कलेक्टर बँगले से छ्ग के सीएम हॉउस का करीब एक शतक सालों का सफऱ…

 {किश्त 128}   

छत्तीसगढ़ में कलेक्टर बंगला का इतिहास करीब शतक से अधिक पुराना है,पहले वहाँ कलेक्टर रहा करते थे,पर छ्ग राज्यबनने के बाद वह सीएम हॉउस बन गया है,अजीत जोगी, डॉ रमन सिंह,भूपेश बघेल के बाद अब वह विष्णुदेव साय का आशियाना है,जान कारों की मानें, आईसीएस सीडी देशमुख की पहली पदस्थापना 1910- 20 के बीच रायपुर में हुई थी। वे कलेक्टर नहीं, ईएसी यानी डिप्टी कलेक्टर थे। जिला धीश बंगले पर वे जाते ही होंगे।आगे चल कर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पहले भारतीय गवर्नर बने। फिर नेहरू सरकार में वित्तमंत्री रहे। उन्होंने रायपुर में रहते यूनियन क्लब की स्थापना की थी, छत्तीसगढ़ क्लब में सिर्फ अंग्रेज ही जा सकते थे। बाद में यशवंत नारायण सुखतणकर 1929-30 में कलेक्टर थे।1921 आईसी एस में चयनित हुए थे। इसी बैच में सुभाष चन्द्र बोस भी चुने गये थे(हालांकि ज्वाइन करने से पहले ही इस्तीफा दे दिया था) आज़ाद भारत में कैबिनेट सेक्रेटरी के पद से रिटायर होकर उड़ीसा के राज्यपाल बने थे,दूसरी पंच वर्षीय योजना बनाने में भी उनकी भूमिका प्रमुख मानी जाती है। 1938 में रायपुर में कलेक्टर (तब डिप्टी कमिश्नर कहलाते थे) के पद पर डोनल्ड रत्नम भी पदस्थ थे। श्रीलंका (तब सिलोन) के तमिल मूल के ईसाई आईसीएस,अच्छे टेनिस खिलाड़ी थे,1924 के पेरिस ओलंपिक खेलों में ये भारतीय टेनिस टीम के सदस्य थे। साथी सैय्यद मोहम्मद हादी के साथ खेलते पुरुष डबल्स के क्वार्टर फ़ाइनल तक पहुंचे थे। सारंगढ़ के राजा नरेश चन्द्र सिंह भी बहुत अच्छे टेनिस खिलाड़ी थे, पदस्था पना केदौरानडोनल्ड रत्नम सारंगढ़ जाते थे। मुख्य मक सद टेनिस खेलना ही होता था।इसी काल में,कुछआगे- पीछे,चन्दू लाल त्रिवेदी भी कलेक्टर रहे। वे सीपी एंड बरार के मुख्यसचिव भी बने।आज़ादी,विभाजन के बाद जब पूर्वी पंजाब का हिस्सा भारत को मिला तो वहां पहला राज्यपाल बना कर भेजा गया था।(पंजाब, हिमाचल और हरियाणा के इलाके बाद में विभाजित हुए थे) बाद में वे आंध्रप्रदेश के पहले राज्यपाल, योजना आयोग के डिप्टी चेयरमैन आदि भी बनाये गये। आर के पाटिल भी जिला धीश बनकर आये। महात्मा गांधी से प्रभावित होकर उन्होंने आईसीएस से इस्तीफा दे दिया,स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़े। सीपी एंड बरार के सीएम पंडित रविशंकर शुक्ल ने स्वतंत्र देश में मंत्रि मंडल में पाटिल को शामिल किया,1959-60 में सुशील चंद्र वर्मा भी जिलाधीश बनकर उसी बंगले में रहने आये थे, बाद में मप्र के मुख्य सचिव बने,रिटायर होकर राजनीति में उतरे, लोकसभा में तीन या चार बार भाजपा से ही भोपाल का प्रतिनिधित्व भी किया था, छ्ग राज्य बनने तक कई कलेक्टर, इसी बँगले में रहे थे। आजादी के पहले 4 अगस्त 1947 तक जेडी करावाला रहे तो 5 अगस्त 1947 से 7 मई1949 तक आरडी ब्योहार कलेक्टररहे, उसके बाद बीएन वर्मा, एस के श्रीवास्तव,एमपी दुबे, एमपी द्विवेदी,टीसीए श्री निवास वर्धन, टीसीआर मेमन,एसपी मित्रा,शांखधर सिंह,बलदेव सिंह,एससी वर्मा,आरपी कपूर कलेक्टर रहे।4 नवम्बर 1965 से20 दिसम्बर67तक डीजीभावे, 1जनवरी 68 से 27सितंबर 69 तक केसीएस आचार्य, व्हीएस त्रिपाठी,अरुण खेत्र पाल, फिर व्हीएस त्रिपाठी उनके बादआरएन वैध रहे, आपातकाल के दौरान 17 जुलाई 75 से 1जनवरी 78 तक रविन्द्र शर्मा पदस्थ रहे, बाद में एके श्रीवास्तव भी रहे।14 नवम्बर 1978 से 26 जून 81तक अजीत जोगी कलेक्टर रहे और उसी कलेक्टर बँगले में ही रहे जिसे सीएम बनने पर सीएम हाउस में तब्दील कर दिया।अजीत जोगी के बाद नजीब जंग कलेक्टर बने और 3 जुलाई 83 तक पद पर रहे।बाद में ये दिल्ली के उपराज्यपाल भी बने। रण वीर सिंह,एनपी तिवारी भी कलेक्टर बने। 6 फरवरी 87 को सुनील कुमार ने कार्य सम्हाला और 20 मार्च 88 तक इस पद पर रहे, बाद में छ्ग के मुख्य सचिव के पद से सेवानिवृत हुए। अशोक दास,एचके मीणा,अजय नाथ,डीआरएसचौधरी,आर पी श्रीवास्तव,देवराज सिंह विरदी, डीपी तिवारी भी कलेक्टर बने, वैसे छ्गराज्य की सुगबुगाहट से नवोदित राज्य बनने तक कलेक्टर का दायित्व एम के राऊत ने सम्हाला था,18 मार्च 19 98 से 29 जून 2000 तक इनका कार्यकाल रहा। ये आख़री कलेक्टर थे,कले क्टर बँगले में रहे, अजीत जोगी के सीएम पद की शपथ के कुछ दिनों बाद कलेक्टर बंगला ही सीएम हॉउस बन गया था।छ्ग बनने के बाद तो अभी तक कलेक्टर बंगला ही तय नहीं हो सका है…?

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