तेरे वजूद में गुरुर है तो मेरे वजूद में खुद्दारी है….. किस्मत और हौसले की जंग अभी जारी है…..

शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )      

विदेश में राहुल गाँधी ने देश का अपमान किया है उन्हें संसद में माफ़ी मांगना चाहिये इस मांग क़ो लेकर सत्ता पक्ष संसद नहीं चलने दे रहा है तो कॉंग्रेस सहित विपक्ष संसद में माइक बंद करने का आरोप लगा रहा है।बहरहाल संसद की कार्यवाही में गतिरोध क़ायम है।लोकसभा में शुक्रवार को सांसदों का माइक बंद हो जाना ऐसे ही क्षणों में से एक है। कांग्रेस ने राहुल गांधी को बोलने देने की मांग जैसे ही शुरू की तो माइक बंद हो गए और अध्यक्ष मुस्कुरा कर इसे देखते रहे। यह संयोग था कि संकेत है?भारत में लोकतंत्र खत्म करने की जो बात कांग्रेस नेता राहुल गांधी भारत के गांवों से लेकर सुदूर इंग्लैंड तक कर रहे रहे थे, मोदी सरकार ने उस पर अंतिम मुहर लगा दी है…? इस संकेत को अगर देश नहीं समझ पा रहा है तो इसके पीछे सरकार समर्थक मीडिया और सरकार का मजबूत प्रचार-तंत्र है।उनकी भूमिका का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसने इसे एक तकनीकी खराबी बता कर झट से ढंक दिया। क्या देश कोे संचालित करने वाली सर्वोच्च संस्था का एक महत्वपूर्ण क्षण पर मौन हो जाना गुस्सा का सबब नहीं होना चाहिए? यह भी उस समय होता है जब सरकार विपक्ष के एक प्रमुख नेता पर देशद्रोह का आरोप लगा रही है और वह अपना जवाब देना चाहता है।दिलचस्प यह है कि घटना के पीछे तकनीकी खराबी होने की खबर भी सूत्रों के हवाले से आई है। अभी तक कोई अधिकारिक बयान नहीं आया…..? इतनी बड़ी चूक के लिए किसी ने माफी नहीं मांगी…..अगर हम थोड़ी देर को यह मान भी लेें कि विदेशी धरती पर राहुल के बयान देश के खिलाफ थे तो क्या उनका पक्ष सुने बगैर उन्हें सजा दे दी जाए…..? लोगोें ने सत्ता प़क्ष की चालाकी को नहीं देखा कि मोदी सरकार के मंत्रियों ने राहुल के खिलाफ किसी कानूनी लड़ाई के बदले मीडिया और संसद में मोर्चा खोला है।दोनों जगह फैसले उसके हाथ में हैं। मीडिया में मतदान की जरूरत नहीं है और फैसला पहले से उसके पक्ष में है। संसद में फैसला उसके पक्ष में ही होना है क्योंकि बहुमत उसके पास है। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि संसद की कार्यवाही की समीक्षा अदालत में नहीं हो सकती है और संसद को अपने अपमान के खिलाफ कार्रवाई का अधिकार है।लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने इस मामले में शुरू से यही तरीका अपनाया है कि राहुल गांधी को संसद में उनका पक्ष रखने नहीं दिया जाए। भाजपा के सांसद और मंत्री संसद में हंगामा करते हैं और विपक्ष को अपनी बात रखने का मौका आने के पहले ही सदन की कार्यवाही स्थगित हो जाती है। सत्ता पक्ष यह सुनियोजित ढंग से कर रहा है। भाजपा का आचरण प्राकृतिक न्याय के उस बुनियादी सि़द्धांत के खिलाफ है जोआरोपी को अपना पक्ष रखने का अधिकार देता है। माइक बंद करने की कार्रवाई क्या आरोप सिद्ध होनेे के पहले ही दोषी करार देने की कार्रवाई का हिस्सा है? तानाशाही की इस खुली घोषणा के बाद मीडिया में चल रही इस बहस का कोई अर्थ नहीं रह जाता कि राहुल ने लंदन में क्या कहा था…..इस बहस में सिर्फ भाजपा ही नहीं, कुछ मीडिया हॉउस भी झूठ का सहारा ले रहे हैँ । राहुल गाँधी ने कही नहीं कहा कि भारत का लोकतंत्र बचाने के लिए बाहरी लोग हस्तक्षेप करें। उन्होंने यह भी नहीं कहा है कि भारत में लोकतंत्र खत्म हो चुका है।उन्होंने सिर्फ इतना बताया कि भारत का लोकतंत्र दबाव में है और इसे मिटाने वाले काम हो रहे हैं। उन्होंने इंग्लैड में अपने श्रोताओं को लोकतंत्र पर विश्व भर में हो रहे हमलों का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें सोचना चाहिए कि वे अपने मुल्क में इसके लिए क्या करना चाहिए। साथ ही, उन्होंने अपने श्रोताओं को भारत में हो रहे परिवर्तनों की जानकारी रखने के लिए कहा। राहुल की राय में यह इसलिए जरूरी है कि लोकतंत्र के साये में रहने वाली कुल आबादी का आधा हिस्सा भारत में निवास करता है। सच तो यह है कि राहुल ने लंदन में साफ-साफ कहा कि भारत में जो समस्याएं हैं वे आंतरिक हैं और इसका हल भी देश के भीतर से ही निकलेगा।इधर संसद में बोलने से रोके जाने के बाद उन्होंने विदेश मंत्रालय की संसदीय सलाहकार समिति में स्पष्ट किया कि जो प्रचारित किया जा रहा है उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा।इधर संसदीय परंपरा में यह पहली बार हो रहा है कि सत्ता पक्ष संसद की कार्यवाही को ठप कर रहा है। संसद में कार्य रोक कर किसी अन्य विषय पर चर्चा कराने का काम विपक्ष का होता है। संसद में विपक्ष की उपस्थिति को सत्ता पक्ष खारिज कर रहा है। यह एक गंभीर बात है। इसे मोदी सरकार के आम रवैये के साथ जोड़ कर देखना चाहिए। प्रधानमंत्री विपक्ष से कभी बात नहीं करते हैं। संसद के साथ भी उनका रवैया वैसा ही है। उन्होंने नीतिगत संबंधी कोई घोषणा संसद में नहीं की है।नोटबंदी हो या फिर लॉकडाउन, वह सारी घोषणाएं संसद से बाहर करते रहे हैं। ये घोषणाएं वह प्रेस के सामने भी नहीं करते हैं और न ही ऐसी घोषणाओं में कैबिनेट के सदस्यों की कोई हिस्सेदारी होती है?मीडिया ने भले ही क्लीन चिट दे रखी हो उनसे यह सवाल तो होना ही चाहिए कि उन्होंने नौ साल के अपने कार्यकाल में कोई प्रेस कांफ्रेंस क्यों नहीं किया।राष्ट्रपति के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव के समय भी उन्होंने केवल अडानी को लेकर उठाए गए राहुल के ही सवालों का जवाब नहीं दिया बल्कि प्रस्ताव पर बोलने वाले किसी सांसद की बात का कोई नोटिस नहीं लिया। संसद में विपक्ष के किसी सवाल का उन्होंने कभी जवाब नहीं दिया है। संसद में “एक अकेला सब पर भारी” वाला डॉयलाग भी चर्चा में रहा है। लोकतंत्र में कोई भी संसद से भारी नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कांग्रेस-मुक्त भारत और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा क्षेत्रीय दलों की समाप्ति का नारा दे चुके हैं।किसी भी लोकतंत्र में क्या ऐसी कामना कोई पीऍम कर सकता है… लेकिन मोदी ऐसा बार बार क़ह चुके हैं।

राहुल की लोस सदस्यता
समाप्त की गईं….

मानहानि केस में सजा मिलने के बाद कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को एक और झटका लगा है। उनकी लोकसभा सदस्यता खत्म कर दी गई है। राहुल गांधी को दो साल की सजा मिली थी।केरल के वायनाड से कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को उनकी ‘मोदी सरनेम’ टिप्पणी पर आपराधिक मानहानि के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद लोकसभा सदस्य के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया गया। अगर इस मसले पर राहुल गांधी को स्टे नहीं मिलता है तो वो छह साल तक चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। लोकसभा से अधिसूचना भी जारी कर दी गई है।कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ओर से 2019 में मोदी सरनेम को लेकर की गई टिप्पणी के मामले में सूरत की अदालत ने राहुल गांधी को दोषी करार दिया है। धारा 504 के तहत राहुल गांधी को दो साल की सजा सुनाई गई है इसी के बाद यह चर्चा तेज है कि क्या राहुल की सांसदी भी जाएगी…लोक-प्रतिनिधि
अधिनियम 1951 की धारा 8(3) के मुताबिक अगर किसी नेता को दो साल या इससे ज्यादा की सजा सुनाई जाती है तो उसे सजा होने के दिन से उसकी अवधि पूरी होने के बाद आगे छह वर्षों तक चुनाव लड़ने पर रोक का प्रावधान है। अगर कोई विधायक या सांसद है तो सजा होने पर वह अयोग्य ठहरा दिया जाता है। उसे अपनी विधायकी या सांसदी छोड़नी पड़ती है। संविधान विशेषज्ञ कहते हैं कि राहुल गांधी को दो साल की सजा जरूर हुई है, लेकिन सजा अभी निलंबित है। ऐसे भी फिलहाल उनकी सांसदी पर कोई खतरा नहीं है। राहुल को अगले तीस दिन के भीतर ऊंची अदालत में फैसले को चुनौती देनी होगी। अगर वहां भी कोर्ट निचली अदालत को बरकार रखती है तो राहुल की संसद सदस्यता जा सकती है….?पर राहुल गांधी की लोस सदस्यता समाप्त कर ही दी गईं।

छ्ग मिडियाकर्मी सुरक्षा विधेयक
और भूपेश का वादा पूरा …    

छत्तीसगढ़ मिडिया कर्मी सुरक्षा विधेयक विधानसभा में सर्व सम्मति से पारित हो गया। इस विधेयक में स्वतंत्र पत्रकार,मिडिया संस्थान में कार्यरत मिडिया कर्मियों से लेकर गांव में काम करने वाले पत्रकारों क़ो सुरक्षा देने का प्रावधान है। सीएम भूपेश बघेल ने इस चुनावी वादे क़ो निभाकर देश में पत्रकार हित में एक अनुकरणीय कदम उठाया है, इसके लिये वे साधुवाद के पात्र हैं। वैसे पत्रकार हित में उन्होंने सम्मान निधि बढ़ाया, पत्रकार अधिमान्यता का दायरा भी बढ़ाया है, पत्रकारों के आवास के लिये ऋण अनुदान की उन्होंने पहले ही पहल की है। मिडिया कर्मी सुरक्षा विधेयक छ्ग में लागू करना देश के अन्य प्रदेशों के लिये नजीर बनेगा, यह तय है …. बधाई भूपेशजी।

सुनील का एनडीटीवी
से इस्तीफा….    

छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्य सचिव सुनील कुमार ने एनडीटीवी बोर्ड के एडीशनल डाइरेक्टर के पद से इस्तीफा दे दिया है। इन्होंने 9 मार्च को अपना त्यागपत्र टीवी चैनल की संचालक कंपनी अडाणी ग्रुप को भेज दिया था। सुनिल कुमार ने अपने इस्तीफा में हाल के कुछ घटनाक्रमों का उल्लेख किया है। उन्होंने कहा है कि एनडीटीवी के साथ अपने जुड़ाव पर पुनर्विचार करने के लिए मुझे प्रभावित किया है।वैसे भी देश की आईएएस लाबी में अपनी कार्यप्रणाली और ईमानदार छवि के लिये जाने,जानेवाले सुनील कुमार क़ो ज़ब एनडी टीवी में एडीशनल डायरेक्टर बनाया गया था तभी उन लोगों क़ो आश्चर्य हो रहा था,जो सुनील क़ो अच्छे से जानते हैं। इधर पूर्व सीऍम रमन सिंह के खास एक और पूर्व प्रमुख सचिव अमन सिंह भी अडाणी समूह की ओर से एनडीटीवी बोर्ड में एडीशनल डॉयरेक्टर के पद के लिए मनोनित किए गए थे। वे अभी आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में छ्ग के आर्थिक अपराध विभाग के जाँच के दायरे में हैं।

रिटायर अफसरों की
मौज है छ्ग में….    

छत्तीसगढ़ में आगामी विधानसभा चुनाव जैसे जैसे करीब आते जा रहे हैँ वैसे वैसे शह और मात का खेल तेज होता जा रहा है। अपने पसंदीदा अफसरों क़ो तो सेट किया ही जा रहा है वहीं रिटायरअफसरों क़ो भी समायोजित करने का सिलसिला जारी है। हाल ही में छ्ग मंत्रिमंडल की बैठक में पुलिसमुख्यालय में एक ओएसडी का पद स्वीकृत किया गया है, सूत्र कहते हैँ कि जल्दी ही रिटायर होने वाले एक वरिष्ठ आईपीएस अफसर क़ो उपकृत करने की तैयारी है…? नान घोटाले में चर्चित सेवा निवृत आईएएस डॉ आलोक शुक्ला क़ो महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गईं है तो आदिवासी समाज के एक रिटायर प्रमोटी आईएएस क़ो भी महत्वपूर्ण पद दिया गया है। हाल ही में सेवानिवृत आईएएस निरंजन दास क़ो उसी पद पर संविदा में नियुक्त किया गया है. सबसे दिलचस्प बात यह है कि उनका पुनर्वास आदेश भी एक सेवानिवृत संविदा अधिकारी ने जारी किया है। छ्ग के मूल निवासी, पूर्व मुख्य सचिव विवेक ढांड क़ो भी इस सरकार ने नवाचार आयोग का चेयरमैन बना दिया है। मुख्य सचिव पद से रिटायर होने के पहले ही डॉ रमन सरकार ने रेरा का चेयरमैन बना दिया था और रेरा से रिटायर होते ही उन्हें नवगठित ‘नवाचार आयोग’ का चेयरमैन बना दिया गया और उनकी ही मर्जी पर जल्दी ही रिटायर होने वाले एक आईएफएस की रेरा में ताजपोशी की तैयारी है।

और अब बस…

0 महादेव एप से सट्टा खिलाने के मामले की ईडी जाँच में कौन से 2 एडीशनल एसपी निशाने पर हैं?
0भाजपा नेता यही नहीं समझ पा रहे हैँ कि विस चुनाव में टिकट वितरण में किस स्थानीय नेता की चलेगी…?
0 कलेक्टरों के तबादले में क्या राजधानी भी प्रभावित होगी?
0 छ्ग में विस चुनाव के चलते अचार संहिता लगने के पहले क्या अक्टूबर तक तबादला होता रहेगा..?

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