{किश्त 99}
भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान,तब की पीएम इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाक के 10 मिलियन से अधिक शरणा र्थियों का सामना करते बहु आयामी रणनीति अपनाई थी।तब इंदिराजी ने अद्भुत धैर्य,संयम के साथ काम किया।उन्होंने निर्णायक रूप से युद्ध जीता।पाक को दो भागों में विभाजित कर दिया नए देश बांग्ला देश के साथ….,जिसमें पाक की 60%से अधिक आबादी शामिल थी।1971 की जीत कई मायनों में महत्व पूर्ण थी।नया नागरिकता (संशोधन)अधिनियम उन हिंदू आप्रवासियों को सीधे तौर पर प्रभावित नहीं कर सकता है जो 1961 और 1974 के बीच भारत आए थे।फिर भी,नए कानून और देशभर में शुरू किए गए आंदोलनों नेउन शरणार्थियों पर ध्यान केंद्रित किया है, जिन्हें वापस भेज दियागया था।अविभाजित मध्यप्रदेश में वन क्षेत्र,भूमि आवंटित की गई और मतदान का अधिकार दिया गया,उप- विभाजन में चुनाव लड़ने का अधिकार छोड़कर (यह क्षेत्र आदिवासियों के लिए आरक्षित है)।एक लाख से अधिकआबादीवाले शरणा र्थियों का राजनीतिक दब दबा नाजुक बना हुआ है।नये नागरिकता क़ानून (सीएए) को लेकर चल रहे विवादों के बीच छग के माना,बस्तर में 60 साल से अधिक समय से ही बसाये गये उन हिंदू शरणार्थियों को लेकर सवाल उठाये जा रहे हैं।शरणार्थी,बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान बांग्ला देश भारत की सीमा को पाक सेना की एसएसजी इकाइयों से सुरक्षित आश्रय देने के लिए उनके नरसंहार से बचने के लिए खोला था।छत्तीसगढ़,असम,पश्चिम बंगाल,त्रिपुरा और मेघालय, राज्य सरकारों ने शरणार्थी कैंप लगवाये थे।1971 के खूनी संघर्ष में 10 लाख से ज्यादा बांग्लादेशी शरणा र्थियों ने भारत में शरण लिया था। 2001 की एक रिपोर्ट में बांग्लादेश में दमन से बचने के लिए कई बांग्ला देशी हिंदू परिवार सीमा पार कर भारत आ गए। 2012 में केंद्र सरकार की रिपोर्ट में भारत में 83438 बांग्ला देशी नागरिक शरणार्थी बन कर रह रहे हैं।भारत में तब की पीएम इंदिरागांधी ने 1960 -61और फिर 1971-72 में यहां बड़ी संख्या में बंग्ला देशियों को छ्ग के बस्तर,माना रायपुर में लाकर बसाया था।लंबे अर्से से रह रहे इन लोगों के नाम न केवल मतदाता सूची में जुड़े हैं,बल्कि बहुत से लोगों के पैन,आधारकार्ड भी बन गए हैं।बस्तर के घने जंगलों,माओवाद के क्षेत्र पखांजूर विकासखंड केइस क्षेत्र को ‘मिनी बंगाल’ के नाम से जाना जाता है, पखांजूर के 295 गांव में से 133 शरणार्थियों के लिए बसाये गए थे,2011 की जनगणना में यहां की कुल 1.71 लाख की आबादी में से एक लाख लोग बांग्ला बोलते हैं।वहीं पखांजूर शहर की कुल10,201 लोगों की आबादी में क़रीब 95% हिस्सा पूर्वी पाक से आए इन्हीं लोगों का है।बाहर से यहां पहुंचे लोगों को इस आदिवासी इलाके में खान-पान,रहन-सहन,
भाषा-बोली को देख कर लगेगा कि बंगाल के इलाके में पहुंच गए हैं।केंद्र ने12 सितंबर1958 को एक प्रस्ताव पारित कर पूर्वी पाकिस्तान से आने वाले शरणार्थियों को तब के मप्र के बस्तर,उड़ीसा राज्य के
मलकानगिरि में बसाने ‘दंडकारण्य परियोजना’ को मंजूरी दी थी,आंकड़े बताते हैं कि 31 अक्तूबर 1979 तक बस्तर में 18 458 शरणार्थियों को बसाया गया।आदिवासी नेता,पूर्व मंत्री अरविंद नेताम का कहना है कि पखांजूर जैसे क्षेत्रों में अब आदिवासियों के हिस्से कुछ भी नहीं है। पढ़े-लिखे शरणार्थियों ने निरक्षर आदिवासियों के रोजी-रोज़गार पर कब्जा कर लिया है।नेताम का आरोप है कि सरकारी विकास सुविधाओं का भी लाभ आदिवासियों के बजाए बाहरी लोगों को ही मिला।नेताम को इस बात की आशंका है कि देश में नया नागरिकता क़ानून लागू किया गया तो सर्वा धिक दुष्परिणाम बस्तर जैसे इलाक़ों पर ही पड़ेगा।नेताम कहते हैं कि करीब 60 साल पहले शरणार्थियों के नाम पर हमारे इलाके में लोगों को थोपा गया और परिणाम कई पीढ़ियों को भुगतना पड़ा और अब भी वे भुगत रहे हैं।अब कम से कम इस तरह की कोशिश को आदिवासी बर्दाश्त नहीं करेगा,नए नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ अंतिम सांस तक लड़ेगा। “सर्व आदिवासी समाज के नेता बीपी एस नेताम का आरोप है कि शरणार्थियों के कारण इस इलाके में आदिवासी हाशिये पर चले गए हैं, उनका दावा है कि 1960 के बाद से लगातार बांग्ला देशी यहां आ कर बस रहे हैं, इनमें बड़ी संख्या अवैध रूप से रहनेवालों की है।नेताम कहते हैं “यहां आदिवासी अल्पसंख्यक हो गए हैं।आदिवासियों की संख्या घटती जा रही है, बांग्लादेशी शरणार्थियों की संख्या बढ़ती जा रही है।अगर ऐसा ही हाल रहा तो पखांजूर के कई गांवों में आदिवासी नहीं बचेगा?आदिवासी अपनी बोली भूल रहा है,इससे भयावह और क्या होगा?”