अगर जनता लंबे समय तक आपको नेतृत्व का अवसर देती है तो विनम्रता स्वतः ही साथ आ जाती है ,मगर सत्ता सर पर सवार हो जाए तो अहंकार साथ आता है ।
प्रसंग है पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह जी का टेम व सुठालिया परियोजना के डूब प्रभावितों के लिए जनहित में मुलाकात का समय माँगना और वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान जी का इनकार करना ।
दो प्रसंगों का ज़िक्र यहाँ कर रहा हूँ —
1) कमलनाथ जी मुख्यमंत्री थे तब शिवराज जी अक्सर जनहित के संदर्भो में मिलने आते थे। तब मैंने कमलनाथ जी से कहा कि बेवजह विपक्ष को प्रचार मिलता है, आप स्वयं तत्परता से सभी जनहित के विषयों का संज्ञान लेते तो हैं, पूर्व मुख्यमंत्री जी से मिलने की आवश्यकता क्या है? तब उन्होंने कहा कि जब वृक्ष पर फल लगता है तो वो स्वतः ही झुक जाता है। उन्होंने कहा,”सरकार की गाड़ी के दो पहिए होते हैं, पक्ष और विपक्ष , दोनों समानांतर होते हैं मगर लक्ष्य एक ही होता है, जनहित ।”
कम शब्दों में उन्होंने प्रजातंत्र का बड़ा पाठ पढ़ा दिया ।
2) दिग्विजयसिंह जी मुख्यमंत्री थे तब हम छात्र संगठन में काम करते थे । एक बार नर्मदा आंदोलन की प्रणेता मेधा पाटकर जी हज़ारों डूब प्रभावित समर्थकों के साथ मुख्यमंत्री निवास पर धरना देने भोपालआईं ।ये ख़बर जब दिग्विजयसिंह जी को लगी तो उन्होंने सबसे पहले कहा कि इतनी संख्या में आन्दोलनकारी सुदूर निमाड़ क्षेत्र से आए हैं ,सबसे पहले सबके भोजन का प्रबंध किया जाए और विनम्रता पूर्वक संदेश भिजवाया कि मैं स्वयं आप लोगों से मिलने के लिए आना चाहता हूँ ,आप समय दीजिए ।
अर्जुनसिंहजी ,सुंदरलाल पटवा जी , दिग्विजयसिंह जी के कार्यकाल के संदर्भ में जब भी सुना और कमलनाथ जी के कार्यकाल को नज़दीक से देखा ,हमेशा प्रजातंत्रीय परिपक्वता का पाठ पढ़ने को मिला ।
शिवराज सिंह जी, सत्ता खजूर के पेड़ की तरह नहीं होनी चाहिए जिसमे फल भी दूर लगे हों और पंथी को छाया भी न हो । आज दो पूर्व मुख्यमंत्रियों का आपके निवास के बाहर धरना देने का दृश्य प्रजातंत्रीय परंपराओं के अनुरूप नहीं था ।
शिवराजसिंह जी ,आपको अधिक विनम्रता प्रदर्शित करनी चाहिए , आपसे ऐसे व्यवहार की अपेक्षा नहीं है ।
अभय दुबे
प्रवक्ता काँग्रेस ( ये उनके अपने विचार हैं )