शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )
भारत में हाल ही में लागू क़ानून नये सिरे से पुलिस राज को ही बढ़ावा देने का उपक्रम माना जा रहा हैइन कानूनों को लेकर कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि कानून लागू करने वालीएजें सियों,न्यायिक अधिकारियों कानूनी पेशेवरों के लिये आगे बड़ी चुनौतियां हैं। ये कानून बड़ी संख्या में नाग रिकों को उनके जीवन में किसी न किसी समय प्रभा वित करेंगे।कानूनी जान कारों की ये दलील है कि नये आपराधिक कानूनों में, कानून प्रवर्तन एजेंसियों को बिना किसी नियंत्रण, संतु लन के निरंकुश शक्तियां दी गई हैं जिससे खतरा भी हो सकता है।उनमें से कुछ का उल्लेख किया जाना समी चीन होगा।पुलिस,न्यायिक अभिरक्षा में आरोपी को रखने की वैध मियाद को 15 दिनों से बढ़ाकर अब 90 दिनों तक कर दिया गया है।बताने की ज़रूरत नहीं है कि अपराधी हों या निर्दोष,दोनों तरह की हिरा सत किस तरह सभी के लिये एक जैसी नारकीय हैं।फिर, पुलिस लॉकअप हो अथवा जेलें,दोनों में क्षमता से अधिक आरोपी या सज़ा याफ़्ता रखे जाते हैं। मानव गरिमा के विपरीत परिस्थि तियां तो पहले से मौजूद हैं,यह कल्पना सहज है कि बढ़ी हुई संख्या में वे किस तरह से सलाखों के पीछे दिन काटेंगे।‘राजद्रोह’ शब्द नयी न्यायिक संहिता से हटा दिया गया लेकिन बहुत से नये आधार बना लोगों को जेलों में बगैर मुकदमा चलाना आसान, जमानत प्रक्रिया को और कठिन बना दिया गया है।देश की एकता,अखंडता को नुक सान पहुंचाने वाले कृत्यों के खिलाफ लाये गये कानून अप्रत्यक्ष रूप से सरकार के खिलाफ उठनेवाली आवा ज़ों को खामोश करने का बढ़िया ज़रिया बन जायेंगे। यह धारा लगाने का विवेका धिकार भी अपेक्षाकृत निचले अधिकारी के पास हो गया है। इनमें भी लम्बे समय तक जमानत नही मिलने के प्रावधान कर दिये गये हैं।अनुमान लगाना कोई मुश्किल नहीं है कि जिस सरकार ने विपक्षी नेताओं, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, लेखकों, बुद्धि जीवियों, ट्रेड यूनियन और किसान संगठनों के नेताओं के ख़िलाफ़ पहले से अभियान जैसा छेड़ रखा है उसका व्यवहार ये काले कानून हाथ में लग जाने के बाद कैसा होगा! गैरकानूनी गति विधियां(प्रतिबंध)कानून यानी यूएपीए के चलते कितने लोग लम्बे समय से जेलों में सड़ रहे हैं, सरकार के हाथ नये कानूनों से भी ताक़तवर हो जायेंगे। यह भी माना जा रहा है कि प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अतिरिक्त स्वतंत्र मीडिया (सोशल) का गला घोंटना भी अब आसान हो जायेगा ? सरकार विरोधी खबरों, रिपोर्ताज,समीक्षा को भी देश की एकता-अखं डता के लिये खतरा बता ऐसे पत्रकारों,मीडिया संस्थानों को सरकार द्वारा डराना बेहद आसान हो ही जायेगा…?
जुनेजा के बाद कौन
बनेगा पुलिस मुखिया?
आईपीएस 1992बैच के अरुण देव गौतम तथा 19 94 बैच के हिमांशु गुप्ता को डीजी बनाया गया है, आदेश जारी हो गया है वहीं 1992 बैच के आईपीएस पवनदेव के विरुद्ध विभा गीय जाँच लंबित होने के कारण उन्हें फिलहाल डीजी पदोन्नत नहीं किया गया है।हालांकि उनके नाम का लिफाफा बंद कर रखा गया है यानि जाँच पूरी होने पर उन्हें पदोन्नत किया जाएगा।जुनेजा के बाद दोनों में से किसी को डीजीपी बनाया जाना चाहिये पर सरकार किसी जूनियर को भी कार्य कारी डीजीपी बना सकती है।!अशोक जुनेजा अगले माह ही रिटायर होंगे, वहीँ अरुणदेव गौतम जुलाई 27 पवन देव जुलाई 28,हिमां शु गुप्ता जून 29, एसआर पी कल्लूरी मई 31,प्रदीप गुप्ता जुलाई 31, विवेका नंद सिन्हा जनवरी 32, दीपांशु काबरा जुलाई 34 में रिटायर होंगे। एडीजी गुप्तवार्ता अमित कुमार दिसंबर 35 में सेवानिवृत होंगे।
जीपी सिँह की बहाली
का मामला लटका ?
मिनिस्ट्री ऑफ होम अफे यर्स ने फ़ोर्सली रिटायर किये गये आईपीएस जीपी सिंह की बहाली के सम्बन्ध में छ्ग सरकार को ‘पुन र्विचार’ करने को कहा है, इसके बाद सिंह की बहाली लटक गई है,केंद्र या राज्य सरकार कैट के फैसले के खिलाफ सुको का रुख कर सकती है।छग के 1994 बैच के आईपीएस जीपी सिंह को पिछली छग सर कार की अनुशंसा पर भारत सरकार ने फोर्सली रिटायर कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ जीपी सिंह कैट की शरण ली थी, फैसला उनके पक्ष में आया। कैट ने सिंह को 4 हफ्ते के भीतर फिर सर्विस ज्वाईन कराने का आदेश दिया था, कैट का फैसला केंद्र सरकार के मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर को भेजा गया था।पर वहां से पुनर्विचार का आदेश आने पर पुलिस में ज्वाइ निंग अब होने की उम्मीद कम ही है क्योंकि ‘अमित शाह’ के गृह मंत्रालय से पुनर्विचार सम्बंधित पत्र आने के बाद छ्ग सरकार जीपी सिंह के पक्ष में कोई निर्णय लेगी इसकी उम्मीद कम ही है!ज्ञात रहे किआय से अधिक संपति, राजद्रोह के मामले में ईओडब्लू ने उन्हें गुड़गांव से गिरफ्तार किया था। वे लंबे समय तक जेल में भी रहे।
और अब बस…..
0क्या छ्ग सीएम सचिवालय में एसीएस या पीएस की नियुक्ति हो रही है….?
0क्या फिर कुछ एसपी को बदला जा रहा है…?
0 सीएम के बाद किसकी चल रही है,दोनों डिप्टी सीएम पर कौन मंत्री भारी है…?