ज़ख्म पर शब्दों का मरहम लगाने आ गये… आग खुद पहले लगाई,अब बुझानेआ गये….

शंकर पांडे ( वरिष्ठ पत्रकार )                                                                                                            यह सवाल बड़ा मौजू है कि एक व्यक्ति जो हाड़-मांस का बना था, अपने जन्म के 150 साल बाद भी कभी भी असामयिक नही हुआ। जो लोग उसे मानते हैं और जो लोग उसके खिलाफ (?) खड़े हैं उन लोगों के लिये भी गांधी का होना जरूरी है। सहमति-असहमति विचारों की बुनियाद है। महात्मा गांधी को भारत का राष्ट्रपिता कहा जाता है। भारत के राष्ट्रपिता की 150 वीं जयंती मना रहा है इस मौके पर नया भारत, नया राष्ट्रपिता (!) को लेकर एक माहौल बनाया जा रहा है यह राष्ट्रपिता सहित उन्हें 6 जुलाई 1944 को राष्ट्रपिता के नाम से संबोधित करने वाले नेताजी सुभाषचंद्र बोस का गाहे-बगाहे हम अपमान तो नहीं कर रहे हैं…। कभी महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस की पत्नी अमृता फडणवीस ने देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को उनकी सालगिरह पर बधाई संदेश देते हुए पूर्व में अपने ट्विटर पर ‘फादर ऑफ अवर कंट्री’ अर्थात हमारे देश के पिता के रूप में संबोधित किया उसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई, उसके बाद अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ह्यूस्टन में आयोजित हाउडी मोदी रैली में नरेन्द्र मोदी को स्तुति सुमन बरसाते हुए कहा कि शायद वह भारत के पिता हैं? उस समय ‘फादर ऑफ इंडिया’ के संबोधन के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चुप्पी भी कम आश्चर्यजनक नहीं रही….?वे कह सकते थे कि बापू से उनकी तुलना उचित नहीं है…। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हैं और वे ही रहेंगे पर लगता है कि उन्हें भी विश्वास हो चला है कि लोगों ने सच ही उन्हें अपना पिता मान लिया है। पता नहीं लोग कैसे कैसे भ्रम पालने लगते हैं…. महात्मा गांधी को ऐसे ही लोगों ने राष्ट्रपिता नहीं मान लिया था। नोआखाली में जब नरसंहार चल रहा था तो वे बिना सुरक्षा के घूम रहे थे और कलकत्ता में दंगा रोकने अपनी जान को दांव पर लगा दिया था।     
खैर राष्ट्रपिता के ओहदे से महात्मा गांधी की बेदखली और उनके स्थान पर नरेन्द्र मोदी की ताजपोशी की शुरुवात 2017 में खादी ग्रामोद्योग आयोग के कैलेंडर और खेल डायरी से महात्मा गांधी को हटा दिया गया था। हरियाणा के कबीना मंत्री अनिल विज ने तो अंबाला की एकसभा में:कहा था कि खादी उत्पादों के साथ गांधी का नाम जुडऩे से उसकी बिक्री में गिरावट आई है वहीं हाल रूपयों का भी हुआ, जिस दिन गांधी रूपये की तस्वीर में अवतरित हुए तभी से उसका अवमूल्यन शुरू हो गया है, धीरे-धीरे नोट से भी उनको हटा दिया जाएगा….। मोदी, गांधी से बड़ा ब्रांड बन चुके हैं। बहरहाल कुछ वर्षों 5-6 साल के बीच जिस तरह महात्मा गांधी, नेहरू, इंदिरा गांधी, सरदार पटेल, भीम राव अम्बेडकर आदि को लेकर टीका टिप्पणी की जा रही है वह दुखद ही है।नेहरूजी के नाम में पंडित लगा है और गांधी जी के नाम में महात्मा। यह हिन्दुत्व के रथ को बढ़ाने में दो भारी अडंगा है। इसीलिए योजनाबद्ध तरीके से पंडित नेहरू को गालियां देने के लिए पंडितों को आगे किया गया और अब महात्मा गांधी का यशोबध करने के लिए महात्माओं को प्रोत्साहित किया जा रहा है।यदि सरकार की नीयत साफ है, राष्ट्रगौरव अवमानना निवारण अधिनियम 1971 में संशोधन कर संविधान और राष्ट्रध्वज की तरह राष्ट्रपिता के अपमान को भी इसकी परिधि में लाया जाए….कम से कम गांधीजी पर यह कानून लागू हो।

अमेरिका में शोध…     

छत्तीसगढ़ के लोकगीत और लोक नृत्य पर अमेरिका में शोध हो रहा है। छत्तीसगढ़ के लोक गीतों पर शोध करने कांकेर पहुंची एमरी यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर श्रीमती जोएस फ्लिकिंगर ने माना था कि भारत की संस्कृति और धर्म निरपेक्षता से सारा विश्व प्रभावित है। प्रो. फ्लिकिंगर ने यह भी बताया था कि छत्तीसगढ़ के लोकगीतों की पुस्तक एमरी युनिवर्सिटी की लायब्रेरी में है। वे छग की मितान परंपरा के बारे में भी पढ़ाती है। वे राजनांदगांव जिले की नांगलदाह निवासी पूर्व महिला सरपंच दीलिपबाई वर्मा से भोजली मितान परंपरा का निर्वाह कर रही है। छत्तीसगढ़ के भरथरी, बांसगीत, सुआनाच, रेला, चुटकी, धनकुल सहित ब्रज के फाग गीत, मध्यभारत के आल्हा को अमेरिका के अटलांटा स्थित एमरी यूनिवर्सिटी में कला संकाय के छात्र-छात्राओं को पढ़ाने के साथ इस पर शोध भी किया जा रहा है। ज्ञात रहे कि आदिवासी अंचल बस्तर शुरू से ही विश्व के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा है। बस्तर का घोटुल सांस्कृतिक केन्द्र की बात हो, आदिवासी परंपराएं हो, आदिवासियों के आंगादेव हो या आदिवासी नृत्य हो यह सभी विदेशों में जिज्ञासा का विषय बना हुआ है। ज्ञात रहे कि दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर तथा कांकेर सियासत के डॉ. आदित्य प्रताप देव ने भी आदिवासी परंपरा के आंगादेव पर अंग्रेजी में एक पुस्तक पूर्व में लिखी थी।

आईपीएस दीपांशु का रिकॉर्ड बना…    

छ्ग में कई जिलों में एसपी तथा कुछ रेजों में आई जी रह चुके आईपीएस दीपांशु काबरा आजकल भूपेश सरकार के कुछ पसंदीदा अफसरों की सूची में शामिल हो गये हैँ।उन्हें परिवहन के साथ ही आयुक्त जनसम्पर्क बनाना चर्चा में है क्योंकि इन पदों पर छ्ग में अभी तक वरिष्ठ आईएएस की ही नियुक्ति होती थी।हाल में ही दीपांशु को परिवहन आयुक्त बनाया गया है।जबकि अभी तक इस पद पर अतिरिक्त मुख्य सचिव या प्रमुख सचिव की पदस्थापना होती थी।
अब आईपीएस दीपांशु काबरा ट्रांसपोर्ट कमिश्नर बनकर रिकार्ड बना चुके हैँ, जनसम्पर्क कमिश्नर बनने का भी रिकार्ड इनके नाम है… मप्र में जरूर इस पद पर आईपीएस की नियुक्ति हुई थी पर इसके पीछे मुख्यमंत्री के करीबी रिश्तेदार होना ही प्रमुख कारण बताया जा रहा था।छ्ग में तो अब तक इन पदों पर वरिष्ठ आईएएस की नियुक्ति होती रही है…हाल ही में सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी आदेश के अनुसार दीपांशु काबरा,आयुक्त सह-संचालक जनसंपर्क तथा अतिरिक्त प्रभार पदेन मुख्य कार्यपालन अधिकारी छग संवाद एवं अपर परिवहन आयुक्त छत्तीसगढ़ को अपर परिवहन आयुक्त छत्तीसगढ़ के प्रभार से मुक्त करते हुए आयुक्त परिवहन का अतिरिक्त प्रभार सौपा गया है। शेष प्रभार यथावत रहेगा।

एडीजी सिंह का विवादों से पुराना नाता….

आय से अधिक संपत्ति, राजद्रोह जैसे मामलों में चर्चित तथा जुलाई 2021 से फरार निलंबित ए डी जी जीपी सिंह से पुलिस रिमांड पर पूछताछ की जा रही है, उनके पास से बरामद डायरी पर हालांकि अभी खुलासा नहीं हो सका है.. वहीं कुछ पेन ड्राइव के बारे में भी पूछताछ की जा रही है।सूत्र कहते हैं कि सिँह जाँच में सहयोग नहीं कर रहे हैँ….जीपी सिंह अलग-अलग मामलों में पुलिसिया कार्रवाई से बचने कोर्ट हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी उन्हें राहत देने से इनकार कर दिया था।उसके बाद उनकी गिरफ्तारी की गई है।
1994 बैच के आईपीएस
जीपी सिंह का विवादों से पुराना रिश्ता है। बस्तर एसपी रहने के दौरान उन्होंने 100 आदिवासियों को नक्सली बताकर रायपुर लेकर चले गए थे। इन्हें तत्कालीन सीएम डॉ रमन सिंह के सामने सरेंडर करवाकर वह गैलेंट्री अवॉर्ड पाना चाहते थे। रायपुर में पता चला कि ये सभी सामान्य आदिवासी हैं, इनमें कोई नक्सली नहीं है। इसे लेकर छत्तीसगढ़ में सरकार की काफी किरकिरी हुई थी। बाद में उन आदिवासियों को वापस भेज दिय गया।बस्तर में एसपी रहते हुए तत्कालीन आईजी एमडब्ल्यू अंसारी के बंगले पर छापेमारी की थी। स्थानीय जानकार बताते हैं कि दोनों अफसरों में बनती नहीं थी। इसे लेकर उन्होंने उन्होंने आईजी बंगले में पीएसओ के कमरे में छापेमारी की थी। यहां उस वक्त ढाई लाख रुपये भी बरामद किए थे। उसके बाद पीसी कर आईपीएस जीपी सिंह ने कहा कि यह रकम लूट की है। विवाद बढ़ा तो सरकार ने बस्तर आईजी एमडब्ल्यू अंसारी का वहां से तबादला कर दिया था।बिलासपुर एसपी राहुल शर्मा की खुदकुशी मामले में भी आईपीएस जीपी सिंह का नाम आया था। जीपी सिंह उस समय बिलासपुर के आईजी थी। आरोप लगे थे कि जीपी सिंह, एसपी राहुल शर्मा को परेशान करते थे। राहुल शर्मा जब छुट्टी पर गए थे, तब उनकी कुर्सी पर जूनियर अफसर को बैठा दिया था। कुछ दिनों बाद एसपी ने खुद को गोली मार ली थी। उनके सुसाइड नोट जिक्र मिला था। हालांकि इस मामले को पारिवारिक विवाद भी बताया गया था।इस मामले में सीबीआई ने हालांकि राज्य सरकार को डिपोर्टमेंट इन्कवारी करने कहा था पर नहीं की गई,….?आईपीएस जीपी सिंह छत्तीसगढ़ में कई जगहों पर आईजी भी रहे हैं। 2019 में वह छत्तीसगढ़ एंटी करप्शन ब्यूरो के चीफ थे। आरोप है कि एसीबी के चीफ रहते हुए जीपी सिंह ने छापेमारी का डर दिखाकर बड़े पैमाने पर वसूली की है….?उनके ठिकानो पर मारे गये छापे में अनुपातहीन संपत्तियों का खुलासा हुआ तो प्रदेश सरकार को अस्थिर करने सम्बंधित कुछ प्रमाण भी मिलने के कारण राजद्रोह का भी मामला बनाया गया है….।

और अब बस…

0एडीजी राजेश मिश्रा एसीबी में पदस्थापना चाहते हैँ… पर डीआईजी आरिफ शेख वहाँ मुखिया हैं….. वे सरकार की गुड बुक में हैं…राजेश को डायरेक्टर फोरेनसिक लेबोरेटरी बनाया गया है।
0छ्ग पर्यटन मण्डल में एमडी को बार बार क्यों बदल दिया जाता है…
0आईएएस 2014 बैच के कुछ लोग भी कलेक्टर बनने में सफल हो गये हैँ…
(14जनवरी 2020)

 

 

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