शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )
अब यह इत्तेफाक है या कोई रहस्य… पिछली चार सदियों में हर 100 सालों में औसत अलग-अलग महामारियों ने दुनिया में हमला किया और हर बार हजारों लाखों इंसानों की बली चढ़ी… हर बार हमने महामारियों का इलाज ढूंढने में इतनी देरी की कि बहुत देरी हो गई। पिछले 400 सालों में महामारियां आती हैं और तबाही दुनिया में मचा कर जाती है। अभी वर्तमान में कोरोना महामारी का हमला जारी है।
सन 1720 में पूरी दुनिया में प्लेग फैला था उसे ग्रेट प्लेग ऑफ मार्सिले कहा जाता है। फ्रांस के एक शहर मार्सिल में प्लेग की वजह से एक लाख से अधिक लोगों की मौत हुई थी lप्लेग फैलते ही कुछ महीनों में 50 हजार लोग मारे गये बाकी के 50 हजार लोग अगले 2 सालों में मर गये।
उसी तरह ठीक 100 साल बाद सन 1820 में एशियायी देशों में कालरा यानि हैजा ने महामारी का रूप ले लिया। इस महामारी ने जापान, अरब देशों, भारत, बैंकाक, मनीला, जावा, चीन और मॉरिशस जैसे देशों को अपनी जकड़ में लिया था। हैजा के कारण ही जावा में एक लाख लोगों की मौत हुई थी जबकि हजारों लोगों की मौत थाइलैंड, इंडोनेशिया और फिलीपींस में हुई थी।
हैजा-कालरा के लगभग 100 साल बाद सन 1920 में स्पैनिश फ्लू के नाम पर धरती में फिर तबाही आई, जैसे यह फ्लू 1918 में ही शुरू हुआ था लेकिन इसका सबसे ज्यादा असर 1920 में देखने मिला। कहा जाता है कि इस फ्लू की वजह से पूरी दुनिया में करीब 2 करोड़ से अधिक लोग असमय ही मौत की आगोश में चले गये थे।
अब स्पैनिश फ्लू के बाद 2020 में पूरा विश्व कोरोना महामारी की चपेट में है। इत्तेफाक ही कहेंगे कि यह भी 100 साल बाद आया है। साल की शुरुवात में चीन से शुरू होकर अब ये महामारी पूरी दुनिया में फैल चुकी है। लाखों लोग इसकी जद में है और अभी तक हजारों लोग मारे जा चुके हैं। अभी तक इस महामारी से 1.42 लाख लोगों के मरने की खबर है। केवल भारत में ही अभी तक 420 लोग मारे जा चुके हैं। छत्तीसगढ़ उन सौभाग्यशाली प्रदेशों में एक है जहां यह महामारी तो फैली पर अभी तक किसी की मौत की खबर नहीं हैै।
रेेल बंदी का इतिहास बना
कोरोना महामारी के चलते 3 मई तक रेल बंदी की घोषणा हो चुकी है। करीब 40 दिन (अभी तक की घोषणा के अनुसार) यात्री रेल के पहिये थमे रहेंगे। देश के इतिहास का यह पहला मौका है जब सरकार ने रेल सेवा बंद की हो। वैसे पहले रेलवे कर्मियों की हड़ताल के चलते 20 दिन रेल सेवा प्रभावित रही थी।
मुंबई में लोकल एक दिन बंद होने से रेल प्रशासन हिल जाता है, जिस कोलकाता में मेट्रो बंद होने का मतलब कोलकोता बंद होना मान लिया जाता हो वहां देश की सभी यात्री रेल सेवा बंद होने का फैसला केंद्र सरकार ने लिया है। दरअसल रेल यात्रा के दौरान ही कोरोना संक्रमण फैलने की खबर मिली थी सोशल डिस्टेसिग के तहत ही इतना बड़ा कदम उठाया गया।
1974 की रेल हड़ताल…
8 मई 1974 को देश में मजदूर नेता, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष, पत्रकार जार्ज फर्नांडीस के नेतृत्व में रेल हड़ताल प्रारंभ की गई थी। उस समय जार्ज फर्नांडीस सोशलिस्ट पार्टी के अध्यक्ष तथा आल इंडिया रेलवे फेडरेशन के अध्यक्ष थे। रेल कर्मचारियों को न्यूनतम बोनस देने की प्रमुख मांग को लेकर चली यह हड़ताल करीब 20 दिन चली थी। दरअसल रेलवे कर्मचारियों को बोनस देने में 200 करोड़ का बोझ आने वाला था पर भारत ने रेलवे हड़ताल तोडऩे ही 2000 करोड़ खर्च करना पड़ा था। असल में 7 मई 1974 को नेशनल मजदूर यूनियन के पदाधिकारी कामरेड मलगी की मुंबई में गिरफ्तारी, पुलिस हिरासत में मौत से आक्रोशित होकर रेलवे कर्मचारी समय पूर्व ही हड़ताल पर चले गये थे। कुछ समय बाद ही जार्ज फर्नांडीस सहित काफी लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था। उस समय इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थी l27 मई1974 तकयानि हड़ताल 20 दिन करीब चली और 1975 के आपातकाल की पृष्ठभूमि के पीछे भी यही हड़ताल मानी जा सकती है। बहरहाल आपातकाल के बाद 1979 में स्व. चरण सिंह के प्रधानमंत्रित्व वाली सरकार ने रेल मजदूरों के बोनस के सिद्धांत को स्वीकार कर 8.33 प्रतिशत बोनस देना शुरू किया था तब तक जार्ज फर्नांडीस केंद्र में मंत्री बन चुके थे। वही उस हड़ताल के समय निकाले गये कर्मचारियों को 3 साल बाद काम में वापस भी लिया गया।
महामारी और मजदूरों की बदहाली…
असंगठित मजदूरों की अपनी अलग दुनिया है। वे एक गांव-शहर से उठकर किसी अंजान शहर के कोने में झोपड़ी डालते हैं और अपने हुनर और खून पसीने से आलीशान इमारतों, बाग, ताल आदि खूबसूरत चीजों को बना देते हैं फिर एक दिन जब सब कुछ तैयार हो जाता है और उनकी मेहनत की जरूरत नहीं रह जाती है तब वे फिर किसी अंधेरी अंजान दिशा की ओर जाने मजबूर हो जाते हैं। गरीबी और लाचारी उन्हें पृथ्वी के एक कोने से दूसरे कोनें में धकेलती रहती है वे गठरी टांगे हुए अपने स्थायित्व की तलाश में भटकते हैं। जब स्थिति सामान्य रहती है तब समाज के सबसे निचली तह में इनकी जिंदगी गलते रहती है। दुनिया को लगता है कि सब कुछ साफ और सुंदर है। लेकिन जैसे ही स्थितियां प्रतिकूल होती है सबसे निचली तह से दबे हुए अदृश्य लोग अचानक दिखने लगते हैं, प्राकृतिक आपदा-विपदा, युद्ध आदि स्थितियों में उनकी बदहाली समाज की उपरी सतह पर तैरने लगती है। आज दुनिया में कोरोना महामारी का बड़ा असर भारत में भी हुआ है। स्वास्थगत चिंताओं के साथ हमारी सामाजिक -आर्थिक अव्यवस्था को भी उजागर कर दिया है, काम की तलाश में हर साल अपने गांवों, कस्बों
से महानगरों की ओर पलायन कर गये छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड के असंगठित मजदूरों की हालात सामने आ गई है। पलायन रूकने के दावे की पोल खुल रही है।
महानगरों से कोरोना के कारण लॉकडाउन के चलते अपने गांवों की ओर पैदल लौटते मजदूरों का जत्था भयावह संकट को दिखा रहा है। सिर पर गठरी उठाये, बाजू में मासूम बच्चों को समेटे, भूखे प्यासे पैदल चल रहे लोगों का झूंड दिल दहला देना वाला है। यह ठीक है कि आपदाएं या युद्ध मानव द्वारा निर्मित व्यवस्थओं को तहस नहस कर देती है, मानव सभ्यता इस तरह की आपदाओं से संघर्ष करते हुए निर्मित हुई है। आज जब हम हजारों की संख्या में बच्चों सहित लौटते हुए मजदूरों को देख रहे हैं तो यह सिर्फ महामारी के परिणाम स्वरूप नहीं है बल्कि हमारी सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था का भी परिणाम है। इन मजदूरों की सामाजिक स्थिति क्या है? क्या सामाजिक सुरक्षा के होते हुए इन्हें इन भीषण परिस्थितियों का सामना करना पड़ता?नि:संदेह छग सरकार सहित अन्य प्रदेशों की सरकारों ने महामारी से बचाव और उसके प्रभाव से निपटने के बड़े स्तर पर तैयारियां की है लेकिन मूलभूत सवाल है नागरिकों की सामाजिक सुरक्षा और गरीबों, मजदूरों और कामगारों की बुनियादी समस्याओं के समाधान का सवाल, मजदूरों का महानगरों से पलायन इस बात का उदाहरण है कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी समाज के एक वर्ग की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित नहीं है, उनके लिये न घर है, न भोजन, न पैसा…. और न ही उनके परिवार की सुरक्षा के लिए न्यूनतम व्यवस्था है… हर दिन अनिश्चितता में रहने वााले है ये लोग…।
वैसे काम की तलाश में पलायन का सिलसिला देश की प्रमुख सांसद रही स्व. मिनीमाता के नाना के कार्यकाल से चल रहा है और अभी तक जारी है। राज्य सरकार यदि काम की उपलब्धता सुनिश्चित कर दे तो पलायन कम तो हो ही सकता है।
तबलीगी जमात…
देश-दुनिया पर उपस्थित कोरोना संकट के बीच कानूनों और चेतावनियों की अनदेखी कर दिल्ली में सैकड़ों विदेशियों के साथ तब्लीगी जमात द्वारा आयोजित जलसा मूर्खता के सिवा कुछ नहीं था। जलसे में शिरकत करने गये लोगों को भरोसा दिलाया गया था,पर उनकी सुरक्षा में तैनात 7 हजार फरिश्तों में से कोई नहीं आया बल्कि भारत में सैकड़ो से अधिक कोरोना संक्रमित मिले हैं। कईयों ने अभी भी अपनी पहचान छिपाकर खुद, परिवार सहित अन्य संपर्क सूत्रों को भी खतरे में डाल रखा है। छग में तो भूपेश बघेल के नेतृत्व में कोरोना पर विजय मिल ही चुकी थी पर तबलीगी जमात के चलते कटघोरा क्षेत्र कोरोना प्रभावित हो गया.. इसी के चलते भारत में अभी भी छत्तीसगढ़ का कोरोना प्रभावित राज्यों की सूची में नाम रह गया है। जमात के लोगों को अपनी पहचान बताना अब जरूरी हो गया है।
और अब बस…
0 प्रदेश की कांग्रेस सरकार पर आरोप मढऩे वाले भाजपा के बड़े नेताओं के पास भी इस बात का जवाब नहीं है कि कोरोना महामारी के चलते केंद्र सरकार ने कितनी राशि की मदद की…।
0 इतने लंबे लॉक डाऊन के बीच बीच में कर्फू जैसे हालात बनाने के पीछे क्या मकसद है सामाजिक दूरी बनाए रखना या…… क्योंकि कुछ अफसर पहली बार ऐसे हालात देख रहे हैं…।
0 मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंह देव तो सड़कों पर दिखाई दे रहे हैं पर 15 साल तक मुख्यमंत्री रहे डॉ. रमन सिंह तथा नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक केवल टीवी पर ही दिख रहे हैं।