दम तोड़ते नक्सलवाद में प्राण फूंकने की कोशिश करते उसके पैरोकार

छत्तीसगढ़ में आम आदमी पार्टी की एक पूर्व नेता हैं सोनी सोरी। इन्होंने वर्ष 2014 में आम आदमी की टिकट पर बस्तर लोकसभा से चुनाव लड़ा था और हार गईं थीं। इनको बस्तर की जनता ने सिरे से नकार दिया था, उसका परिणाम यह हुआ कि आम आदमी पार्टी से तो ये बाहर गईं हीं, किसी दूसरे दल ने भी इनको कभी एप्रोच नहीं किया।

*जनता ने इनको नकार दिया*, इस वाक्य को इसलिए भी रेखांकित करना जरूरी है क्योंकि इन मोहतरमा से ज्यादा वोट उस वक़्त नोटा को मिले थे।

2014 के लोकसभा चुनाव में माओवाद प्रभावित बस्तर में 38,772 मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया था, जो राज्य में सबसे अधिक था। इसी चुनाव में बस्तर सीट पर आम आदमी पार्टी की प्रत्याशी सोनी सोरी भी चुनाव मैदान में थीं। उन्हें केवल 16903 वोट मिले थे। उस चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की विमला सोरी भी मैदान में थी। विमल सोरी को भी सोनी सोरी से ज्यादा वोट मिले थे। विमला सोरी को 33, 883 वोट मिले थे।

2014 ने बस्तर लोकसभा सीट पर भाजपा के दिनेश कश्यप ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के दीपक कर्मा को 1 लाख 24 हजार 359 मतों से हराया था। विजयश्री हासिल करने वाले भाजपा प्रत्याशी दिनेश कश्यप को कुल 3, 85, 829 वोट मिले थे।

2019 में सोनी सोरी ‘आप’ से बाहर हो गयी थीं और छत्तीसगढ़ के एक प्रतिष्ठित प्रादेशिक न्यूज़ चैनल IBC24 ने उस वक़्त बताया था कि सोनी सोरी ने आप छोड़ दी है और वो राहुल गांधी से खासी प्रभावित हैं।

ये सब बताने का उद्देश्य यह है पहले पाठकों के सामने सोनी सोरी की एक तस्वीर साफ कर दूं कि तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी राजनेता भी रही हैं, चुनाव भी लड़ी हैं, वे किससे प्रभावित रही हैं व बस्तर के आदिवासी समाज में उनकी कितनी स्वीकार्यता है।

दरअसल, कल सोनी सोरी का एक वीडियो देखा। उसमें सोनी सोरी दो बच्चियों और एक महिला को बैठाकर कुछ कह रही हैं। बस्तर को अपने *कथित मानवाधिकारवाद* के नाम पर बदनाम करने के लिए कुख्यात सोनी सोरी, जो कुछ भी उस वीडियो में कह रही हैं, उसमें बहुत ज्यादा विरोधाभास है।

एक तरफ तो सोनी सोरी कह रही हैं कि इन बच्चियों (वीडियो में दिखाई गई लड़कियां) को पुलिस ने चार से पांच दिन अपनी सुरक्षा में रखा। दूसरी तरफ कह रहीं हैं कि इन बच्चियों को पुलिस ने जबरन नक्सलियों की वर्दी पहनाने की कोशिश की। फिर सोनी सोरी कह रही हैं कि अब ये बच्चियां आपको किसी भी दिन मृत मिलेंगी। साथ ही उन्होंने पुलिस पर फर्जी मुठभेड़ का भी आरोप लगाया है।

बार-बार पुलिस नक्सल मुठभेड़ को फर्जी कहने वाली सोनी सोरी, क्या नक्सलियों को प्रमाण पत्र देने के लिए अधिकृत हैं, कि वे नक्सली हैं या नहीं। सोनी सोरी जी, यदि आप हर नक्सली को पहचानती हैं तो छत्तीसगढ़ पुलिस की नक्सलियों को पहचानने में मदद ही कर दें ताकि सारे नक्सली जेल के भीतर ठूंसे जा सकें और बस्तर के आम आदिवासी चैन की सांस ले सके।

बहरहाल, सोनी सोरी कहना क्या चाहती हैं, ये पूरे वीडियो में समझ नहीं आता है। अगर कुछ समझ में आता है तो केवल इतना कि ऐन केन प्रकारेण खत्म होते माओवाद को बचाने के लिए जितना झूठ गढ़ा जा सकता है, गढो। सोशल मीडिया का जितना दुरुपयोग किया जा सकता है, करो। क्योंकि कोई दिल्ली, जयपुर, कलकत्ता, चेन्नई या कश्मीर से किसी बात की पुष्टि करने तो आएगा नहीं। रायपुर से भी लोग ज़हमत नहीं उठाते कि किसी आरोप की पुष्टि करने ग्राउंड ज़ीरो पर पहुंचा जाए।

सोनी सोरी कह रही है कि इन लड़कियों को पुलिस ने 23 से 28 मई 2024 तक अपने पास रखा, लेकिन थाने या जेल में नहीं, वहीं-कहीं खुले मैदान में अपने सुरक्षा घेरे में। उसी दौरान पुलिस ने दूसरी तरफ मुठभेड़ को अंजाम दिया।

फिर आगे वो ये भी कह रही है कि इन्ही लड़कियों को घर में धान कूटते हुए पुलिस ने जबरन नक्सलियों की वर्दी पहनाने की कोशिश की। फिर सोनी कहती है कि लड़कियों ने इनकार कर दिया, नहीं तो ये मारी जाती।

…तो सोनी सोरी के मुताबिक एक तरफ तो छत्तीसगढ़ पुलिस बेहद क्रूर है, जो जबरिया किसी को भी नक्सलियों की वर्दी पहनने पर मजबूर करती है, ताकि एनकाउंटर के नम्बर बढ़ा सके, फिर दूसरी तरफ बकौल सोनी सोरी छत्तीसगढ़ पुलिस इतनी कमजोर या मानवीय है कि लड़कियों के मना करने पर उनकी बात मान भी जाती है। यानि चित भी अपनी और पट भी अपनी।

ख़ैर, सोनी सोरी की बातों से ये भी पता चला कि बस्तर पुलिस ने लड़कियों को मुठभेड़ से सुरक्षित रखा और मुठभेड़ खत्म होने के बाद उन्हें बिना कोई नुकसान पहुचाये सकुशल छोड़ भी दिया। लेकिन इसमें सोनी सोरी को बहुत कुछ भयानक दिखाई दे रहा है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि सोनी सोरी एक नैरेटिव बनाने के लिए नाबालिग लड़कियों का वीडियो बनाकर उनकी पहचान उजागर कर रही है, जो कि बाल अधिकार सरंक्षण कानून का सरेआम उल्लंघन है।

सोनी जी, क्या आपका देश की कानून व्यवस्था में किंचित भी विश्वास नही है? या आप केवल समझदार होने का दिखावा करती हैं। क्या आप नहीं जानती कि नाबालिग लड़कियों का इस तरह वीडियो बनाने में इस्तेमाल करना दण्डनीय अपराध की श्रेणी में आता है। आप उनका नाम, पता, चेहरा सब उजागर कर रही हो।

अंतिम बात कि सोनी सोरी इतने दावे से कैसे कह रही है कि ये बच्चियां भी मारी जाएंगी? जिन बच्चियों का उनके इलाके में हुई पुलिस-नक्सली मुठभेड़ में बाल भी बांका नहीं हुआ। जबरन उनका वीडियो बनाकर, अपनी बात पर जबरिया सहमति दिलवाकर, उनकी पहचान उजागर करके और झूठा नैरेटिव खड़ा करने की कोशिश के बाद अपने वीडियो को बच्चियों की मौत की भविष्यवाणी पर खत्म करना सिर्फ आपकी अमानवीयता और मौकापरस्ती को दर्शाता है। आखिर में सोनी सोढ़ी से मेरे दो प्रश्न हैं कि आप कभी उन आदिवासी परिवारों का वीडियो नहीं बनातीं, जिनके परिजनों को नक्सलियों ने मार डाला है। आप कभी नक्सलियों को हिंसा छोड़ने की नसीहत नहीं देती।

दूसरा सवाल ये कि पूरे वीडियो में बार बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और विदेश में बैठे लोगों से आप अपील कर रही हैं। आप जरा बताएंगी कि विदेश में बैठे वो कौन ‘लोग’ हैं, जिनकी मदद आपको चाहिए? इसके पीछे आपकी मंशा क्या है? मैं फिर पूछना चाहती हूँ कि क्या देश के कानून व्यवस्था में आपको विश्वास नहीं है?

चलते-चलते एक बात और…अभी कुछ दिन पहले आप मुझे कांकेर-नारायणपुर बॉर्डर पर कोटरी नदी के किनारे मिलीं थीं। कांकेर मुठभेड़ में 29 नक्सलियों के मारे जाने के बाद तकरीबन 5-7 दिन बाद ही कोटरी नदी के किनारे कथित बेचाघाट बचाओ आंदोलन के टेंट में आप एक बड़ी बैठक ले रही थीं। जब मैंने आपसे पूछा था कि बेचाघाट ब्रिज क्यों नहीं बनने देना चाहती तो आपने बड़े गोल मोल जवाब दिए थे। उस पर फिर कभी लिखूंगी, लेकिन अभी आप केवल इतना सुन लो, झूठ बहुत दिन नहीं चलता। बस्तर में दम तोड़ रहे नक्सलवाद में अब आप अपने प्रपंच से प्राण नहीं फूंक पाएंगी। आपका ताज़ातरीन वीडियो ही आपके झूठ का स्पष्ट प्रमाण है।

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प्रियंका कौशल ( लेखक ) 
स्थानीय संपादक
भारत एक्सप्रेस न्यूज़ चैनल
priyankajournlist@gmail.com

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