फिज़ा में रुदन ही रुदन है… वीरेंद्र वर्मा ( वरिष्ठ पत्रकार )


इन दिनों फिज़ा में रुदन ही रुदन की आवाजें गूंज रही है। अपनों ने अपने को खोया। बहुतों ने बहुत असहाय महसूस किया। हजारों घरों में मातम पसर गया। लाखों इलाज के लिए भटक रहे हैं। सब कुछ लुटाने को तैयार , मगर हाथ में कुछ नहीं ठहर रहा है। जिंदगी हाथ से आँखों के सामने फिसल रही है और परिवार मूकदर्शक बन देख रहा है। कोरोना के इस महाप्रलय ने मानो तय कर लिया कि अब वो लाशों के मंजर ही दिखाएगा। लाशों के मंजर देख भी रहे है हम लोग।
कोरोना वायरस इंसानी दिमाग की उपज है या कोई अणु परमाणु बम जैसा कोई घातक रासायनिक कण ? यह अलग चर्चा का विषय है। आज के हालात में यह एक भीषण जानलेवा बीमारी साबित हो चुका है। पूरी दुनिया इसकी चपेट में आ चुकी है , मगर कुछ देशों ने इस वायरस को लेकर जो एतिहात बरते है , जो दूरदर्शिता दिखाई है । उसके लिए वहां की सरकारों की अपनी जनता के प्रति गंभीरता तथा सजगता नज़र आई।
भारत और भारत विभिन्न राज्यों में विश्व स्तर कोरोना के दूसरे चरण को लेकर कोई गंभीरता नहीं दिखी और न ही उसको लेकर कोई स्वास्थ्यगत तैयारियां की गई। इतना ही नहीं जब पूरे देश में कोरोना के दूसरे स्ट्रेन ने पैर पसार लिए तो भी हमारे प्रधानमंत्री , गृहमंत्री , स्वास्थ मंत्री और कई राज्यों के मुख्यमंत्री सत्ता पर काबिज होने या बने रहने के लिए चुनाव प्रचार और चुनाव अभियान में लगे रहे। परिणामस्वरूप पूरे देश और प्रदेशों में लाशों के ढेर लग गए। जलाने और सुपर्दे खाक करने के लिए जगह नहीं बची। लाशों को दाह संस्कार के लिए इंतजार करना पड़ा। शमशान में सिर्फ जलती लाशों के मज़र दिखाई देने लगे। इतना होने पर भी सरकार और उनके कारिंदे ( प्रशासन ) की नींद नहीं खुली। नतीजा यह सामने आया कि देश के छोटे छोटे शहरों से लेकर मेट्रो सिटी तक में निजी और सरकारी अस्पताल में मरीज़ के बिस्तर नहीं बचे।शहरों में ऑक्सीजन , इंजेक्शन और दवाईयों की कमी हो गई। इंजेक्शन और ऑक्सीजन का टोटा हो गया। ब्लैक में बिकने लगे इंजेक्शन। इंजेक्शन के लिए मरीज़ों के रिश्तेदार और परिवारजन दर बदर होते रहे। इस अभाव में कई जाने चली गई। शहर तो ठीक है , गांव में भी हालत बेकाबू हो गए। सारी व्यवस्था ध्वस्त हो गई। केवल एक व्यवस्था ध्वस्त नहीं हुई तो वो सिर्फ चुनाव करवाने की व्यवस्था । चुनाव व्यवस्था में कोई कमी पेशी नहीं है और न थी।
घोर आपत्तिजनक बात यह है कि उसमें सत्ताधारी दल भाजपा के लोग घरों में दुबककर बैठ गए। प्रशासन के माध्यम से अपनी राजनीति की दुकान चलाते नज़र आए और प्रशासन ने भी भरपूर नज़रअंदाज़ किया बीमारी और स्वास्थ सेवाओं को और न ही बीमारी को रोकने के कोई ठोस कदम उठाएं। कम से कम मध्यप्रदेश और इंदौर के लिए तो यह बात कही जा सकती है।
इन सब लापरवाही और अनदेखी का परिणाम यह है कि आज पूरे देश और राज्यों में लाशों के ढेर बिछ गए।
इस सबके बीच देश की सर्वोच्च न्याय पालिका ने भी संज्ञान नहीं लिया।
अब जब सरकारें कोरोना महामारी के दूसरे स्ट्रेन को लेकर विफल हो गई तो लाशों की राजनीति और आंकड़ों की बाजीगरी दिखाने लगी। कोरोना से मृत व्यक्ति की रिपोर्ट को नेगेटिव बताया जाने लगा। अपनी असफलता को छुपाने के लिए अन्य बीमारियों से मरीज़ों को मृत बताना शुरू कर दिया। इस सबके बीच भी ऑक्सीजन और इंजेक्शन के नकली और झूठे दावे करने से सरकार और प्रशासन बाज़ नहीं आ रहे। तब दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार लताड़ा की भीख मांगकर लाओ और ऑक्सीजन की व्यवस्था करो। यह सरकार की विफलता का सबूत है कि कोर्ट को ऐसा तीखा बोलना पड़ा।
सवाल यह भी तो है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को कुल 350 के आस पास सीटें क्यों दिलवाई गईं। भाजपा इसीलिए सत्ता के मद, नशे और घमंड में चूर हो गई। जो लोग सत्ता के चटोरे थे ,उन्होंने चुनावों में शंख नाद किया मास्क लगाओ , दूरी बरतो , स्टे होम स्टे सेफ़ और खुद पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों में रैलियों ,रोड शो और प्रचार के अन्य माध्यमों से मौतों का व्य्यापार करती रही। ये लोग राम कथा के नायक तुलसी बाबा का तो प्रातः स्मरण करते रहे। इसमें कोई आपत्ति , दिक्कत या मुश्किल की बात नहीं है। यह व्यतिगत आस्था का सवाल है, मग़र तुलसी बाबा का यह कहना ये लोग क्यों भूल रहे हैं पर हित कुशल बहुतेरे।
भाजपा के इन्दौर विधायक ने तो शवों के अंतिम संस्कार के लिए जैसे स्वागत बोर्ड ही लगा दिया ।अखबारों में उनका बयान आज ही छपा है ,किसी के लिए भी मेरे इलाके में तीन दाह संस्कार खाली हैं। पूर्व प्रधनमंत्री स्व. अटलजी जो भाजपा के संस्थापको में से एक थे ने कभी कहा था कि सवाल यह नही है कि आप रहेंगे या मैं बचूंगा ? प्रश्न सिर्फ यह है कि यह देश बचेगा या नही ? भाजपा के कुछ नेताओं से अनुरोध है कि इस अटल बयान पर जरा अता फरमाए।
फिलहाल हालात यह है कि मरीज़ों की संख्या के हिसाब से न तो ऑक्सीजन है, न इंजेक्शन और न ही अस्पताल में बिस्तर है। बीमारी फैलने की गति इतनी तेज है कि अब हजारों की संख्या में मौतें हो रही है। हर किसी घर से रुदन की आवाज़ आ रही है। मानो जैसे अब फिज़ा में रुदन ही रुदन है और कुछ नहीं।

वीरेन्द्र वर्मा ( वरिष्ठ पत्रकार )  ये उनके निजी विचार हैं

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