{किश्त 271}



मैकाल पहाडिय़ों के अंचल में बसे तुमान गांव केकिनारे ऐतिहासिक किला कभी कल्चुरीवंश के शासकों की सत्ताका प्रतीक हुआ करता था।इसी किले से दूर-दूर तक फैली कल्चुरी सत्ता को नियंत्रित किया जाता था स्थापत्य कला के बेजोड़े नमूने को वक्त के थपेड़ों ने जर्जर हालात में पहुंचादिया है। इसी किले से तुमान को छत्तीसगढ़ की पहली राज धानीका खिताब हासिल हैं। कल्चुरी वंश का यह किला दुर्गम पहाडिय़ों पर होने से दुश्मन का काल बना रहा।लेकिन जब तुमान से हटा कर रतनपुर में राजधानी बनी तो पुरानी राजधानी तुमान वैभवहीन हो गयी। नई राजधानी बसाने केपीछे एक ऐसी जनश्रुति है, मां महामाया में आस्था-विश्वास बढ़ाती है,त्रिपुरी के कल्चुरी राजा पोकल प्रथम के पुत्र शंकरगढ़ा द्वितीय ने क्षेत्र को जीतकर दक्षिण कोशल की राजधानी तुमान बनायी राजवंश ने नाम कमाया। यहां के राजा देवी उपासक थे,धार्मिक प्रवृत्ति के थे।इसलिये अपने किले में ही भव्य मंदिर का निर्माण भी कराया था।रत्नराज प्रथम ने 1045 में यहां की गद्दी संभाली, बड़ी संख्या में मंदिर बनवाये। लगभग एक हजार साल बीत जाने के बावजूद इस मंदिर की स्था पत्य कला उत्कृष्टता केलिए विख्यात है। प्राचीनता और महत्ता को देख मंदिर- किले के संरक्षण भारतीय पुरा तत्व सर्वेेक्षण को मिला हुआ है लेकिन अपेक्षित संरक्षण, सुधार की जरूरत है। वर्तमान में तुमान कोरबा जिले की कट घोरा तहसील में स्थित है।10 वीँ शताब्दी का सबसे छोटा प्राचीन शिवलिंग भी स्थापित है। ‘छत्तीसगढ़ में कलचुरी राजवंश की प्रथमराजधानी रही है’ ‘तुमान’ ! इसी स्थान से सत्ता को प्रारंभ कर सबसे लंबी अवधि तक कलचुरियोँ ने छग में राज किया बढाया साथ कई विशाल मंदिर का निर्माण कराया था जो कलचुरियोँ के प्रभाव, काल की साक्षी है| तुमान मंदिर 1015 से 1045 सालों के बीच में निर्माण कलचुरी राजवंश के राजा पृथ्वी देव ने करवाया था। इस प्राचीन मंदिर के उत्खनन से बहुत से पुरा तात्विक अवशेष पाए जाते रहे हैं,यह एक विशाल परि सर में बना मंदिर है यह छग के महत्वपूर्ण स्मारकों में से एक माना जाता है।जंगली, और ग्रामीण क्षेत्र में होने से इसकी देखरेख ग्रामीणों के भरोसे ही है जबकि इसकी देखरेख और सुरक्षा राज्य स्तर पर होनी चाहिये, वर्त मान में राज्य पुरातत्व संर क्षण के आधीन स्थलतुमान शिव मंदिर बिलासपुर के कटघोरा-पेंड्रा रोड राष्ट्रीय राज मार्ग पर स्थित है।यह मंदिर पत्थरों को उकेर कर बनाया गया है, छत्तीसगढ़ की एक हजार साल पुरानी महान ऐतिहासिक विरासत को दर्शाता है। कलचुरी राजाओं द्वारा निर्मित मंदिरों में 8वीं सदी से 14 वीं सदी तक के मूर्तिकला के नमूने मिलते हैं। इनमें रतन पुर के कंठी दाऊद से प्राप्त खंड, रतन पुर किला में अवशिष्ट प्रवेश द्वार शामिल हैं। इन खंडों में एक पर पार्वती की प्रतिमा उत्कीर्णित है, यह रायपुर संग्रहालय में है।यहां दो शिवलिंग के साथ ब्रह्मा, विष्णु और बुध की भी स्मृति बनी हुई है, तुमान से हटा रतनपुर में राजधानी बसाई गई, तो पुरानी राज धानी वैभवहीन हो गयी। राजधानी बसाने के पीछे एक जनश्रुति है- त्रिपुरी के कलचुरी राजा पोकल प्रथम के पुत्र शंकर गढ़ा द्वितीय ने क्षेत्र को जीतकर दक्षिण कौशल की राजधानी तुमान में बनाई, अपने सामाजिक, जन हितैषी कार्यों के चलते यहां के राजवंश ने बहुत नाम कमाया। कोरबा ज़िले के ऐतिहासिक नगरी ग्राम पंचायत तुमान में स्थित है, जहां विश्व का सबसे प्राचीन छोटा शिवलिंग सदियों से विराजमान है। तुमान,कट घोरा से लगभग 20 किमी दूर है। मंदिर की कलाकृति लोगों को मंत्र मुग्ध कर देती है जिसे देखने के लिए दूर- दूर से लोग आते हैं। यह मंदिर ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है और इसके गर्भ गृह में शिवलिंग स्थापित है मंदिर के द्वार पर द्वार पालों के साथ गंगा- जमुना की मूर्तियां भी स्थापित हैंप्रमुख मंदिर के आसपास और भी कई छोटे-बड़े मंदिरों केअव शेष भी दिखाई देते हैं, कई छोटे शिव मंदिर शामिल हैं। मंदिर के अंदर का अंधेरा इतना अधिक है कि अंदर कुछ भी दिखाई नहीं देता है।इसलिये शिवलिंग की फोटो खींचना संभव नहीं हो पाता है।