(किश्त207)
माँ महामाया की नगरी रतन पुर देवी मंदिर,कालभैरव , रामटेकरी के साथ प्राचीन हनुमान मंदिर के लिये तो चर्चित है।इसे शिव-शक्ति की नगरी भी कहते हैं। यहां प्राचीन किलों के पूरावशेष भी कभी राजधानी रहे रतन पुर के पुरा वैभव का परि चायक है।रतनपुर (बिलास पुर) “गजकिला” कल्चुरी राजाओं की देन ही हैं। स्था पत्यकला का बेजोड़ नमूना छत्तीसगढ़ में राज वंश की इतिहास की गवाही देता है।रतनपुर को शिव- शक्ति की नगरी के तौर पर भी जाना जाता है। ऐतिहासिक स्था पत्य कला की सुंदरता भी देखने मिलती है कई महल व प्राचीन मंदिर यहां के वैभव बढ़ाते हैं।गजकिले का निर्माण 10वीं से 12वीं सदी में कल्चुरी राजा ओं ने कराया था। कल्चुरीकालीन मूर्तियां,अप्सरा, गज, रावण का अपने सिर को काटकर शिव में अर्पित करती भी प्रतिमा है।पराक्रमी गोपाल राय की एक विशाल प्रतिमा अब भी है। जिसका धड़ तो यहां पर नहीं है। किले में भव्य कुंड,कई कुएं दिखाई देते हैं सभी को पाट भी दिया गया है। राजा- महा राजाओं के ठाठ-बाठ को दशार्ता किला है।यह किला रतनपुर की प्रमुख पहचान है ।
शिवलिंग पर रावण के
सिर चढ़ाने की कलाकृति
यह एक प्राचीन कलाकृति है जिसमे रावण एक एक करके अपने सभी सिरों को काटकर भगवान शिव को अर्पित कर रहा है,शिवलिंग और रावण के पूजन करने की स्थिति पर गौर कियाजा सकता है। क़िले के प्रवेश द्वार के दाहिने ओर नंदी के बगल में भित्ति में है। बहुत ही दुर्लभ है। रतनपुर के गजकिले के प्रवेश द्वार पर अपनी तपस्या के दौरान रावण के अपने शीश चढ़ाने की प्रतिमा बनी हुई है।शिव लिंग पर रावण के 5-6 सिर काटकर रखे दिख रहे हैं। कहा जाता है कि रावण ने भगवान शंकर के लियेकिये गये यज्ञ में अपने सिर की आहुति दे दी थी।