छत्तीसगढ़ में पहला दलबदल 12 विधायकों का…

{किश्त 39}

तरुण चटर्जी का 3पार्टियों से विधायक बनने का रिकार्ड

छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पहले सीएम अजीत जोगी ने भाजपा के 12 विधायकों का दिसम्बर 2001को पहला दलबदल कराया था….. वैसे ज़ब जोगी सीएम बने थे तो विधायक नहीं थे,उनके लिये भाजपा के मरवाही के विधायक रामदयाल उइके ने इस्तीफा देकर सीट रिक्त की थी।छत्तीसगढ़ राज्य बना तब अजीत जोगी ने भाजपा के 12 विधायकों को तोड़ दिया। इन बागियों ने छत्तीसगढ़ विकास पार्टी नाम की नई पार्टी बनाई और दूसरे ही दिन इस पार्टी का विलय कांग्रेस में कर दिया। राज्य बनने के बाद दलबदल की यह पहली घटना थी।इनमें विधायक तरुण चटर्जी,शक्राजीत नायक,डाॅ. हरिदास भारद्वाज,रानी रत्न माला,श्यामा ध्रुव,मदन सिंह डहरिया, डाॅ. सोहन लाल परेश बागबहरा,लोकेंद्र यादव,गंगूराम बघेल,प्रेम सिंह सिदार और विक्रम भगत शामिल थे। वैसे छत्तीसगढ़ का इतिहास रहा है कि दल बदलने वाले ज्यादातर नेता चुनाव हारकर हाशिए पर चले गए हैं। 2003 में भाजपा नेता नंदकुमार साय ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दलबदल कानून के तहत उन सभी 12 विधायकों को अयोग्य घोषित करने की मांग की थी। इसके पहले साय ने विधानसभा अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद शुक्ल को आवेदन दिया था। उन्होंने मांग खारिज कर दी थी। 12 दलबदलू विधायकों में 7 को अगले चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था तरुण चटर्जी:90 के दशक के सबसे मजबूत नेताओं में से एक तरुण चटर्जी बड़े नेताओं में शुमार थे। 1980 में कांग्रेस के टिकट पर ही उन्होंने पहली बार रायपुर ग्रामीण से जीत दर्ज की। 1999 तक वे इस सीट से लगातार विधायक रहे। इस दौरान वे कांग्रेस जनता दल और फिर भाजपा से यानि 3 पार्टियों की टिकट पर विधायक बनते रहे पर 2003 में राजेश मूणत से हारने के बाद दादा फिर कभी चुनाव मैदान में नहीं दिखे।श्यामा ध्रुव: कांकेर से भाजपा के टिकट पर 1998 में चुनाव जीते। 2003 में कांग्रेस के टिकट से चुनाव हारे। इन्हें भाजपा के अघन सिंह ठाकुर ने हराया। मदन डहरिया: 1998 में मस्तूरी से भाजपा विधायक चुने गए, फिर कांग्रेस में गए। 2003 और 2008 में वे कांग्रेस के टिकट से लड़े, लेकिन दोनों ही बार हार गए। गंगूराम बघेल: आरंग विधानसभा से 1993,1998 में भाजपा के टिकट से जीते।2003 में कांग्रेस के टिकट से चुनाव हार गये थे।प्रेम सिदार: लैलूंगा से 93,98 में भाजपा के टिकट से जीते। 2003 में कांग्रेस के टिकट से हार गये थे। लोकेन्द्र यादव: 1998 में भाजपा से बालोद में चुनाव जीता। कांग्रेस में आने के बाद 2003 में हार का सामना करना पड़ा। 2008 में फिर दल बदला और सपा के टिकट से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए।विक्रम भगत: 1984 में भाजपा के टिकट से जशपुर विधायक बने।वे यहां के लगातार चार बार विधायक रहे। जोगी शासनकाल में कांग्रेस में शामिल हुए। 2003 में कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़ा और 10 हजार वोटों से हार गये।शक्राजीत नायक: 1998 में भाजपा के टिकट से सरिया सीट से जीते। जोगी शासनकाल में सिंचाई मंत्री बने। 2008 में कांग्रेस के टिकट से चुनाव जीते। पर 2013 में हार गये।डाॅ. हरिदास भारद्वाज: 1998 से भटगांव से भाजपा के टिकट से जीते। 2008 में कांग्रेस से सरायपाली से जीते। 2013 में कांग्रेस के टिकट पर हार गए।रानी रत्नमाला: चंद्रपुर से 1998 में भाजपा से जीतीं। कांग्रेस में चली गईं। फिर चुनाव ही नहीं लड़ा। डाॅ. सोहनलाल: सामरी सीट से 1998 में भाजपा के टिकट से चुनाव जीता।कॉंग्रेस में आने के बाद इन्हें टिकट नहीं मिला। परेश बागबहरा: 1999 उपचुनाव में भाजपा के टिकट से विधायक चुने गए थे।दलबदल के आठ साल बाद यानी 2008 में कांग्रेस ने इन्हें खल्लारी से चुनाव लड़ाया और इन्होंने पार्टी को जीत दिलाई,लेकिन अगला चुनाव नहीं जीत पाए। इसके बाद बागबाहरा जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ में चले गये थे।

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