जरा पाने की चाहत में, बहुत कुछ छूट जाता है… नदी का साथ देता हूँ तो समंदर रूठ जाता है….

शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )   

एनडीए सरकार के आम बजट में प्राथमिकता आम जनता को दी जानी चाहिए, लेकिन बजट जैसी बेहद ज़रूरी चीज भी सत्ता के हित साधन का जरिया बन गया है। यही इस बजट में भी नज़र आई।बजट में पीएम मोदी की राजनैतिक मजबूरियों,प्राथमिकताओं में बदलाव को साफ़ तौर पर देखा जा सकता है।आंध्र प्रदेश की तेलुगूदेशम और बिहार की जनता दल यूनाइटेड, इन दो के सहारे एनडीए सरकार केंद्र की सत्ता पर बनी हुई है। इन दोनों ही दलों ने सरकार बनने के साथ यह उम्मीद बार-बार ज़ाहिर की कि सर कार उन पर विशेष ध्यान देगी।आंध्र,बिहार दोनों ही राज्य लंबे वक्त से विशेष राज्य के दर्जे की मांग कर रहे हैं। 2018 में चंद्रबाबू नायडू एनडीए से इसी मांग के पूरे न होने को लेकर ही अलग भी हुए थे। नीतीश कुमार भी अब तक इस उम्मीद में थे कि श्री मोदी उनकी इस मांग को पूरा करेंगे। लेकिन 22 जुलाई को संसद में बाकायदा इस बात से इंकार कर दिया गया कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता। यही स्थिति आंध्रप्रदेश की भी है। इन दोनों नेताओं ने बजट से पहले विशेष आर्थिक पै केज की मांग अपने-अपने राज्यों के लिए की थी,वह इन्हें नहीं मिला। इसके बावजूद पूरे बजट में सबसे अधिक चर्चा इसी बात की हो रही है कि सरकार ने सबसे ज़्यादा ख़्याल आंध्र प्रदेश और बिहार का ही रखा है।कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस ने इस बजट को ‘कुर्सी बचाओ बजट’ कहा है,क्योंकि आंध्रप्रदेश की राजधानी विकास के लिये 15 हजार करोड़ का प्राव धान किया गया है, इसी तरह बिहार में हवाई अड्डों, सड़कों, बिजली परियो जनाओं के लिए बजट में 26 हज़ार करोड़ का प्राव धान किया गया है। ख़ास बात यह है कि इन परि योजनाओं के लिए बहु पक्षीय विकास एजेंसियों के जरिए काम की बात की गई है। फिलहाल एनडीए सरकार के ये दोनों घटक दल बजट के इन प्रावधानों पर ख़ुशी ज़ाहिर कर रहे हैं, जिससे मोदी राहत महसूस कर सकते हैं। मगर इस बजट से भाजपा की मज बूरी जिस तरह सामने आई है, वह उसकी मजबूती के दावों को खारिज करती दिख रही है।कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जन खड़गे ने कहा कि मोदी ने पीएम कीशपथ लेने से पहले ही दावा किया था कि 100 दिनों की कार्य योजना हमारे पास पहले से ही है। कार्ययोजना दो माह पहले थी तो कम से कम बजट में ही बता देते? दर असल बजट में न किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी की चर्चा है,न महंगाई कम करने का कोई इरादा दिखा है।आदिवासी, पिछड़े ,दलित, किसान मजदूर सभी की एक तरह से उपेक्षा दिखाई दी है। 2014 में नरेन्द्र मोदी ने युवाओं से वादा किया था कि हर साल दो करोड़ रोज़ गार दिए जाएंगे..? अब आलम यह है कि 2024 के बजट में मोदी सरकार ने कहा है कि वह 500 बड़ी कंपनियों में 1 करोड़ युवा ओं को इंटर्नशिप करने के लिए अवसर प्रदान करेगी। इसमें 5 हज़ार का भत्ता हर महीने दिया जाएगा साथ में 6 हज़ार का अतिरिक्त भत्ता भी दिया जायेगा। कंपनियों को सीएसआर के तहत कौशल विकास पर खर्च करना होगा। दो करोड़ नौकरियों से बात एक करोड़ इंटर्नशिप पर आ जाए, तो समझना कठिन नहीं है कि सरकार की कथनी-करनी में कितना अंतर है।मोदी सरकार ने रेल बजट पहले ही समाप्त कर दिया था,अब लगता है कि बजट से रेलवे पर किये जानेवाले ख़र्च,यात्रीसुविधा रेलवे के विस्तार जैसीअहम बातों को भी गायब कर दिया गया है। बुलेट ट्रेन का जिक्र तो खैर अब होता ही नहीं, हाल ही में जो गंभीर रेल दुर्घटनाएं हुई हैं,उनका ज़िक्र करते हुये बजट के जरिए मामूली समझे जाने वाले यात्रियों को आश्वस्त किया जा सकता था कि सरकार को उनका ध्यान है। लेकिन यहां भी आम गरीब लोगों को निराशा ही हाथ लगी है। बुजुर्गों की कोरोना काल से बंद रेल्वे किराये की छूट पर इस बार भी मोदी सरकार मौन ही रही?आंध्रप्रदेश और बिहार का जिक्र है,लेकिन बाकी राज्यों की उम्मीदों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है,
पर्यावरण को लेकर कोई चिंता बजट में नजर नहीं आई है।

राज्यपाल बैस, हरिचंदन
का 5 साल इसी माह पूरा….   

छ्ग के राज्यपाल विश्व भूषण हरिचंदन तथा छ्ग के पूर्व सांसद,महाराष्ट्र के राज्यपाल रमेश बैस का कार्यकाल इसी माह पूरा हो रहा है, 5 साल पूरा होने के बाद इन्हेँ फिर कोई जिम्मे दारी मिलती है या नहीं यही देखना है?24 जुलाई2019 को हरिचंदन ने आंध्रप्रदेश के राज्यपाल का कार्यभार सम्हाला था फिर 12 फर वरी 23 को छ्ग के राज्य पाल का पद सम्हाला था याने उनका 5 साल का कार्यकाल पूरा हो गया है, इसी तरह छ्ग के नेता तथा महाराष्ट्र के राज्यपाल रमेश बैस का भी 5साल इसीमाह पूरा हो रहा है।29 जुलाई 2019 को त्रिपुरा के राज्य पाल की जिम्मेदारीसम्हाली थी फिर 14 जुलाई 21 को झारखण्ड के राज्यपाल की जिम्मेदारी दी गई थी उसके बाद 18 फरवरी 23 को रमेश बैस ने महाराष्ट्र के राज्यपाल का पद सम्हाला था, यानि उनके राज्यपाल का कार्यकाल 5 साल पूरा हो जाएगा।वैसे मोदी केदौर में राज्यपाल नियुक्त हुये60 में से 12 ऐसे रहे जिन्हें एक राज्य विशेष में लगातार 5 साल या 2-4 महीने अधिक का कार्यकाल मिला,केवल दो नाम ऐसे रहे जिन्होंने 5 साल वाले ‘कटऑफ’ को अच्छे से पार किया।पहला वजूभाई, दूसरा द्रोपदी मुर्मू, वजूभाई कर्नाटक में करीब 7 साल तक और मुर्मू,झार खंड में तकरीबन 6 बरस राज्यपाल रहीं।केसरीनाथ त्रिपाठी (बंगाल) रामनाइक (उप्र) ओमप्रकाश कोहली (गुजरात) सी. विद्यासागर रॉव(महाराष्ट्र) पी.सत शिवम (केरल) कल्याण सिंह (राजस्थान) विजयेन्द्र पाल सिंह (पंजाब)पद्मनाभ आचार्य (नागालैंड) ऐसे राज्यपाल रहे,जो 5 साल इस पद पर रहे,जबकि मृदुला सिन्हा (गोवा), बीडी मिश्रा (अरुणाचल)प्रोफेसर गणेशलाल (ओडिशा) जग दीश मुखी (असम) 5 साल से कुछ महीने ज्यादा राज्य पाल के पद पर रहे।इस तरह,मोदीयुग में राज्यपालों के कार्यकाल का अध्ययन करने पर मालूम होता है कि एक राज्य विशेष में लगा तार किसी को भी अधिक तम कार्यकाल मिला औसत 5 साल का रहा।मौजूदा राज्यपालों में उप्र में आनंदी बेन पटेल,गुजरात मेंआचार्य देवव्रत राज्यपाल अगले हफ्ते-दो हफ्ते में 5 साल पूरा करने जा रहे हैं, कर्ना टक,केरल के साथ दक्षिण भारत के दूसरे राज्य (आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिल नाडु)में भी पिछले 10 बरसों में केवल दो-तीन राज्यपाल इसलिये नियुक्त हुये क्योंकि इन राज्यों में मनमोहन युग के गवर्नर को ही शुरुआती कुछ बरसों तक राज्यपाल बनाए रखा गया। रोसइया,आंध्र के सीएम रहे, जिन्हें यूपीए-2 की सरकार में तमिलनाडु का राज्यपाल बनाया था, वह मोदी दौर में भी कम से कम 2 साल तक अपने पद पर बने रहे आईबी के डाय रेक्टर रहे ई.एस.एल. नर सिम्हन पर मोदी सरकार बहुत मेहरबान रही,आंध्र के राज्यपाल,नरसिम्हन की नियुक्ति मनमोहनसिंह के दूसरे कार्य काल में हुई थी जब मोदी सरकार बनी तो नरसिम्हन का कार्यकाल 5 बरस पूरा होने वाला था, लेकिन मोदी सरकार ने उन्हें 5 साल और आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाये रखा, इतना ही नहीं, जब वह 2014 से 2019 के बीच आंध्र के गवर्नर थे तो तेलंगाना का भी अतिरिक्त प्रभार दिया गया,नतीजा ये है कि नरसिम्हन सबसे लंबे समय तक राज्यपाल (12 साल) रहने वाले बन गये , कांग्रेस के शासन के समय नियुक्त सिक्किम के राज्य पाल श्रीनिवास दादासाहिब पाटिल, ओडिशा के राज्य पाल एससी जमीर, मोदी सरकार के दौरान भी तकरी बन 4 साल अपने पद पर बने रहे।मनमोहन सिंह के दौर का एक और नाम जिसे लंबे अरसे तक मोदी सर कार ने नहीं छेड़ा वह राम नरेश यादव का था, केन्द्र में सत्ता परिवर्तन के बाद भी यादव अगले 2 बरस मप्र के राज्यपाल के पद पर आसीन रहे।

नेता प्रतिपक्ष का हमला,
सायं सायं….. फुस्स….!   

छ्ग विधानसभा के इसी सत्र में बलौदा बाजार हिंसा की घटना पर नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत ने नये अंदाज में स्थगन प्रस्ताव के ग्रहता पर सरकार पर कुछ इस तरह हमला किया….
• जैतखाम कटगे सांय-सांय……
•सरकार सुते रहीस सांय-सांय……
• सतनामी समाज गुस्सा होईस सांय-सांय……
• बलौदाबाजार हजारों आईन सांय-सांय……
• जिला कार्यालय म खुसनिन सांय-सांय…..
• कलेक्टर भागीस सांय-सांय……
• एसपी भागीस सांय-सांय……..
• भीड़ दौड़ाईस सांय-सांय……
• पुलिस बल भागीस सांय-सांय…….
• तोड़-फोड़ करीन सांय-सांय……
• आगी लगाईन सांय-सांय…….
•सब्बो जलगे
सांय सांय…….
• पुलिस मुख्यालय तमाशा देखत रहीत सांय-सांय……..
• गृह मंत्री तमाशा देखत रहीस सांय-सांय……
• मुख्यमंत्री तमाशा देखत रहीस सांय-सांय…….
• अब साय सरकार लकीर पीटत हे
सांय-सांय……
• निर्दोष मन केगिरफ्तारी होत हे सांय-सांय……
• जांच आयोग बनगे सांय-सांय…….
• करोड़ो रूपया खर्चा होही सांय-सांय……
• अंतिम परिणाम आना हे सांय-सांय…..फुस्स…

और अब बस…

0 कई मंत्रियों के पास फाइलों का ढेर लगा है.. निजी सचिव भारी हैं…?
0भाजपा विधायक अपनी ही सरकार को क्यों घेर रहे हैं विस में…?
07 साल बाद स्काईवॉक पूरा बनाने का निर्णय, शारदा चौक-तात्यापारा चौक का चौड़ीकरण भी होगा।
0वार्ड परिसीमन पर हाई कोर्ट की रोक..सरकार को झटका…?

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