शहीद वीरनारायण पुरूस्कार प्राप्त “बिरहोर” अति पिछड़ी जनजाति के लिए अपना सर्वस्व जीवन त्याग करने वाले महान सामाजिक कार्यकर्ता जागेश्वर यादव मुझसे मिलने महासमुंद आये 15 वर्ष पूर्व जब मैं जशपुर क्षेत्र में सेवारत रहा उस दौरान हम लोग बिरहोर जनजातियों के उत्थान के लिए इनका ही सहयोग लेते थे, मुझे आज भी वो दिन याद आते है जब हम लोग बिरहोर लोगो से मिलने जाते थे तो वो हमसे दूर भागते थे किन्तु जागेश्वर जी के साथ जाने पर ही वे शासकीय योजनाओं का सहयोग लेते थे,
आदिवासी विकास परियोजना में कार्य के दौरान जागेश्वर जी के साथ मैं बहुत ही करीब से बिरहोर जनजाति को जाना,पूरे विश्व मे ये जनजाति ही ऐसी है जो बंदरो का शिकार कर खाती थी, किन्तु आज श्री जागेश्वर जी के प्रयास से वे लोग बंदरो को हनुमानजी के रूप में पूजना शुरू कर दिए है आज वे शिक्षा स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो गए है 70 लोग आज शासकीय सेवा में आ गए है एवं कृषि कार्य करते है, छत्तीसगढ़ में बिरहोर की जनसँख्या लगभग 3000 है एवं पूरे भारत मे 7000 है, ये जनजाति झारखंड व उड़ीसा में भी पाई जाती है।
मुझे आज भी याद है जब हम लोग आदिवासी विकास परियोजना में पदस्थ हुए थे तो हमारे परियोजना संचालक श्री सुरेंद्र कुमार बेहार IAS ने सर्व प्रथम जागेश्वर जी के माध्य में बिरहोर के घर एक सप्ताह के लिये रहने भेजा था इस दौरान सुदूर जंगल मे एक बिरहोर परिवार के घर मे ही रहकर इनके बारे में अध्ययन करना हमारे जीवन का स्वर्णिम पल रहा है, बिरहोर परिवार हमे प्रतिदिन जंगल से भाजी लाकर खिलाते थे, उसके बाद से आज तक ऐसी भाजी मैने कभी नही देखी, बिरहोर परिवार में बिताए गए दिन और उनके बीच किये गए कार्य को मैं याद कर आज भी रोमांचित हो जाता हूँ। जागेश्वर जी 11 वी की पढ़ाई छोड़ कर बिरहोर लोगो के लिए काम कर रहे है तब से ही वे केवल नेकर (हाफ पैंट) में ही बिना चप्पल जूते के रहते है, वे संघ का प्रथम वर्ष का प्रशिक्षण भी 1987 में मेरे ही साथ अम्बिकापुर में किये है, श्री जागेश्वर का त्याग समर्पण हम सभी के लिए प्रेरणादायीं है ऐसे महान समाज सेवी से मित्रता पर मुझे गर्व है। संदीप ताम्रकर , लेखक