शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )
आजादी की 75वीं सालगिरह पर घर-घर तिरंगा और सोशल मिडिया में डीपी में तिरंगा लगाने की अपील के बीच कांगेस और कुछ अन्य लोगों द्वारा नेहरू की तस्वीर वाला तिरंगा डीपी में लगाने, भाजपा द्वारा घर में तिरंगा लगाने की अपील,उसे बेचने, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुख्यालय में 52 सालों तक राष्ट्रीय पर्व में तिरंगा नहीं फहराने?को लेकर कांग्रेस -भाजपा के बीच आरोप प्रत्यारोप चल रहा है… ऐसे समय में तिरंगा फहराने को लेकर उद्योगपति नवीन जिंदल की कानूनी लड़ाई और जीत की भी चर्चा जरुरी है….तिरंगा देश की शान है, मगर फिर भी इसे देशवासी विशेष अवसरों पर ही फहरा पाते थे। मगर रायगढ़ के उद्योगपति एवं पूर्व सांसद नवीन जिन्दल चाहते थे कि तिरंगे को जब मन करे तब फहरा लिया जाए। ऐसा ख्याल मन में आना स्वभाविक नहीं था बल्कि अमेरिका में पढ़ाई करते हुए जब नवीन ने अमेरिकियों के देश के प्रति उनके प्रेम और राष्ट्रध्वज के प्रति लगाव को देखकर लोकतंत्र के मंदिर भारत में भी इस परंपरा को शुरू करने का संकल्प कर बैठे। अमेरिकी अपने झंडे को हर दिन सम्मानपूर्वक घर, दफ्तर कहीं भी फहराते थे। इसके लिए उन्हें किसी खास दिवस का इंतजार नहीं करना होता था।यूनिवर्सिटी ऑफ डलास एट टेक्सास में अध्ययन कर रहे जिंदल ने वहां रहकरअमेरिकियों के देशप्रेम पर अनवरत शोध भी किया। यही से शुरू हुई तिरंगा को अपनी दिनचर्या में शामिल करने की जिद्द, जो संसद में प्रस्ताव पारित करने ही कानून बन गया। मगर ये सफर और डगर आसान नही थी।नवीन जिन्दल ने अमेरिका में रहते हुए ही संकल्प ले लिया था।वहां से भारत लौटने के बाद बिलासपुर के तत्कालीन संभागीय आयुक्त ने जिन्दल को उनकी रायगढ़ स्थित फैक्टरी में नियमित रूप से तिरंगा फहराने से साफ मना कर दिया। यही वह वक्त था जब जिन्दल ने तिरंगा को सरकारी तंत्र से आजाद कराने का संकल्प लिया। घर या कहीं पर भी तिरंगा लगाने की स्वीकृति के लिए नवीन जिंदल 1995 में दिल्ली हाईकोर्ट गए मगर फैसले के इंतजार में नौ साल बीत गए। 23 जनवरी 2004 को सुप्रीम कोर्ट से अपने पक्ष में फैसले के बाद विजय पताका लहराते हुए पूरे देश में छा गए। इसके बाद जन-जन तक देशभक्ति की भावना पहुंचाने के लिए शुरू हुई नवीन जिन्दल की तिरंगा यात्रा, जो अनवरत जारी है। बता दें कि पहले कोई भी व्यक्ति तिरंगा टोपी नहीं पहन सकता था, अपने कपड़ों पर लैपल पिन या किसी अन्य रूप में तिरंगे का उपयोग नहीं कर सकता था। जिंदल के प्रयास से इसकी छूट मिल गई।
नीतीश कुमार का
‘राजनीतिक खेला ‘
इंजीनियर से बिहार की राजनीति के चाणक्य बने नीतीश कुमार के भाजपा से नाता तोड़कर अपनी फिर सरकार बनाने से भाजपा को बड़ा झटका लगा है। मप्र, महाराष्ट्र, गोवा आदि राज्यों में “राजनीतिक खेला” करने वाले भाजपा नेतृत्व को पहली बार मुंह की खानी पड़ी है….? न तो ईडी, न सीबीआई, न आईटी का दबाव और न ही खरीद फरोख्त…..?मुख्यमंत्री नीतीश बिहार की राजनीति के चाणक्य यूँ हीं नहीं कहे जाते हैं । राज्य के दो प्रमुख दलों के बाद सदन में सदस्य संख्या के मामले में मौजूदा समय में तीसरा स्थान है। इसके बाद भी सत्ता की कमान कम सदस्य होने के बावजूद पिछले सत्रह साल से नीतीश कुमार के हाथ में है। एक इंजीनियर से राज्य की सत्ता के शिखर तक का सफर तय करनेवाले नीतीश कुमार के साथ राजनीतिक सफलता के ढेरो किस्से जुड़े हुए हैं। पहली बार 3 मार्च, 2000 से लेकर 10 मार्च 2000 तक सीएम बने फिर, 24 नवंबर, 2005 से लेकर 24नवंबर, 2010 तक फिर 26 नवंबर, 2010 से लेकर मई 2014तक उसके बाद 22 फरवरी, 2015 से लेकर 19 नवंबर 2015 तक फिर 20 नवंबर 2015 से लेकर 26 जुलाई 2017तक,उसके बाद 27 जुलाई 2017से 9अगस्त 22तक और अब 10 अगस्त को फिर सीएम पद की आठवीं बार शपथ ली है।बिहार विस में अब एक तरफ सभी राजनीतिक दल हो गये हैँ और दूसरी तरफ भाजपा अकेले पड़ गई है…. यह एक संदेश देश में भी निश्चित ही गया है कि भाजपा को निपटना है तो अन्य विपक्षी दलों को एक होना होगा जैसे आपातकाल के बाद सभी दल कांग्रेस के खिलाफ एकजुट हुए थे…!
साय के बदले साव,
मोहन का पलड़ा भारी..
छत्तीसगढ़ भाजपा में आगामी विस चुनाव के पहले बदलाव की शुरुआत हो चुकी है। विश्वआदिवासी दिवस के दिन आदिवासी नेता विष्णु देव साय को हटाकर बिलासपुर से सांसद अरुण साव को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है ये पिछड़ा वर्ग से हैं और पिछड़ा वर्ग से बिलासपुर से ही विस में नेता प्रतिपक्ष धरम लाल कौशिक भी हैं। उनको भी हटाने की चर्चा है….?सवाल है कि छ्ग विधानसभा में सिर्फ 2आदिवासी विधायक ननकी राम कंवर, डमरूधर पुजारी हैं…?इनमे से कोई नेता प्रतिपक्ष बनेगा ऐसा लगता नहीं है….पिछड़ा वर्ग से अजय चंद्राकर, नारायण चंदेल वैसे भी दौड़ से बाहर हो गये हैं क्योंकि पिछड़ा वर्ग से ही बनाना है तो कौशिक क्या बुरे हैं…!सामान्य वर्ग से डॉ रमन सिंह तो नेता प्रतिपक्ष बनने से रहे ऐसे में बृजमोहन अग्रवाल का दावा तो बनता है… नेतृत्व उन्हें मिलेगा यह भाजपा आलाकमान को सोचना है…? देखना है कि नेता प्रतिपक्ष किसे बनाया जाता है।
नक्सल विरोधी फोर्स:12हजार
करोड़ से अधिक की देनदारी…..?
नक्सल उन्मूलन हेतु छत्तीसगढ़ राज्य में तैनात केन्द्रीय सुरक्षा बलों पर होने वाले खर्च 12 हजार करोड़ से अधिक का भुगतान करना भी राज्य सरकार के गले की हड्डी बन गया है। केंद्र सरकार यह राशि राज्य से वसूलना चाहती है। पूर्ववर्ती भाजपा की रमन सरकार ने यह विरासत में भूपेश सरकार को सौंपा है।स्काईवाक सहित मोबाइल वितरण योजना का करोड़ों का बकाया भी विरासत में सौंपा है।दरअसल छग में भाजपा की सरकार बनने के बाद नक्सल गतिविधियां बढ़ी और उसके उन्मूलन के लिए भाजपा की रमन सरकार ने छग में केंद्रीय सुरक्षा बल सीआरपीएफ, आईटीबीपी, बीएसएफ, नागा बटालियन आदि की तैनाती की मांग की उन्हें अंदाजा था या नहीं यह तो नहीं कहा जा सकता पर लगातार केंद्र की सरकार (कांग्रेस नीत तथा भाजपा नीत सरकार) ने राज्य की मांग पर केंद्रीय सुरक्षा बल की तैनाती की। 2007 में एंटी नक्सल आपरेशन ग्रीनहंट तथा सलवा जुडूम आंदोलन को लेकर राज्य की मांग पर केंद्र सरकार ने लगातार केंद्रीय सुरक्षाबलों की तैनाती की। सूत्र बताते हैं कि नक्सल प्रभावित 9 राज्यों में कुल 90 केंद्रीय सुरक्षा बल की बटालियन तैनात है और उसमें आधी यानि करीब 48 बटालियन छत्तीसगढ़ में तैनात है। जब रमन सरकार को पता चला कि केंद्रीय सुरक्षाबल की तैनाती का खर्च राज्य सरकार को वहन करना पड़ेगा तब राज्य सरकार ने उस समय (2007) में तत्कालीन गृहमंत्री पी. चिदंबरम तथा वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी से तब के 2400 करोड़ केंद्र सरकार द्वारा वहन करने की मांग की थी पर यूपीए सरकार राजी नहीं हुई, उसके बाद मोदी सरकार बनने पर गृहमंत्री राजनाथ सिंह से भी अनुरोध किया पर उन्होंने भी अनसुनी की अब प्रदेश में भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बन गई है और सुरक्षा बलों की तैनाती पर केंद्र की देनदारी बढ़ कर करीब 12 हजार करोड़ के आसपास हो गई है। हाल ही में नीति आयोग की बैठक में छ्ग के सीएम भूपेश बघेल ने प्रतिपूर्ति की मांग मोदी सरकार से की है। छग सरकार के मुख्यमंत्री तथा वित्तमंत्री भूपेश बघेल ने केंद्रीय बजट 2019-20 के लिए सुझाव दिया था जिसमें नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के विकास के लिए 4433 करोड़ की कार्ययोजना प्रस्तावित की है पर कुछ हुआ नहीं…हाल ही में नक्सल उन्मूलन हेतु केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती पर होने वाले लगभग 12हजार करोड़ से अधिक की राशि को केंद्र सरकार को वहन करने का अनुरोध किया है। पर जब डॉ. रमन सिंह अपनी ही पार्टी की सरकार के गृहमंत्री राजनाथ से यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं करा पाये तो भूपेश बघेल की मांग पर गृहमंत्री अमित शाह, वित्त मंत्री निर्मला सीतारामण 12हजार करोड़ से अधिक की राशि केंद्र द्वारा वहन करने पर विचार भी करेंगे ऐसा लगता तो नहीं है….?
और अब बस…
0रायपुर, सरगुजा और बिलासपुर के आई जी पुलिस के बदलने की चर्चा तेज है…?
0पुलिस मुख्यालय से 2आईजी में एक की फिल्ड में हो सकती है तैनाती….?
0 क्या ईओ डब्लू और एसीबी का नेतृत्व भी बदलेगा…?