-उच्च न्यायालय ने नंदकुमार साय और संत कुमार नेताम की याचिका की ख़ारिज
-छानबीन समिति की रिपोर्ट वापस लेना किसी भी रूप में ‘न्यायालय के साथ फ़्रॉड (धोखा)’ नहीं है- उच्च न्यायालय
रायपुर : इस पर अमित जोगी ने कहा है कि दस्तावेज सिद्ध करते हैं कि रमन सरकार ने 2013 में जोगी के विरूद्ध छानबीन समिति की रिपोर्ट केवल इसलिए वापस ली क्योंकि उनको सुनवाई का मौक़ा नहीं दिया गया था- उच्च न्यायालय
-‘सरकारी निर्णय को सरकार के परिवर्तन और सत्ता संभालने वाले किसी अन्य राजनैतिक पार्टी द्वारा आसानी से समाप्त नही किया जाना चाहिये’- उच्च न्यायालय
-हमें पूरा विश्वास है कि स्वर्गीय श्री अजीत प्रमोद कुमार जोगी जी के आदिवासी होने के गौरव और अस्मिता के ऊपर कभी भी कोई आँच नही आ सकती है- रेनु-अमित अजीत जोगी
JCCJ अध्यक्ष श्री अमित अजीत जोगी ने एक बयान में कहा कि राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष श्री नंद कुमार साय, श्री संत कुमार नेताम और भाजपा-कांग्रेस के कुछ नेताओं ने लगातार मेरे पिता जी स्वर्गीय अजीत जोगी जी पर आरोप लगाया है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह से साँठगाँठ करके 2013 विधान सभा चुनाव के ठीक पहले भाजपा सरकार ने उनके विरुद्ध छानबीन समिति की रिपोर्ट को वापस के लिया था। उन्होंने इसे ‘जनता और न्यायालय के ख़िलाफ़ फ़्रॉड’ (धोखा) करार करते हुए याचिका क्रमांक MCC 915/2014 दायर करके माननीय उच्च न्यायालय से निवेदन किया था कि इस रिपोर्ट को पुनर्स्थापित करे।
JCCJ प्रवक्ता एवं अधिवक्ता श्री भगवानु नायक ने जानकारी दी कि 15 जुलाई 2020 को माननीय उच्च न्यायालय ने उनकी इस याचिका को सिरे से खारिज कर दिया है। माननीय न्यायमूर्ति श्री राजेन्द्र चन्द्र सिंग सामंत ने 38 पन्नो के आदेश की कंडिका (16) में राज्य शासन के 18 सितंबर 2013 के लिखित प्रतिवेदन का उल्लेख किया है जिसमें शासन ने इस तथ्य को स्वीकार किया कि 22 एप्रिल 2013 और 22 जून 2013 की छानबिन समीति की रिर्पोट को शासन द्वारा वापस लेने का एकमात्र आधार समिति द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा माधुरी पाटिल केस के निर्देश क्रमांक (5) का परिपालन नहीं करना था। उक्त निर्देश के अनुसार स्व. श्री अजीत प्रमोद कुमार जोगी जी को छानबीन समिति के समक्ष अपना पक्ष रखने का अवसर देना अनिवार्य था जिसका पालन शासन के द्वारा नही किया गया था।
श्री नंद कुमार साय और श्री संत कुमार नेताम की उपरोक्त याचिका के समर्थन में सुनवाई के दौरान वर्तमान छत्तीसगढ़ शासन के द्वारा 11 अक्टूबर 2019 को लिखे एक पत्र को प्रस्तुत किया गया था जिसका उल्लेख उच्च न्यायालय के आदेश की कंडिका (14) में मिलता है।
माननीय उच्च न्यायालय ने इस पत्र को निराधार मानते हुए अपने आदेश की कंडिका (27) में सख्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि ”सरकारी निर्णय को सरकार के परिवर्तन और सत्ता संभालने वाले किसी अन्य राजनैतिक पार्टी द्वारा आसानी से समाप्त नही किया जाना चाहिये। सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस बात पर बल दिया है कि उत्तराधिकारी सरकारों को भी पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा लिए गये निणर्यो का सम्मान करना चाहिये।“
श्री भगवानु नायक ने कहा कि माननीय उच्च न्यायालय के इस आदेश ने एक बार फिर प्रमाणित कर दिया है कि पूर्ववर्ती रमन सरकार के द्वारा स्वर्गीय श्री अजीत जोगी जी के विरुद्ध छानबीन समीति की रिर्पोट वापस लेने का प्रमुख कारण माधुरी पाटिल प्रकरण में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश क्रमांक 5 तथा 2013 छत्तीसगढ़ जाति निर्धारण नियमों के विपरीत उनको बिना सुनवाई का अवसर दिये उनकी पीठ के पीछे मनगढ़ंत रिर्पोट तैयार करना था।
स्व. श्री अजीत प्रमोद कुमार जोगी के न्यायायिक उत्तराधिकारी उनकी धर्मपत्नी डॉ॰ रेणु जोगी एवं उनके सुपुत्र श्री अमित जोगी ने माननीय उच्च न्यायालय द्वारा कल पारित आदेश का स्वागत करते हुए कहा कि उन्हें पूरा विश्वास है कि स्वर्गीय श्री अजीत प्रमोद कुमार जोगी जी के आदिवासी होने के गौरव और अस्मिता के ऊपर कभी भी कोई आँच नही आ सकती है।