किसी के ख्वाब में वो इस कदर तल्लीन लगती है…. नदी वो गांववाली,आजकल गमगीन लगती है….

शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार)   

26 जनवरी,1950 को भारत संवैधानिक लोक तांत्रिक गणराज्य बना, इस तारीख को चुनने की अपनी एक कहानी है। आजादी तो 15 अगस्त 1947 को मिल गई थी,भारत तब तकलोक तांत्रिक गणराज्य नहीं बना जब तक संविधान नहींलागू हुआ, 26 जनवरी 1950 को देश में संविधान लागू हुआ।भारत ने 26 जनवरी 1950 को सुबह 10 बज कर 18 मिनट पर गणतंत्र राष्ट्र बनकर इतिहास रचा, 10 बजकर 24 मिनट पर देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने शपथ ग्रहण की,राष्ट्रपति भवन से बग्गी में बैठ पहली बार डॉ.राजेंद्र प्रसाद निकले और सेना ने उन्हें सलामी दी।संविधान को लागू करने के लिए 26 जनवरी की तारीख चुनने के पीछे भी एक कहानी है, ऐसा इसलिए किया गयाथा क्योंकिराष्ट्रीय कांग्रेस ने 26 जनवरी1930 में भारत की आजादी की घोषणा की गई थी,1929 में पं.जवाहर लाल नेहरू ने इंडियन नेश नल कांग्रेस की एक सभा आयोजित की,सभा में यह ऐलान किया 26 जनवरी 1930 तक ब्रिटिशभारत को डोमिनियन स्टेटस का दर्जा देँ , इसका दर्जा मिलने के बाद भारत ने खुद को स्वतंत्र होने की घोषणा करने की बात कही,1947 में जब देश को आजादी मिली तो उसी तारीख को संविधानसभा का गठन करने का ऐलान किया गया संविधान तैयार करने की नींव पड़ी।करीब 2 साल, 11 महीने 18 दिन की लम्बी मेहनत के बाद संवि धान तैयार हो सका। लम्बे समय के बाद देश का संवि धान बनकर तैयार हुआ,26 नवंबर 1949 को संविधान की प्रति संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्रप्रसाद को सौंपा गया,यही वजह है कि 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है, लेकिन संविधान तैयार करने की प्रक्रिया आसान नहीं रही।भारतीय संविधान का पूरा मसौदा बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने तैयार किया, इसे तैयार करने के दौरान कई बदलाव-सुझाव भी शामिल किए गये। तैयार करने में 308 सदस्यों की कमेटी भी शामिल रही, कमेटी के सदस्यों के हस्ता क्षर करने के दो दिन बाद इसे लागू किया गया।इस दिन डॉ. राजेंद्र प्रसाद के रूप में पहला राष्ट्रपति मिला।उन्होंने शपथ ली और कार्यकाल शुरू हुआ इनके नाम एक और रिकॉर्ड बना,वो 1952 और 1957 में लगातार दो बार राष्ट्रपति बने,12 साल लम्बा कार्य काल पूरा करने के बाद 1962 में रिटायरमेंट की घोषणा की।

पुरखों का अपमान क्यों हो
रहा है आजकल….! 

भारत की राजनीति में आखिर हो क्या रहा है…! हमारे पुरखों को अब उनके नहीं रहने के बाद आपस में लड़ाया जा रहा है,मतभेद उभारा जा रहा है,यही नहीं पुरखों की उपेक्षा करके दल गत राजनीति का दौर जारी है। स्वयं को अच्छा सिद्ध करने दूसरों को ही नीचा दिखाने का प्रयास हो रहा है।धर्म,जाति,वर्ग के आधार पर पुरखों को बांटा जा रहा है।आजादी के बाद जब भारत का संविधान करीब -करीब तैयार था, मूलप्रति पर हस्ताक्षर होना ही बचा था तब उसके प्रकाशन के साथ साज-सज्जा के लिए चित्रकार नंदलाल बोस को शांति निकेतन से बुलाकर चित्रांकन का अनुरोध किया गया।चित्रकार ने संविधान के प्रमुख पन्नों पर सजावट करते हुए रामायण का चित्र बना दिया,बुद्धऔर महात्मा गांधी,सुभाषचद्र बोस के चित्र रूपांकित किये।भारत का संविधान,धर्मनिरपेक्षता की गारंटीवाला महाकानून, नीति निर्धारक सिद्धांतों के अनिवार्य पालन का महान ग्रंथ था और रामायण के प्रसंगों का चित्रण…! उसे नेहरू ने देखा,डॉ.अंबेडकर ने देखा, हिंदु-मुसलमान सभी सदस्यों ने हस्ताक्षर किये।असल में रामायण को भारतीय साहित्य-संस्कृति का अंग माना जाता था। यह थी नेहरू -डॉ.अंबेडकर की धर्म निरपेक्षता….! यदि नेहरू-नेताजी सुभाष बाबू के खिलाफ होते तो उनका चित्र संविधान की पहली प्रति में ही स्थान कैसेपाता? आजादी के बाद ही नेहरू सबसे चमकदार लोकप्रिय नेता थे।अंबेडकर यदिगांधी के प्रति कटु होते तो क्या यह संभव था कि वे संवि धान की मूल प्रति में भी हस्ताक्षर करते जिसमेंगांधी का चित्र था..! क्या नेहरू और सरदार पटेल के बीच भी मतभेद थे…? दरअसल उस समय के लोग संघर्ष में तपे थे, बलिदान तपस्या के वातावरण में निर्मित हुए थे, असहमति का आदर चरित्र में बसा था। पिछले कुछ सालों के भीतर पद,पुरखों, राष्ट्र की ऊंचाई तक उठने की भावना का ह्रास हुआ है। पुरखों को गरियाने और उनके मतभेद को हवा देना ही कुछ ने अपना नैतिक कर्तव्य समझ लिया है..?

संविधान का हिंदी अनुवाद
और छ्ग का योगदान….. 

छत्तीसगढ के घनश्याम सिंह गुप्ता को संविधान सभा ने हिंदी अनुवाद करने वाली समिति का अध्यक्ष बनाया था।हिंदी मेंसंविधान सभा की उपलब्धता का बड़ा श्रेय इन्हे जाता है। दुर्ग छग के निवासी घनश्याम गुप्ता अंग्रेजों के भारत में कब्जे के समय सीपी एंड बरार स्टेट (तब मप्र, छग महाराष्ट्र आदि इसके अधीन था) के लगभग 14 सालों तक विधानसभा के अध्यक्ष भी रहे थे। इन्होंने ही देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को 24 जन वरी 1950 को संविधान सभा की हिंदी अनुवाद की प्रति सौंपी थीं। यह बताना भी जरुरी हे कि संविधान कि हिंदी प्रति में 282 लोगोँ के हस्ताक्षर हैं तो अंग्रेजी प्रति में 278 लोगो नेअपना हस्ताक्षर किया था। छत्तीस गढ के इस बेटे को नमन तथा गर्व करना बनता है।

और अब बस….

026 जनवरी 1950 को रायपुर तब तत्कालीन सेंट्रल प्राविंस (सीपी एंड बरार) का हिस्सा थाइसकी राजधानी नागपुर थी। इस लिये पहला गणतंत्र दिवस समारोह नागपुर में हुआ था तब के सीएम पंडित रवि शंकर शुक्ल ने पहली परेड की सलामी ली।
0 26 जनवरी 1950 को देश में संविधान लागू हुआ, उसी दशक में तकरीबन 2 साल बाद ही रायपुर के रविशंकर विश्वविद्यालय (रविवि) को इस पहले प्रकाशन की तीन कॉपियां उपहार के तौर पर भेजी गईं।इसे संविधान की मूल प्रति इसलिए माना जाता है,यह वही प्रकाशित दस्ता वेज है,संविधान की मूल प्रति पर जिनके हस्ताक्षर हैं।
0 छत्तीसगढ़ अंचल के रियासतों से किशोरी मोहन त्रिपाठी,रामप्रसाद पोटाई एवं मध्यप्रांत सीपी बरार (छत्तीसगढ़)के प्रतिनिधियों में रायपुर से रविशंकरशुक्ल बिलासपुर से बैरिस्टर ठा. छेदीलाल और दुर्ग के घन श्याम सिंह गुप्ता नेसभा के सदस्य के तौर पर बेहद अहम भूमिका निभाई।

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