{किश्त 242}
जांजगीर,जिसे जाजल्यदेव की नगरी भी कहा जाता है उन्होंने अपने नाम पर ही जाजल्यपुर नामक नगर बसाया था।वर्तमान में वह जांजगीर के नाम से प्रसिद्ध है।वैष्णव धर्म उपासक ने अनेक मंदिर का निर्माण करवाया,उसमे छग के ह्रदयस्थल में स्थित जांज गीर जिले में 12 वीँ सदी में विष्णु मंदिर का निर्माण कर वाया था,यह स्थापत्य कला का उदाहारण है|छग के जांजगीर का विष्णु मंदिर जो कभी पूरा नहीं हुआ।विष्णुजी का एक अनोखा मंदिर है जो निर्माण काल से ही अधूरा है। मंदिर के ऊपर स्थापित होने वाला हिस्सा पास ही में अलग- थलग रखा है।यही अब मंदिर की पहचान है।मंदिर के चारों ओर अत्यन्त सुंदर, अलंकरणयुक्त प्रतिमाएँ भी बनाई गई हैं,त्रिमूर्ति के रूप में ब्रह्मा,विष्णु और महेश की मूर्ति भी यहां दीवारों में स्थापित है। ठीक इसके ऊपर गरुणासीन भगवान विष्णु की मूर्ति भी है। मंदिर के पृष्ठ भाग में सूर्यदेव विराजमान हैं।मूर्ति का एक हाथ भग्न है लेकिन रथऔर उसमें जुते सात घोड़े स्पष्ट हैं। यहीं नीचे की ओर कृष्ण कथा से सम्बंधित चित्रों में वासुदेव,कृष्ण को दोनों हाथों से सिर के ऊपर उठाये गतिमान दिखाये गये हैं। अनेक मूर्तियां नीचे की दीवारों में बनी हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि किसी समय बिजली गिरने से मंदिर ध्वस्त हो गया था जिससे मूर्तियां बिखर गयीं। बाद में मूर्तियों को मंदिर की मरम्मत करते समय दीवारों पर ही जड़ दिया गया।मंदिर के चारों ओर अन्य कला त्मक मूर्तियों में विष्णु के दशावतारोँ में से वामन,नर सिह,कृष्ण राम कीप्रतिमाएँ स्थित हैं। छग के किसी भी मंदिर मे रामायण से सम्बं धित इतने दृश्य कहीं नहीं मिलते जितने विष्णु मंदिर में हैं। सजावट के बावजूद मंदिर के गर्भगृह में कोई मूर्ति नहीं हैआज तक यह मंदिर सूना है और एक दीप के लिये तरस रहा है….?मंदिर के निर्माण सेसंबंधित अनेक जनुश्रुतियां प्रचलित हैं। इन्हीं में एक दंतकथा के अनुसार निश्चित समयावधि जिसे कुछ लोग इस छैमासी रात कहते हैं, शिवरीनारा यण मंदिर और जांजगीर के इस मंदिर के निर्माण मेंप्रति योगिता हुई थी।कहते हैं कि भगवान नारायण ने घोषणा की थी कि जो मंदिर पहले पूरा होगा,वे उसी में प्रविष्ट होंगे।शिवरीनारायण का मंदिर पहले पूरा हो गया, भगवान नारायण उसमें प्रविष्ट हुए। इस तरह जांज गीर का यह मंदिर सदा के लिए अधूरा छूट गया। अन्य दंतकथा महाबली भीम से जुड़ी भी प्रचलित है। मंदिर से लगे भीमा तालाब को भीम ने 5 बार फावड़ा चला कर खोदा था।किंवदंती के अनुसार भीम को इस मंदिर का शिल्पी बताया गया है। एक बार भीम, विश्वकर्मा में एक रात में मंदिर बनाने की प्रतियोगिता हुई। तब भीम ने इस मंदिर का निर्माण कार्य आरम्भ किया। मंदिर निर्माण के दौरान जब भीम की छेनी-हथौड़ी नीचे गिर जाती तब उसका हाथी उसे वापस लाकर देता था।यह कई बार हुआ,आखिरी बार भीम की छेनी पास के तालाब में चली गयी, जिसे हाथी वापस नहीं ला सका और सबेरा हो गया। भीम को प्रतियोगिता हारने का बहुत दुख हुआ और गुस्से में आकर हाथी के दो टुकड़े कर दिया। इस प्रकार मंदिर अधूरा रह गया। आज भी मंदिर परिसर में भीम- हाथी की एक खंडित प्रतिमा है।