‘छ्ग के गाँधी’ ,सेनानी, समाज सुधारक,साहित्य कार-पं.सुन्दरलाल शर्मा..

       {किश्त 225}

भारत में राष्ट्रीय जागरण के अग्रदूत राजा राममोहन राय को माना जाता है ठीकउसी तरह छग में राष्ट्रीय जागरण के प्रणेता पं.सुन्दरलालशर्मा को माना जाता है। उन्होंने इस क्षेत्र में सामाजिक और राष्ट्रीय आंदोलन कासूत्रपात किया था। बहुमुखी प्रतिभा के धनी शर्माजी की ख्याति साहित्यकार मूर्तिकार, चित्र कार,शिक्षाविद,समाज सुधा रक,संघर्षशील नेता, प्रखर स्वतंत्रता सेनानी के रूप में है।शर्माजी का जन्म 21 दिसम्बर 1881 को राजिम के पास महानदी के तटवर्ती चमसुर (चंद्रसूर) में हुआ था। पिता पं. जियालाल तिवारी तब कांकेर रियासत में विधि सलाहकार थे। तब छग में शिक्षा का प्रचार- प्रसार कम था। सुंदरलाल शर्मा की विधिवत स्कूली शिक्षा केवल प्राथमिक स्तर तक ही हुई। पढ़ाई में रुचि से स्वाध्याय से ही संस्कृत, बांग्ला,मराठी,अंग्रेजी,उर्दू, उड़िया आदि कई भाषाएँ भी सीख लीं।शर्माजी ने किशोरावस्था में कविताएँ, लेख,नाटक आदि लिखना प्रारंभ कर दिया था।आशु कवि थे।नाट्य -लेखन, रंग मंच में उनकी गहरी रुचि थी।1898 में पं. विश्वनाथ दुबे के सहयोग से राजिम में कवि समाज की स्थापना की।यह पहली साहित्यिक संस्था थी जिसने छग में साहित्यिक चेतना जागृत की।पं. सुन्दर लाल शर्मा 1903 में कांग्रेस के सदस्य बने,1907 में सूरत (गुज रात)में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में जाने वाले छत्तीसगढ़ के युवाओं का नेतृत्व किया।सूरत से लौटते ही पं.शर्मा ने नारायणराव मेघावाले, कुछ अन्य सहयोगियों के साथ विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार,स्वदेशी वस्तुओं के प्रचार-प्रसार का आंदो लन शुरू किया। उनका मानना था कि जब तक देश के लोग स्वदेश में ही बनी वस्तुओं का उपयोग नहीं करेंगे,तब तक न तो गाँवों की गरीबी मिटेगी और न ही राष्ट्रीय भावनाओं का जाग रण होगा। इस हेतु पं. शर्मा ने जमीन-जायदाद बेच कर राजिम,धमतरी,रायपुर में स्वदेशी वस्तुओं की कई दुकानें खोलीं,लगातार घाटा होने पर भी वर्षों चलाया।अगस्त1920 में बाबू छोटे लाल श्रीवास्तव के नेतृत्व में कण्डेल में नहर सत्याग्रह आरंभ हुआ। भारत का यह प्रथम सत्याग्रह आंदोलन था जिसे स्वयं किसानों ने संगठित होकर चलाया था, इस समय पं. सुन्दर लाल शर्मा के प्रयासों से 20दिस म्बर1920 को महात्मा गांधी का पहली बार छग आये थे, वे हिन्दू- मुस्लिम एकता के पक्षधर थे,1925 में धमतरी में हिन्दू-मुस्लिम दंगा हुआ।दोनों पक्षों में सम झौता कर इसे शांत किया। 26 जनवरी 1930 का दिन पूरे देश में स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया गया। धम तरी में विराट आयोजन कराने का श्रेय शर्माजी को है।1930 में जंगल सत्या ग्रह का नेतृत्व करने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया,राजद्रोह अभियोगलगा कर दो वर्षों का कठोरकारा वास दिया गया।1931 में गांधी- इरविन समझौते के कारण सुन्दर लाल को जेल से मुक्त कर दिया गया। स्व तंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी के कारण उन्हें कई बार जेल यात्राएँ करनी पड़ीं तथा ब्रिटिश सरकार के जुल्म का शिकार होना पड़ा।गाँवों से अज्ञानता,अंध विश्वास,कुरीतियाँ मिटाने शर्मा,शिक्षा के प्रचार-प्रसार को जरुरी समझतेथे,राजिम में एक संस्कृत पाठशाला, एक वाचनालय स्थापित किया था। रायपुर बाह्मण पारा में ‘बाल समाज पुस्त कालय’ की स्थापना का श्रेय भी उन्हें ही दिया जाता है।पं.शर्मा की स्पष्ट मान्यता थी दलितों कोभी समाज में सवर्णों की तरह राजनैतिक सामाजिक तथा धार्मिक अधिकार हैं। वे दलितों को समाज में बराबरी का दर्जा देने के लिए सतत संघर्ष शील थे।अस्पृश्यता को वे भारत की गुलामी, हिन्दू समाज के पतन का प्रमुख कारण मानते थे। उन्होंने दलितों के उत्थान, संगठन के लिए गाँव-गाँव घूमकर हीन भावना दूर की। उनसे यज्ञ करवाया, उन्हें जनेऊ पहनाकर समाज में सवर्णों की बराबरी का दर्जा प्रदान किया।जनेऊ पहनाते समय उनसे प्रतिज्ञा करा ली जाती थी कि मादक द्रव्य,माँसका सेवन नहीं करेंगे।छ्ग में अछूतोद्धार के क्षेत्र में किए गए उनके उल्लेखनीय कार्य से ‘छत्तीसगढ़ का गांधी’भी कहा जाता है।महात्मा गांधी का जब दूसरी बार छत्तीस गढ़ आगमन हुआ, उन्होंने पं. सुन्दरलाल शर्मा के द्वारा किये गये कार्यों को देखकर कहा था- ‘‘सुन्दरलालजी तो हरिजनोद्धार के कार्य में मेरे भी गुरु निकले। समाज के सुधार का उनका यह प्रयास प्रशंसनीय एवं अभिनंदनीय है।शर्माजी साहित्यकार भी थे। उन्होंने छत्तीसगढ़ीबोली को भाषा का रूप दिलाने अथक प्रयास किया, स्वयं हिन्दी, छत्तीसगढ़ी में कई ग्रंथों की रचना की। इनमें प्रह्लाद चरित्र,करुणापचीसी प्रलाप पदावली,श्रीरघुराज गुणकीर्तन, ध्रुव चरित्र,छत्ती सगढ़ी दानलीला प्रमुख हैं । उनकी लिखी छत्तीसगढ़ी दानलीला तो इतनी लोक प्रिय हुई कि आज भी लोग गाँव-गाँव में उसे बड़े शौक से गाते हैं। यह छत्तीसगढ़ी का प्रथम प्रबंध काव्य है। कविताओं में ‘सुन्दरकवि’ उपनाम का उपयोग करते थे।पं. सुन्दर लाल शर्मा एक अच्छे चित्रकार, मूर्तिकार थे।प्राकृतिक दृश्यों का सुंदर चित्रांकन करते थे। वे कृषि कार्य में भी अपने विचारों के अनुकूल वैज्ञा निक एवं नवीन पद्धति का उपयोग करते थे। जीवन के अंतिम वर्षों में वे पद की लालसा से दूर अपने गाँव में कृषि कार्य में संलग्न रहे। 28 दिसम्बर 1940 को उनका निधन हो गया। हम उन्हें छत्तीसगढ़ के गांधी के रूप में हमेशा याद करते रहेंगे।

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