क्या अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है माओवादी उग्रवाद?

छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बने तकरीबन 5 महीने हो चुके हैं। इसलिए इसकी नीयत और नीति की समीक्षा तो बनती है। हो सकता है कि कुछ लोगों 5 महीने का समय कम लगे क्योंकि इन्हीं पांच महीनों में लोकसभा चुनाव सम्पन्न हुए, तीन महीने तो आदर्श अचार संहिता लगी रही।

बहरहाल, नक्सलवाद छत्तीसगढ़ में सरकारों के सामने हमेशा से सबसे बड़ी चुनौती रहा है। लिहाज़ा हर विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दल नक्सलवाद से निपटने के दावे/वादे भी करते रहे हैं। लेकिन सत्ता में आने के बाद सरकारों की प्राथमिकता बदल जाया करती है।

लेकिन इस बार कमाल हो गया है। छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव साय सरकार माओवादी उग्रवाद को जड़ से साफ़ करने के लिए जो प्रतिबद्धता दिखा रही है, वह पहले कभी किसी सरकार में नज़र नहीं आयी। पूर्ववर्ती भाजपा सरकारों ने एंटी नक्सल ऑपरेशन चलाये। रमन सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में सरगुजा जैसा बड़ा इलाका नक्सल मुक्त भी हुआ। लेकिन बस्तर से नक्सलियों का पूरी तरह सफाया नहीं हो पाया था। पिछली कांग्रेस सरकार ने तो एंटी नक्सल ऑपरेशन पर पूरी तरह से रोक लगा दी थी। पूर्व सीएम भूपेश बघेल के राज में नक्सलियों की मौज थी। पुलिस अफसरों का मनोबल टूट रहा था। लेकिन जैसे ही 2024 में छत्तीसगढ़ में नई सरकार बनीं। मुख्यमंत्री बने ठेठ आदिवासी नेता विष्णुदेव साय, जो राजनीति के अनुभवी भी थे और अपने समाज का दर्द भी बखूबी महसूस करते थे। छत्तीसगढ़ के गृहमंत्रालय की कमान समर्पित भाव वाले युवा नेता विजय शर्मा को मिली। इसपर तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का साथ भी मिला। आज परिणाम सबके सामने है।

कल ही यानी 8 जून को बस्तर आईजी पी सुंदरराज बस्तर के नारायणपुर में 7 नक्सलियों के मारे जाने के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में बता रहे थे कि बस्तर संभाग में वर्ष-2024 में अभी तक कुल-71 मुठभेड़ हुई है। इन मुठभेड़ के बाद 123 माओवादियों के शव एवं 136 हथियार बरामद किये गए हैं। इसी प्रकार वर्ष 2024 में अब तक कुल-399 माओवादियों द्वारा शासन के समक्ष समाज की मुख्यधारा मे जुड़ने के लिये आत्मसमर्पण किया गया है।

ये महज़ आंकड़े नहीं है, बल्कि बदलते बस्तर की नई तस्वीर है। छत्तीसगढ़ पुलिस को जब मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति का साथ मिला तो उन्होंने अपने पूरे शौर्य के साथ बुद्धिबल का भी उपयोग किया। बुद्धिबल के उपयोग से मेरा आशय उस नई स्ट्रेटजी से है, जिस पर वर्तमान में बस्तर पुलिस काम कर रही है। पहले कमजोर स्ट्रेटेजी के कारण जवानों की टीम का बस्तर के जंगलों में चल देने का फायदा नक्सलियों को ही ज्यादा होता था। लोग कहने लगे थे कि बॉर्डर पर जवानों की उतनी शहादत नहीं होती, जितनी छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की गोली से जवान शहीद होते हैं। लेकिन आज मामला बिल्कुल उल्टा है। आज छत्तीसगढ़ में हमारे जवान नक्सलियों को मारकर आ रहे हैं, और पिछले 5 महीनों में जवानों की शहादत शून्य के आंकड़े पर पहुंच गई है। इस बात को बिना बस्तर आये समझना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। बस्तर की भौगोलिक परिस्थिति बहुत जटिल है। नदी, नाले, खन्दक, पहाड़,घने जंगलों में नक्सलियों के गोरिल्ला वॉर के चक्रव्यूह में खुद को सुरक्षित रख पाना बेहद पेचीदा काम है। लेकिन अब छत्तीसगढ़ पुलिस बहुत सोच समझकर, योजनाबद्ध तरीके से उन्हीं जंगलों में नक्सलियों को छका रही है, जहां कभी नक्सल एम्बुश में फंसकर एक साथ 76 जवान शहीद हो जाया करते थे।

इन सबमें जो सबसे ज्यादा प्रशंसनीय है, वह है बस्तर पुलिस के सूचना तंत्र का मजबूत होना। इसी सूचना तंत्र के बलबूते पर किसी भी ऑपरेशन की सफलता निर्भर होती है। जंगलों में नक्सली कहाँ इकट्ठा होने वाले हैं, कितनी संख्या में हैं, किन हथियारों के साथ हैं, इसकी सटीक सूचना पर बस्तर पुलिस उनतक पहुंच पा रही है। पहले हर बड़ी घटना और जान माल की क्षति का दोष कमजोर सूचना तंत्र को ही दिया जाता रहा है।

दूसरी सबसे अच्छी बात है,पुलिस और अन्य अर्धसैनिक बलों का समन्वय। पिछले कुछ वर्षों में जब जब एंटी नक्सल ऑपरेशन फेल हुए। तब तब पुलिस और अन्य केंद्रीय बलों में समन्वय की कमी का मुद्दा गरमाता रहा। लेकिन इन पांच महीनों में कोर्डिनेशन देखते ही बनता है।

इसका सबसे अच्छा उदाहरण कांकेर में हुई सबसे बड़ी पुलिस नक्सली मुठभेड़ में नज़र आया। इस मुठभेड़ में 29 नक्सली मारे गए। उनके शव भी हथियारों के साथ बरामद हुए। इस ऑपरेशन को कांकेर पुलिस और बीएसएफ ने मिलकर अंजाम दिया। सबसे महत्वपूर्ण बात की बीएसएफ और कांकेर पुलिस मिलकर सर्चिंग कर रहे थे। वे साथ में अभ्यास भी कर रहे थे, पुलिस और बीएसएफ के जवान रोज आपस में मिलते थे और उन्होंने आपस मे एक बॉन्डिंग बना ली थी। मैं जब कांकेर और नारायणपुर बॉर्डर पर हुई इस मुठभेड़ को कवर करने ग्राउंड ज़ीरो पर गयी तो पुलिस और बीएसएफ दोनों के टीम लीडर्स से हुई बात के आधार पर मैं ये कह रही हूँ।

यहां एक बात का उल्लेख जरूरी है कि कांकेर की मुठभेड़ की खबर आते ही पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इसे फर्जी कहा था, लेकिन अगले ही दिन खुद नक्सलियों ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर मुठभेड़ और उसमें मरने वाले नक्सलियों के आंकड़ों को सही बताया था। नक्सलियों ने एक के बाद एक दो प्रेस रिलीज़ जारी की थी और मेरे गए नक्सलियों का कैडर, उनके नाम, पते सबकी जानकारी दी थी।

नक्सलवाद को खत्म करने लिए राज्य सरकार भी अपने प्रयासों में कोई कमी नहीं रखना चाहती इसलिए ‘नियद नेल्लानार’ जैसी योजनाएं लायी गईं है। नियद नेल्लानार गोंडी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ में मेरा सुंदर गांव। इस योजना के तहत बस्तर के युवाओं को मुख्यधारा से जोड़ा जा रहा है। उनके लिए रोजगार के साधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं। स्वरोजगार के लिए उन्हें सरकारी आर्थिक मदद ढ़ी जा रही है। अपने गाँव अपने इलाके को शान्त, सुंदर व आर्थिक रूप से सुदृढ करने के लिए उन्हें जगरूक किया जा रहा है।

कल जब आईजी बस्तर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे, तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय नई दिल्ली के द्वारका स्थित ट्राइबल यूथ हॉस्टल में आदिवासी छात्रों से संवाद कर उन्हें सफलता के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे। छत्तीसगढ़ के अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति व अन्य पिछड़ा वर्ग के युवाओं को सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने दिल्ली में अपने खर्च पर सारी व्यवस्थाएं कर रखी हैं। 50 सीटों वाले होस्टल को राज्य सरकार 200 सीटों वाला करने जा रही है ताकि छत्तीसगढ़ के वंचित वर्ग के युवा देश की सर्वोच्च प्रतिष्ठित सेवाओं तक पहुंच सकें।

राज्य सरकार नक्सलियों की आत्मसमर्पण नीति में बड़ा बदलाव करने जा रही है। खुद उपमुख्यमंत्री और गृहमंत्री विजय शर्मा बार-बार बस्तर जा रहे हैं। बस्तर के बुद्धिजीवियों और पत्रकारों से सलाह मशविरा कर रहे हैं। पहली बार ऐतिहासिक रूप से नक्सलियों से समर्पण नीति को लेकर सुझाव मांगे गए हैं। इसके लिए मेल आईडी, प्रपत्र, फोन नम्बर इत्यादि जारी किए गए हैं। विजय शर्मा अपील कर रहे हैं कि कोई भी उन्हें सीधे संपर्क कर बात कर सकता है।

अंत में सबसे बड़ी बात कि छत्तीसगढ़ सरकार उस प्रोपोगेंडा से लड़ने के लिए भी मानसिक रूप से तैयार है, जो अर्बन नक्सलियों द्वारा रचा जाता है। सरकार को पता है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसे घेरने की साजिश भी होगी और बदनाम करने के लिए झूठे नैरेटिव भी गढ़े जाएंगे। नक्सलियों की मौत पर रुदालियों का रुदन शुरू भी हो चुका है। बस अब डटे रहने की जरूरत है।

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प्रियंका कौशल ( लेखक )
स्थानीय संपादक
भारत एक्सप्रेस
priyankajournlist@gmail.com

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