भी……
ऐसी मान्यता है कि जब भगवान शिव भस्मासुर के डर से इसी पहाड़ी गुफा के भीतर छिप गए थे। तब उनकी जटाओं के अवशेष पत्थरों में बन गए थे, जो जटाओं जैसे नजर आते हैं। वहीं मंदिर में शिव की मूर्ति के ऊपर कुदरती जल की बूंदें अवनरत अपने आप गिरती है। श्रद्धालुओं के अनुसार जटाशंकर धाम में शिव का 24 घंटे प्राकृतिक जलाभिषेक होते रहता है। श्रद्धालुओं को भी बारह महीने प्राकृतिक रूप से पहाड़ से रिसा जल पीने को मिलता है। यहां जल इतना ठंडा होता है कि नहाने से लोगों को कपकपी आजाती है। श्रद्धालु इस जल का उपयोग पूजा-पाठ,अनुष्ठान सहित भोजन प्रसाद बनाने में करते हैं।भोलेनाथ के दरबार में पहुंचने के लिए सोनहरी मुख्य मार्ग से दस किमी भीतर घने जंगलों में कच्ची सड़क से होकर जाना होता है। चपलीपानी से होकर 730 सीढिय़ों को उतरकर जटाशंकर धाम तक पहुंचते हैं। घने जंगल में सीढिय़ों का निर्माण आसान नहीं था, लेकिन वन विभाग द्वारा भक्तों की सुविधा के लिए सीढिय़ों का निर्माण कराया गया है। जटा शंकर धाम में युवा, पुरुष व महिलाएं सभी लोग भोले नाथ को जल चढ़ाने पहुंचते है। इस धाम में एक कुंड बना है। जिसमें साल भर बराबर पानी भरा रहता है। उसी जल को लेकर भोले नाथ को चढ़ाते हैं । भोले नाथ के साथ हनुमान मंदिर भी है।सालों से लोग जटा शंकर धाम में पूजा-अर्चना करने आ रहे हैं। बताया जाता है कि पहले यहां ऋषि मुनि रहा करते थे।