यहां फकीरों को नहीं मिली दो गज जमीन, आंगन से लेकर चूल्हे तक अपनों की कब्रें ही कब्रें!

इटावा के चकरनगर तहसील से चंद कदम की दूरी पर स्थित तकिया मजरा के मुस्लिम समुदाय के फकीरों की बस्ती का हर घर कब्रिस्तान बना आंगन से लेकर चूल्हे तक अपनों की कब्रें ही कब्रें हैं। प्रशासन और पंचायती राज व्यवस्था की उपेक्षा के शिकार फकीरों को अपनों के शव दफन करने के लिए दो गज जमीन मयस्सर नहीं हो रही है।

कब्रिस्तान की व्यवस्था इसलिए बनाई गई है ताकि कब्रों को पाक रखा जाए…

शहर ईदगाह के इमाम मौलाना कमालुद्दीन असरफी का कहना है कि हदीस में कब्रों को जिंदा इंसान की तरह ही माना गया है। कब्रिस्तान की व्यवस्था इसलिए बनाई गई है ताकि कब्रों को पाक रखा जाए और उनकी कद्र हो सके। लेकिन हालात के शिकार यहां के फकीर मजहबी पाबंदियां तोड़कर कब्रों के साथ गुजर-बसर करने को मजबूर हैं।

जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर चकरनगर कस्बे से ठीक सटे तकिया मजरा में मुस्लिम आबादी में करीब सौ घर फकीरों और दस परिवार मनुहारों के हैं। मनुहारों को प्रशासन ने कई साल पहले तहसील के पास कब्रिस्तान की जगह दी जो जातिय संघर्ष का कारण बन गई। मनुहारों ने फकीरों को यहां शव दफन करने से रोक दिया।

मजदूरी करके गुजर-बसर करने वाले फकीर विरोध करने के हालत में नहीं थे लिहाजा प्रशासन से गुहार लगाई। लेकिन प्रशासन ने इनकी नहीं सुनी और नेताओं ने इसे वोट बटोरने का मुद्दा बना लिया। अलग-अलग पार्टी के प्रतिनिधि सालों तक इन्हें कब्रिस्तान का आश्वासन देकर वोट लेते रहे।

आखिरकार फकीरों को उनकी फितरत समझ आई और अपनी आवाज को दिल में दबाकर हालात से समझौत कर लिया। 70 के दशक में यहां घर के भीतर लाशे दफनाने का सिलसिला शुरू हुआ था। आलम यह है कि हर घर में चूल्हे से लेकर आंगन तक पांच से सात कब्रें बनी हैं।

दीन के खिलाफ है घरों में कब्रों का होना…
शहर ईदगाह के इमाम मौलाना कमालुद्दीन असरफी का कहना है कि इस्लाम धर्म में कब्रों को पूर्वजों की रुह मानकर उन्हें जिंदा इंसान का ही दर्जा दिया गया है। हदीस में नबी ने कहा है कि कब्र को तकलीफ नहीं दे सकते। कब्रों के लिए जेहन में वहीं संजीदगी होनी चाहिए जो जिंदा इंसान के लिए होती है।

सब-ए-बारात में कब्रों पर पूर्वजों की रुहों के सुकून के लिए दुआ मांगी जाती है। तकिया के लोगों के पास ढंग की छत भी नहीं है। उनके घरों में बनी कब्रों को वह इज्जत नहीं मिल सकती जो होनी चाहिए। इसपर प्रशासन को गंभीरता से विचार करके जल्द ही कब्रिस्तान की व्यवस्था करनी चाहिए।

बाउंड्री पर करोड़ों खर्च, यहां जमीन नहीं मिली…
पिछली सपा सरकार में प्रदेश भर के कब्रिस्तानों की बाउंड्री बनाने पर करोड़ों रुपये खर्च हुए थे। इटावा नगर पालिका के चेयरमैन नौशाबा फुरकान का कहना है कि वर्ष 2014-15 में कब्रिस्तानों को चिंहित कर बाउंड्रीवाल बनाने के लिए कमेटी बनी थी।

उस वक्त तकिया में कब्रिस्तान की समस्या पर चर्चा हुई थी। इसके लिए जमीन की तलाश शुरु हुई जो थोड़े दिनों बाद ठप हो गई। यहां कब्रिस्तान की जमीन के लिए प्रशासन को कई बार प्रार्थना पत्र दिया गया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।

 

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