ठनी रहती है मेरी सिरफिरी हवाओं से….. मैं फिर भी रेत के टीले पे घर बनाता हूँ…..

शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )     

लोकसभा में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बिल (नारी शक्ति वंदन अधिनियम)को लोकसभा में पेश किया। वह पारित हो गया, राज्य सभा में भी बिल पारित हो गया अब राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 181 हो जाने का रास्ता साफ हो जाएगा जिसमें वर्तमान लोकसभा की कुल सीटों में एससी वर्ग की महिलाओं के लिये 28, एसटी वर्ग के लिये15 तथा सामान्य वर्ग की महिलाओं के लिये 138सीटें आरक्षित होंगी। हालांकि विपक्ष ने ओबीसी वर्ग के लिये भी आरक्षण यानि आरक्षण के भीतर भी आरक्षण के लिये आवाज़ उठाई तथा तत्काल ही आरक्षण लागू करने दबाव भी बनाया था पर संवैधानिक प्रावधानों के तहत यह संभव नहीं था। वैसे लोकसभा में फिलहाल 82 महिला सांसद हैं। फिलहाल तो महिला आरक्षण झुनझुना ही होगा क्योंकि बिल पारित होने के बाद जनगणना, परिसीमन के बाद ही महिलाओं के लिये सुरक्षित सीटें तय होंगी,2029 के लोकसभा चुनाव में महिला आरक्षण का प्रावधान लागू हो सकेगा। सवाल यह भी उठ रहा है कि ज़ब यह प्रावधान 2029 में लागू होना था तो विशेष सत्र बुलाने की क्या जरूरत थी?यह दिसंबर में होने वाले नियमित सत्र में भी हो सकता था… वैसे विपक्ष का कहना है कि नवम्बर में होनेवाले 5 राज्यों के विस चुनाव में महिला मतदाताओं को अपनी और आकर्षित करने भाजपा का एक बड़ा राजनीतिक एजेंडा माना जा रहा है।वैसे महिला आरक्षण बिल 1996 से ही अधर में लटका हुआ था। उस समय एचडी देवगौड़ा सरकार ने 12 सितंबर 1996 को इस बिल को संसद में पेश किया था।राजीव गाँधी, अटलजी,नरसिम्हा राव के समय भी पहल हुई थी,लेकिन पारित नहीं हो सका था। यह बिल 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में पेश हुआ था।बिल में संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी आरक्षण का प्रस्ताव था।इस 33 फीसदी आरक्षण के भीतर ही अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए उप-आरक्षण का प्रावधान था।लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं था।नये बिल में भी प्रस्ताव है कि लोकसभा के हर चुनाव के बाद आरक्षित सीटों को रोटेट किया जाना चाहिए।आरक्षित सीटें राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में रोटेशन के ज़रिये आवंटित की जा सकती हैं।इस संशोधन अधिनियम के लागू होने के 15 साल बाद महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण ख़त्म हो जाएगा।

अयोध्या में राम लला के
दर्शन से मुंडन तक….  

छत्तीसगढ़ में आगामी विधानसभा चुनाव में “हिंदुत्व” एक बड़ा मुद्दा बनेगा। भूपेश सरकार के भांचा राम,कौसल्या मंदिर,राम वनपथ गमन और कृष्ण कुंज योजनाओं का काट श्रीराम पर ‘एकाधिकार’ जताने वाली भाजपा के पास नहीं है, तभी तो छ्ग आने वाले भाजपा के बड़े नेता मोदी सरकार की उपलब्धियाँ गिनाने,भूपेश सरकार की कमियां बताने की जगह हिंदुत्व पर ही बोलना उचित समझते हैं। कांग्रेस छोड़कर,भाजपा में शामिल होनेवाले असम के सीएम ने छ्ग में हिंदुत्व का एक अलग मुद्दा उछाल दिया है और उसका जवाब मिलने पर भाजपाईयों को कुछ सूझ नहीं रहा है।हिंदुत्व के मुद्दे पर दो राज्यों के सीएम आपस में भिड़ गए हैं।पहले असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने छ्ग के सीएम को हिंदू होने की पुष्टि के लिए राहुल और सोनिया गांधी को अयोध्या ले जाने की चुनौती दी ।तब छग के सीएम भूपेश बघेल ने पलटवार किया है।सीएम भूपेश बघेल ने हिमंत बिस्वा शर्मा के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक के हिंदू होने पर सवाल खड़ा कर दिया है?असम के मुख्यमंत्री हिमंत विस्व सरमा ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को खुली चुनौती देते हुए कहा कि जरा भी हिन्दू हैं तो राहुल गांधी को रामलला के मंदिर लेकर जाओ। यदि चुनावी हिन्दू मात्र नहीं हैं तो राहुल को अयोध्या लेकर जाएं।तब छग के सीएम भूपेश बघेल ने असम के सीएम की चुनौती पर जवाब देते हुए कहा कि ”असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा हिंदू हैं और हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हिंदू हैं…हमारे हिंदू धर्म के आधार पर माता या पिता की मृत्यु हो जाने आग देने वाले पुत्र को बाल(मुंडन संस्कार)देना होता है।लेकिन पीएम मोदी तो सर मुड़ाए ही नहीं..तो सीएम हिमंत से कहना चाहूंगा कि नरेंद्र मोदी का मुंडन करवा लें….माता के निधन के बाद अभी तक नहीं कराया है। अगर वो मुंडन कराएंगे तो मैं हिमंत बिस्वा सरमा को हिंदू मानूंगा ”।इधर विधानसभा चुनाव में हिंदुत्व बड़ा चुनावी मुद्दा होगा ऐसा लग रहा है।छत्तीसगढ़ में अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।भाजपा,कांग्रेस को सत्ता से हटाने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है तो कांग्रेस भी सत्ता में जमे रहने के लिए जोर लगा रही है।कांग्रेस लगातार भगवान राम के ननिहाल के रूप में छत्तीसगढ़ को देश में पेश कर रही है।भगवान राम के वनवास के समय छग के जिन स्थानों पर उनका ठहरना हुआ था उन इलाकों को ‘राम वन पथ गमन’ के रूप में विकसित किया जा रहा है।वहीं भाजपा,कांग्रेस सरकार पर गौ माता के नाम पर राजनीति करने आरोप लगा रही है।

छ्ग में महिला विधायकों
का प्रतिशत अधिक….   

देश की लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में आरक्षण के बिल की चर्चा तेज है ऐसे में यह चर्चा भी लाजिमी है कि पूरे देश में सबसे अधिक छत्तीसगढ़ विधानसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व है। इसमें खास बात है कि यहां कांग्रेस की भूपेश सरकार के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद 5 विधानसभा के उपचुनाव हुए। जिसमें 3 महिला प्रत्याशी को टिकट दिया। ये सभी अपने-अपने विधानसभा चुनाव में विजयी हुईंं। यही वजह है कि छत्तीसगढ़ में कुल 90 विधानसभा सीटों पर 16 महिला विधायक हैं।वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ की 90 सीट में से 13 सीटें महिलाओं ने जीत हासिल की थी। इनमें विधानसभा में अंबिका सिंहदेव (बैकुंठपुर), उत्तरी गणपत जांगड़े (सारंगढ़), रेणु जोगी(कोटा), डा. रश्मि सिंह (तखतपुर), इंदू बंजारे (पामगढ़), शकुंतला साहू (कसडोल), अनिता शर्मा (धरसींवा), डा लक्ष्मी धुर्व (सिहावा), रंजना साहू (धमतरी), संगीता सिन्हा (संजारी बालोद), अनिला भेड़िया(डौंडीलोहारा), ममता चंद्राकर (पंडरिया) और छन्नी साहू (खुज्जी) चुनकर पहुंची थीं। बाद में तीन उपचुनाव के बाद दंतेवाड़ा में देवती कर्मा, खैरागढ़ में यशोदा वर्मा और भानुप्रतापपुर उपचुनाव में सावित्री मंडावी समेत महिला विधायकों संख्या 16 हो चुकी है।एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफार्म (एडीआर) की रिपोर्ट 2019 के अनुसार देश के अन्य राज्यों की विधानसभाओं में कुल सीटों के मुकाबले छत्तीसगढ़ और हरियाणा में 14.4 प्रतिशत महिला विधायक हैं। जो कि दूसरे राज्यों की तुलना में सर्वाधिक थीं। हालांकि हरियाणा में अब महिला विधायकों की संख्या घटकर आठ हो गई हैं। वहीं छत्तीसगढ़ में महिलाओं की भागीदारी 14.4 प्रतिशत से बढ़कर 17.7 प्रतिशत हो गयी है। अब छत्तीसगढ़ पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और ओडिशा से आगे है।छत्तीसगढ़ कुल में 90 सीट में 16 महिला 17.77प्रतिशत,मप्र में 230 सीट में 21 महिला 9.13 प्रतिशत,उत्तर प्रदेश में 403 सीट में 47 महिला 11.66 प्रतिशत,ओडिशा 147 सीट में 15 महिला 10.20 प्रतिशत हैं ।

फ़िल्म “जवान” के बहाने
सरकार पर निशाना?   

गौरीऔर शाहरुख़ खान की फिल्म ‘जवान’ कोई एक कहानी नहीं है,बल्कि कई छोटे-छोटे मुद्दों को एक पैकेज के रूप में पेश किया गया है।भ्रष्टाचार समेत ऐसे कई मुद्दे शामिल किए गए हैं।जैसे विपक्ष मोदी सरकार पर हमला करता है,उसी एजेंडे को ‘जवान’ आगे बढ़ा रही है। इसी वजह से इस फिल्म का ‘राजनीतिक विश्लेषण’ किया जा रहा है। फिल्म ‘जवान’ में दिखाया गया है कि कैसे सरकार कुछ खास कारोबारियों के लाखों करोड़ रुपए के लोन माफ कर देती है. दूसरी तरफ गरीब किसानों को कुछ हजार रुपए के लोन के लिए परेशान किया जाता है। एक करोड़पति कोऑडी जैसी कार के लिए महज 8 फीसदी में लोन मिल जाता है,जबकि किसान को ट्रैक्टर खरीदने के लिए 13 फीसदी की दर से लोन लेना पड़ता है।फिल्म में साउथ सिनेमा के सुपरस्टार विजय सेतुपति का 40 हजार करोड़ का लोन सरकार के द्वारा माफ कर दिया जाता है।इस फिल्म में गोरखपुर ऑक्सीजन कांड की कहानी भी दिखाई गई है. 10 अगस्त 2017 को गोरखपुर के बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी से 70 से ज्यादा इंसेफेलाइटिस पीड़ित बच्चों की मौत हो गई थी। इसका ठीकरा मेडिकल कॉलेज के डॉ कफील खान के सिर फोड़ दिया गया। उन्हें आरोपी बनाकर जेल भेज दिया गया।लेकिन दो साल के बाद कोर्ट ने उन्हें इस केस से बरी कर दिया था. फिल्म में एक्ट्रेस सान्या मल्होत्रा का किरदार डॉक्टर कफील से प्रेरित है।उन्हें बच्चों की मौत का जिम्मेदार बताकर जेल भेज दिया जाता है। इस फिल्म में रक्षा घोटाले की कहानी भी दिखाई गई है।इसमें दिखाया जाता है कि कैसे सरकार के एक बड़े नेता और उनके करीबी सहयोगियों की मदद से एक ऑर्म्स डीलर खराब हथियारों की सप्लाई करता है।इसकी वजह से एक मिशन में कई जवान शहीद हो जाते हैं। वैसे तो रक्षा घोटालों का एक लंबा इतिहास रहा है,लेकिन वर्तमान समय की बात करें तो कांग्रेस राफेल डील को लेकर मोदी सरकार को हमेशा कठघरे में खड़ा करती रही है।

और अब बस….

0कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गाँधी ने भिलाई के एक कार्यक्रम में भौँरा चलाकर सभी को आश्चर्य चकित कर दिया…?
0डिप्टी सीएम टी एस सिंहदेव के हर बयान को भाजपा क्यों लपक रही है… ?
0महादेव ऐप के संचालक की शादी में क्या छ्ग से भी पुलिस अफसर गये थे.. ?
0दूसरी बार गृह मंत्री तथा भाजपा के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह का छ्ग दौरा रद्द हो गया है।

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