सुनो हवाओं , चिरागों को छोड़ दो तनहा…. जो जल रहे हैं उन्हें और क्या आजमाना….

शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )             

लखनवी तहजीब देश , दुनिया में चर्चित है पर यूपी की योगी सरकार में आखिर इसे तार तार कर ही दिया है…..। लखीमपुर/खीरी में 4किसान/4अन्य की हत्या के बाद जिस तरह शांतिभंग केआरोप में प्रियंका गांधी की गिरफ्तारी, छग के सी एम भूपेश बघेल को लखनऊ एयरपोर्ट पर बलात रोकने, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की गिरफ्तारी, पंजाब के मुख्य मंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को एयरपोर्ट में उतरने नही देने का मामला … बाद में राहुल, प्रियंका, भूपेश, चन्नी आदि को बमुश्किल लखीमपुर जाने की अनुमति देना आखिर क्या संकेत देता है….. इसके पहले हाथरस में एक लड़की से बलात्कार , उसके शव को पुलिस द्वारा बलात अंतिम संस्कार करना, पीड़ित लड़की के परिवार से मिलने जा रहे राहुल गांधी को धक्का देकर गिरा देना, प्रियंका की गिरफ्तारी जैसी घटनाएं क्या राजनीतिक मर्यादा, विपक्ष के सम्मान को ठेस पहुंचाने का प्रयास नही है….? लखनवी तहजीब में आम तौर पर ‘पहले आप, पहले आप’ की तहजीब के रूप में जाना जाता है। शायद इसलिए कि बात-बात में ‘देखिए, तकल्लुफ न कीजिए’ कहने वाले लखनऊ के नवाबों ने कभी ‘पहले आप, पहले आप’ के चक्कर में इतना तकल्लुफ किया कि उनकी ट्रेन छूट गई और वे प्लेटफार्म पर ही खड़े रह गए। इसीलिए आज भी कोई ज्यादा ‘पहले आप, पहले आप’ करने लगे तो भाई लोग उसे यह कहकर झिड़कने से नहीं चूकते कि यह लखनऊ नहीं है।।                        
लेकिन नजाकत, नफासत, शाइस्तगी और खूबसूरती से भरपूर लखनवी तहजीब इस ‘तकल्लुफ’ से आगे भी बहुत कुछ है, जो न सिर्फ चिराग से चिराग जलाने में यकीन रखती है बल्कि अपने खास सलीके से अंग्रेजों के इस स्वार्थी प्रचार को गलत भी ठहराती है कि उनके आने से पहले हिन्दुस्तान के लोग ‘बेहद असभ्य’थे। जो इसका मजाक उड़ाते हैं, उनसे भी यह उलझती नहीं, सिर्फ इतना अर्ज कर आगे बढ़ लेती है कि बाहरी आवरणों और रहन-सहन, अभिवादन, रस्म व रिवाज, शिष्टाचार, वेशभूषा, खानपान, मनोरंजन व मेलों-ठेलों जैसे लक्षणों में ही न देखकर उसकी परतों को पहचानें और आत्मा में छिपे सौन्दर्य की विलक्षणता पर मुग्ध हों।
यकीनन, उसके सौन्दर्य की यह विलक्षणता मेल-मिलाप में अपना सानी नहीं रखती। इसीलिए इसकी एक नाम गंगा-जमुनी संस्कृति भी है, जिसमें आर्यों की सांस्कृतिक विशेषताएं तो हैं ही, साथ ही अरब, ईरानी, तुर्क आदि संस्कृतियों की लय भी है। यह मेल-मिलाप अब इतना गहरा और पुराना पड़ चुका है कि यही पता नहीं चलता कि इस तहजीब का कौन-सा तत्व कहां से कितनी यात्रा करके यहां तक पहुंचा या इसने किस-किससे क्या सीखा और किसे-किसे क्या-क्या सिखाया?
आश्चर्य नहीं कि इस पर किसी भी तरह की कट्टरता या संकीर्णता की कोई छाया नहीं है। किसी समय जेएनयू के उर्दू विभाग के अध्यक्ष रहे मोहम्मद हसन की मानें तो ‘लखनवी तहजीब में प्रतीक किसी भी धर्म से सम्बद्ध हो, पूरी सभ्यता का अंग बन जाता और धर्म के बन्धन से मुक्त हो जाता है। इससे भी बड़ी बात यह है कि इस अनूठी तहजीब ने कभी किसी खास सभ्यता से संबद्धता नहीं चाही और कुछ शताब्दियों के ही काल खण्ड में उत्थान-पतन सब देख लेने के बावजूद विभिन्न सांस्कृतिक तत्वों के संगम और विभिन्न कलाओं के फानूस का अपना रूप बनाए रखा। आदाब, तसलीम, बन्दगी और कोरनिश जैसे कई गैर मजहबी अभिवादन भी ‘ईजाद’ किए ताकि कोई मजहब उनके साझेपन के आड़े न आ सके। विद्वानों की मानें तो यह साझा इस अर्थ में और सुखद है कि यहां मिलने वाली सभ्यताएं एक दूसरे से बुनियादी तौर पर बहुत निकट हैं। चूंकि ईरानी सभ्यता का मूल भी आर्य सभ्यता ही थी, इसलिए ईरानी सभ्यता का प्रभाव भारत पर पड़ा और यहां की आर्य सभ्यता से उसकी भेंट हुई, तो जो मिलाप हुआ, वह दो अजनबियों का नहीं बल्कि दो बिछड़े हुए रिश्तेदारों का मिलाप था। ऐसे रिश्तेदारों का, जो नस्ल की दृष्टि से एक थे और जिन्होंने अपनी ऐतिहासिक यात्रा में अनेक मूल्यवान वस्तुएं एकत्र की थीं। ये दोनों मिले तो एकरूप होकर रह गए और भारत की प्राचीन सभ्यता में मध्य एशिया की सभ्यताओं के सुन्दर तत्वों का समावेश हो गया। बहरहाल हाल फिलहाल की घटनाए लखनवी तहजीब के खिलाफ जाती तो दिख ही रही है…..!

किसानों को कुचलकर मारा जाना….

लखीमपुर खीरी में चार किसानों को गाड़ी से कुचल कर मारा गया है.चार किसानों की आयु क्रमशः19,20,35 तथा 60साल है. कुछ अन्य लोगों की भी मौत हुई है ।जिस पृष्ठभूमि में किसान मारे गए हैं वह सबके सामने है.केन्द्रीय गृहराज्यमन्त्री द्वारा 25 सितम्बर के भाषण में इसकी धमकी पहले ही दे दी गई थी। उन्होंने किसानों को निपटाने और इलाके से खदेड़ने की बात मंच से की थी।यह भी कहा था कि ” मैं सिर्फ मन्त्री और विधायक ही नहीं कुछ और भी हूं ” कई अन्य औपचारिक/ अनौपचारिक तरीकों से तराई के किसानों को आतंकवादी बताते हुए उनकी पहचान पर भी गन्दे खेल खेले जा रहे हैं.हरियाणा में भी स्वयं मुख्यमंत्री भट्टर ,भाजपा कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए किसानों पर हिंसा करने के लिये उकसावेपूर्ण बात कर रहे हैं।कहा गया है कि जेल जाओगे तो लीडर बनोगे.हिंसा और लीडरी का इस समय जो गठजोड़ चल रहा है वह यहां अपने आप ही रेखांकित हुआ है।एक राज्य का मुख्यमन्त्री और केन्द्रीय गृह राज्यमन्त्री सार्वजनिक सभा और कार्यकर्ता सभा के बीच धमकी, हिंसा और किसानों को उजाड़ने ,खदेड़ने की बात करें तो समझ लीजिए उनके ख़िलाफ़ राजसत्ता एकमत से षड्यंत्रकारी हिंसा के मंसूबे बांध चुकी है.बाकी पद्धति आप जानते हैं असली आरोपी का फ़रार होना, गोली चली ही नहीं, गाड़ी से किसी ने नहीं कुचला, कोई गाड़ी पलटी नहीं ,उसे किसानो ने जलाया, किसान पत्थर मार रहे थे, इसलिए लोग कुचले गए यानि किसान ही किसानों की मौत के ज़िम्मेदार हैं .उन पर ही मुकदमे बनाओ ,वे ही अपराधी हैं ।यह सब हम वर्षों से देख रहे हैं.अख़लाक़ को मारने वाले निर्दोष और उसकी मां पर ही मुकदमा दर्ज,हाथरस में बलात्कार हुआ ही नहीं और लड़की के घरवालों पर ही मुकदमा दर्ज किया गया….। कप्पन अभी तक जेल में हैं और अपराधी बाहर ….यह उल्टी गंगा बह रही है.यूपी में कोविड महामारी में आक्सीजन की कमी से कोई मरा ही नहीं और ख़बर छापने वालों पर छापा …..?इन हालात में जायज़ हक़ के लिये लड़ने वालों को,उनकी निर्दोषिता को ,उनकी पीड़ा को जानना, पढ़ना और समझना सीखना पड़ेगा.
यह समझिये तराई के किसान लीडर तेजेन्दर सिंह विर्क गम्भीर हाल में अस्पताल में क्यों हैं ? किसान अगर पत्थर चला रहे थे तो पुलिस ने लाठीचार्ज क्यों नहीं किया…?क्योंकि किसान पत्थर चला ही नहीं रहे थे …उत्पीड़ितों के ख़िलाफ़ साजिश और छल-कपट को समझिये लगभग पूरा मीडिया ड्रग पार्टी और आर्यन पर सनसनीखेज ख़ुलासों में क्यों लगा रहा ….?और गुजरात में पकड़ी गई हेरोइन और उसके पीछे के माफ़िया पर कारपोरेट मीडिया चुप क्यों है…?
सुप्रीम कोर्ट रास्ते बन्द करने पर किसानों को फटकारता है जबकि रास्ते दिल्ली पुलिस ने रोके हैं .मानवाधिकार आयोग भी किसानों को फटकारता है जबकि वे दस महीने से बेघरबारी का जीवन बिता रहे हैं मौसम और राज की मार झेल रहे हैं.अफ़वाह चल पड़ी है कि लखीमपुर में गृहराज्यमंत्री का लाडला था ही नहीं बाकी जो थे किसान ही थे वे ही अपराधी हैं…अपराध का सबूत गाड़ी जल चुकी है गाड़ी में मौजूद ” कुछ लोग” मारे जा चुके हैं . प्रशासन की इस सूचना पर कि गृहराज्यमंत्री ने रास्ता बदल लिया है किसान शान्तिपूर्ण प्रदर्शन ख़त्म करके लौटने के लिये वापिस मुड़ गए थे उस समय गोली चलाते हुए गाड़ियों से कुचलने के लिए किसानों उनके लीडर तेजेंदरसिंह विर्क सहित अन्य को निशाना बनाया गया.
तराई के किसानों को ख़ालिस्तानियों के दलाल बताने की मुहिम चालू है .अफ़वाह और झूठी कहानियां चल पड़ी हैं.ग़मगीन किसान शहीदों के घर जा रहे हैं, डी.सी. को न्याय के लिये ज्ञापन दे रहे हैं. किसान नेता किसानो को शान्तिमयी आन्दोलन चलाने की अपील कर रहे हैं .कुर्बानी और धैर्य की बात कर रहे हैं.
अनाज खाने वालों ,अनाज का हक़ अदा करो…. न्याय का पक्ष समझो……?

छग में सीएम सचिवालय में एक आदिवासी चेहरा…           

छग राज्य बने करीब 21साल हो रहे हैं, पहले सीएम बने अजीत जोगी,उन्हें आदिवासी मानकर बनाया गया था, पर बाद में उनकी जाति को लेकर विवाद होता रहा…! बाद में 15 साल डॉक्टर रमन सिंह को भाजपा सरकार का मुखिया बनाया गया, वे सामान्य वर्ग से थे। कांग्रेस की सरकार बनी तो पिछड़ा वर्ग से भूपेश बघेल सीएम बनाए गए हैं। वहीं सीएस अभिताभ जैन अल्पसंख्यक वर्ग से हैं। पुलिस विभाग के मुखिया डी एम अवस्थी तथा वन विभाग के मुखिया राकेश चतुर्वेदी ब्राह्मण समाज से हैं। ऐसे में सीएम बघेल ने सेवा निवृत आईएएस डी डी सिंह जैसे आदिवासी अफसर को अपने सचिवालय में सचिव बनाकर एक संदेश दिया है। पहली बार कोई एक आदिवासी चेहरा अब छग में प्रभावशाली भूमिका में सीएम सचिवालय में दिखाई देगा। इधर कोमल सिद्धार्थ परदेशी को सचिव जनसंपर्क बनाया है तो आईपीएस दीपांशु काबरा को कमिश्नर जनसंपर्क बनाकर छग में नया प्रयोग किया है काबरा ने कार्यभार भी सम्हाल लिया है।वैसे मप्र में एक आईपीएस आशुतोष सिंह पहले जनसंपर्क में पदस्थ हो चुके हैं ।वहीं बिलासपुर टाइम्स परिवार के सौमिल चौबे (पिता स्वर्गीय विनोद चौबे, आईपीएस) को डायरेक्टर जनसंपर्क बनाकर बड़ी जिम्मेदारी दी है। हालांकि जनसंपर्क विभाग के कुछ अधिकारी विभाग में प्रतिनियुक्ति, तथा जूनियर अधिकारी को संचालक बनाने के खिलाफ मोर्चा खोलकर मुख्य सचिव को आंदोलन की धमकी दे चुके हैं….!

और अब बस….
0राजनीतिक बयानबाजी का आरोप लगाकर आईजी विवेकानंद के खिलाफ दशरंगपुर पुलिस चौकी में भाजपा विधायक अजय चंद्राकर ओर शिवरतन शर्मा ने शिकायत की है….?
0एक जिले के कलेक्टर, एसपी को कभी भी हटाया जा सकता है…?
0कांग्रेस के विधायक बृहस्पति सिंह ने टीएस सिंहदेव के बादअपनी
ही सरकार के एक आदिवासी मंत्री के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया है…?
0 कुछ कांग्रेसी विधायक दिल्ली से बिना हाई कमान से मिले लौटने पर मायूस हैं…
0नए जिलों में कलेक्टर, एसपी बनने फिर कुछ अधिकारी सक्रिय हो गए हैं।

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