शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )


पहलगाम में आतंकी हमला,जवाब में आपरेशन सिंदूर और फिर दोनों देशों के बीच संघर्षविराम केसाथ ही किसी तटस्थ जगह पर कश्मीर समस्या केसमाधान की बातचीत की मध्यस्थता से संबंधित अमेरिका केराष्ट्र पति ट्रंप की घोषणा को लेकर उठ रहे सवालों का जवाब कौन देगा…..विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता भले ही भारत-पाक वार्ता पर तीसरे का हस्तक्षेप नहीं की बात कर रहे हैं, पर पीएम नरेंद्र मोदी तो देश के नाम सन्देश में इस विषय पर कुछ भी बोलना उचित नहीं समझा?भारत की पूर्व पीएम इंदिरा गाँधी से अटलजी तक ने पहले पाक युद्ध के समय अमरीका राष्ट्रपति से बात करने से इंकार कर दिया था पर इस बार तो अमरीका ही युद्ध विराम की घोषणा कर चुका था और भारत-पाक ने मान भी लिया। आजादी के बाद देश ने पराजय का ऐसा भाव पहली बार मह सूस किया है,1962 मेंचीन से हम पिट गए थे,लेकिन हमारे सैनिकों की बहादुरी, नेहरू के पारदर्शी,नि:स्वार्थ नेतृत्व ने निराशा की गहरी खाई में डूबने से बचा लिया था,लेखक, कवियों, फिल्म कारों ने हमें उबरने में मदद की,प्रदीप का लिखा और लता का गाया “ऐ मेरे वतन के लोगों ” गीत आज भी हमें रोमांचित करता है…, कैफी का लिखा रफी का गाया “कर चले हम फिदा जानोतन साथियोँ ” जैसे गीत हमें बरसों प्रेरित करते रहेंगे। चीन से युद्ध के शर्म नाक नतीजों के 3 सालबाद हमने न केवल1965 का युद्ध जीता बल्कि अनाज में आत्मनिर्भरता पाने कीओर बढ़े,लालबहादुर शास्त्री का ‘जय जवान…जय किसान’ खोखला नारा नहीं खेती का कायाकल्प करने वाला साबित हुआ। 1971 के विजय और आगे कीकहानी नहीं दोहराऊंगा….!आखिर कौन सी बात थी जिसने जय-पराजय में मनोबल को ऊंचा बनायें रखा? ये थे हमारे बुनियादी उसूल,लोक तंत्र,सेकुलरिज्मऔरसमता।युद्ध के समय शास्त्रीजी ने कहा था,पाक, सेकुलरिज्म को खत्म करना चाहता है, हमारे बीच मतभेद पैदा करना चाहता है।तब सर कार ने साम्प्रदायिक एकता को पहले नंबर पर रखा।अब्दुल हमीद जैसे लोगों की शहादत को दिल से सलाम किया,1971का युद्ध हमने इसलिए जीता, आजादी,मानवता के महान मूल्यों के लिये अमेरिका जैसे ताकतवर के सामने खड़े हो गए, हमने बांग्ला देश से आनेवालों को घुस पैठिया नहीं , शरणार्थी कहा….अगर हम गौरव शाली राष्ट्र बनना चाहते हैं तो हमें अपने मूल्यों की ओर लौटना होगा….नहीं तो कोई ट्रम्प,शीपिंग नीचा दिखा देगा, हमारा नेतृत्व अभी की तरह कुछ करने की स्थिति में नहीं रहेगा..!दुनिया के नक्शे में 1971 के दिसंबर महीना काफी महत्वपूर्ण है…वह इंदिरा गांधी का ही दौर था जब भारत ने 13 दिन तक ऐसा युद्ध लड़ा था,जिसके परि णाम स्वरूप बांग्लादेश नाम के नए देश का उदय हुआ था!वही दौर था जब पाक के 90 हजार फ़ौजियों ने लेफ्टिनेंट जनरल अमीर अब्दुल्ला खा नियाजी के नेतृत्व में भारतीय सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण किया था,जिसे दुनिया का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण माना जाता है! ग़ौरतलब है कि भारत ने जीत तब हासिल की थी..जब पाक के साथ पश्चिमी गठबंधन और अरब जगत पूरी मजबूती से खड़ा था!1971 की जंग में अमे रिका,पाकिस्तान के साथ मजबूती से खड़ा था,रिचर्ड निक्सन उस समयअमेरिका के राष्ट्रपति, हेनरी किसिंजर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार थे ये दोनों उस समय पीएम इंदिरा गांधी को जरा भी पसंद नहीं करते थे,जबकि हालात ये थे कि 1971 के युद्ध से एक महीने पहले जब भारत-पाक में तनाव अपने चरम पर था, इंदिरा, अमेरिका की यात्रा पर गईं तो रिचर्ड निक्सन ने उन्हें अपने आफिस से बाहर इंत जार कराया था, मुलाकात के वक्त अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने धमकीभरे अंदाज़ में कहा था,”अगर भारत ने पाक के मामलों में दखल दिया, तो अमेरिका चुप नहीं बैठेगा,भारत को सबक सिखाया जाएगा,तब इंदिरा ने व्हाइट हाउस में रिचर्ड निक्सन की आंखों में आंखें डाल दृढ़ता से जवाब दिया..भारत,अमेरिका को मित्र मानता है,मालिकनहीं, भारत अपनी तकदीर खुद लिखने में सक्षम है, जानते हैं कि हालात के अनुसार किससे कैसे निपटना है !” साहसिक बातचीत का जिक्रअमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर ने अपनी आत्मकथा में किया, उन्होंने इंदिरा के आत्मविश्वास और दृढ़ता की सराहना की है!1971 की घटना आज भी भारतीय कूटनीतिक क्षमता आत्मसम्मान की प्रतीक मानी जाती है।याद दिलाती है,भारत किसी भी दबाव के आगे झुकने वाला देश नहीं है!71 की लड़ाई में भी अमेरिका ने आर्थिक और सामरिक मदद करते हुए युद्ध में पाक का साथ दिया युद्ध के दूसरे ही दिन भारत के हमले से हिले,पाक के राष्ट्रपति याह्या खान ने अमे रिकी राष्ट्रपति भवन कोएक आपातसंदेश भेजकर मदद मांगी थी,बाद में अमेरिका ने अपने 7वें बेड़े को बंगाल की खाड़ी में भेजने का फैसला किया था। निक्सन के धमकी भरे फोन पर इंदिरा ने कहा था “हिन्दु स्तान किसी से नहीं डरता, चाहे 7वाँ बेड़ा हो या 77 वाँ ”इसके बाद निक्सन ने चार बार फोन किया मगर इंदिरा गांधी ने बात करने से ही इंकार कर दिया था! जब अमेरिका ने सेना वापस लेने का दबाव बनाया तो इंदिरा ने दो टूक शब्दों में ही कहा था कि-कोई भी देश भारत को आदेश देने का दुस्साहस न करे! यूएसएस एंटरप्राइज नाम का वहबेड़ा परमाणु शक्ति से चलता था उसमें 7विध्वंसक,एक हेलि कॉप्टर वाहक यूएस एस ट्रिपोली और तेलवाहकपोत शामिल थे,उसकी ताकत का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि एक बार ईंधन भरने के बाद पूरी दुनिया का चक्कर लगा सकता था..अमेरिका के 7 वें बेड़े का मुकाबला करने, भारत के मित्र तब सोवियत संघ ने अपना एक बेड़ा भेजा था,यह अमेरिकी बेडे के आगे-पीछे ही चल रहा था और अमेरिकी बेड़े की किसी कार्रवाई का जवाब देने के लिए तत्पर था… लेकिन इसकी नौबत नहीं आई..पाक सेना के आत्म समर्पण केबाद,खिसियानी बिल्ली की भाँति अमेरिका का 7 वाँ बेड़ा खम्बा नोचने हेतु अमरीका लौट गया… करगिल युद्ध के दौरान भी तब के पीएम अटल बिहारी बाजपेयी को अमेरिका राष्ट्र पति क्लिटन ने पाक पीएम से बातचीत करने बुलाया था,अटलजी ने यह कहकर इंकार कर दिया था-ज़ब तक भारत की एक इंच जमीन पाक के कब्जे में है, बातचीत का सवाल ही नहीं उठता है,पर इस बार अमे रिका की सीधी भूमिका की चर्चा है,विश्वगुरु बनने का दावा अलग है.? युद्ध के दौरान पाक को अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ)से आर्थिक मदद रोकने भी हम दबाव नहीं बना पाए..?
छ्ग नक्सलियों से लगभग मुक्त,सबसे लम्बा,बड़ा अभियान सफल रहा……
करेगुट्टालू पहाड़ियों में सुरक्षा बलों को बड़ी काम याबी मिली है। 31 माओ वादी ढेर, 216 ठिकाने ध्वस्त किये गये,छग पुलिस -केंद्रीय बलों द्वारा संयुक्त रूप से 21अप्रैल से 11 मई 2025 तक चलाए गए 21 दिनों के नक्सल विरोधी अभियान में कुल 31 वर्दी धारी माओवादी मारे गए, 16 महिलाएं शामिल हैं। अभियान में माओवादियों के 216 ठिकानों,बंकरों को ध्वस्त किया गया,भारीमात्रा में हथियार-विस्फोटकजब्त की गई।करेगुट्टालू पहाड़ी, जो छग के बीजापुर और तेलंगाना के मुलुगू जिले की सीमा पर स्थित है, माओ वादी संगठन वर्षों से अपनी सुरक्षित शरणस्थली के रूप में उपयोग कर रहे थे। इस 60 किलोमीटर लंबे,अत्यंत दुर्गम क्षेत्र में पीएलजीए बटालियन की टेक्निकल यूनिट सहित लगभग 300- 350 माओवादी सक्रिय थे।यहां देसी हथियार,आईईडी और बीजीएल शेल तैयार किए जा रहे थे।अभियान के दौरान माओवादियों की 4 तकनीकी इकाइयों को नष्ट किया गया,जहाँ से 4 लेथ मशीनें, 450 नग आई ईडी, 818 बीजीएल शेल, 899 बंडलकार्डेक्स डेटो नेटर और भारी मात्रा में विस्फोटक सामग्री जब्त की गई राशन, दवाइयां, दैनिक उपयोग की वस्तुएं भी बरामद हुईं। 21दिनों तक चले अभियान में कुल 21 मुठभेड़ें हुईं।सीएम विष्णुदेव साय ने कहा कि बीजापुर की करेगुट्टालू की पहाड़ी पर हमारे जवानों ने जिस शौर्य,साहस का प्रद र्शन किया है,वह माओवाद पर निर्णायक प्रहार है।यह ऑपरेशन नहीं,बल्किभारत के तिरंगे की विजय यात्रा है। सभी सुरक्षाकर्मियों को हृदय से बधाई…। हम मार्च 2026 तक छत्तीसगढ़ को नक्सलवाद से पूर्णतः मुक्त करने में सफल होंगे।गौरत लब है कि 2025 के शुरु आती चार महीनों में राज्य में कुल 174 हार्डकोरमाओ वादियों के शव बरामदकिए गए हैं।बलों की मजबूत पकड़ के चलते माओवादी संगठन बिखर रहे हैं,छोटे -छोटे समूहों में विभाजित हो रहे है।निश्चित ही छ्ग के पुलिस मुखिया अरुणदेव गौतम भी बधाई के पात्र हैं, जिनके नेतृत्व में छ्गपुलिस ने रिकार्ड बनाया है।
और अब बस….
0 भारत-पाक युद्ध विराम के बीच भाजपा नेतृत्व द्वारा तिरंगा यात्रा निकालनाकौन सी राजनीति है…?
0 लगभग 80 करोड़ लोग भारत में सरकारी अनाज पर निर्भर हैं?आखिर भारत को कहां ले जाया जा रहा है?
0बांग्लादेश उदय के समय वहाँ के कुछ निवासियों को पखांजूर,माना बस्ती रायपुर में शरणार्थी केम्प बनाकर बसाया गया था।