सहकारिता के जनक, सेनानी, ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ से नगर पालिका तक… पंडित वामनराव लाखे…

 {किश्त 221}

छत्तीसगढ़ में सहकारिता के जनक मानेजाने वाले पं. वामन राव लाखे का जन्म 17 सितम्बर 1872 को रायपुर में हुआ था,पिताजी पं.बलीराम गोविन्दराव था। पहले अत्यंत गरीब थे,किंतु कठोर परिश्रम से उन्होंने धन अर्जित किया और कई गाँव खरीदे थे, वामनराव के जन्म के समय तक उनके परिवार की गणना समृद्ध घरानों में होने लगी। वामन राव ने मैट्रिक की पढ़ाई राय पुर में की।पं.माधवराव सप्रे उनके सहपाठी,अभिन्न मित्र थे।1898 में उन्होंने नागपुर के फिलिप कॉलेज से बीए की परीक्षा पास की।1900 में पं. माधवराव सप्रे ने ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ नामक मासिक पत्र का प्रकाशन किया। पं. वामनराव लाखे इसके प्रकाशक- स्वामी थे। यह छत्तीसगढ़ अंचल का पहला पत्र था। इस माध्यम से साहित्य, राष्ट्रीय जागरण का युग आरंभ हुआ।वामन राव लाखे 19 04 में कानून की पढ़ाई कर रायपुर में वकालत करने लगे। वका लत को जनसेवा का एक सशक्त माध्यम बनाया।वर्षों तक रायपुर के अधिवक्ता संघ के भी अध्यक्ष रहे। उनकी पत्नी जानकी बाई ने भी घरेलू कामकाज के साथ-साथ लाखेजी की समाज सेवा के कार्य में हमेशा साथ दिया। यही कारण है वे कई बार बूढ़ा पारा वार्ड से रायपुर नगर पालिका के सदस्य चुने गये । बाद में वामनराव लाखे 2 बार नगरपालिका अध्यक्ष निर्वाचित हुए।अध्यक्षीय कार्यकाल में लाखेजी घर से नगर पालिका कार्यालय तक पैदल ही आना-जाना करते थे,रास्ते में लोग उनसे अपनी निजी व सामाजिक समस्याओं को लेकर मिलते थे,उनकी बातें सुनते और समस्याओं के निराकरणहेतु उचित पहल भी करते ।क्षेत्र के गरीब किसानों को साहू कारों के चंगुल से मुक्त कर सहकारी सिद्धांतों केआधार पर उन्हें आर्थिक मददकरने के उद्देश्य से लाखेजी1913 में रायपुर में को-आपरेटिव सेण्ट्रल बैंक की स्थापना की।स्थापना से 1936 तक इसके अवैतनिक सचिव, 1937-1940 तक अध्यक्ष भी रहे। उन्हीं के प्रयासों से ही बैंक का अपना भवनबन सका।1915 में रायपुर में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक,श्रीमती एनीबीसेण्ट की प्रेरणा से होमरुल लीग की स्थापना की गई।लाखे इसके संस्थापकों में से थे।1915 में ही पं. सुन्दरलाल शर्मा के प्रयासों से विशाल किसान सम्मेलन का आयो जन किया गया था जिसकी अध्यक्षता वामनराव लाखे ने की थी। निर्धन किसानों के कल्याणनार्थ किए गए लाखेजी के कार्यों से प्रसन्न होकर तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ‘राय साहब’ की उपाधि दी थी,उन्होंने 1920 में गाँधी के आह्वान पर असहयोग आंदोलन में भाग लेते हुए लौटा दिया था।1918 में उनके क्षेत्र में एन्फ्लूएंजा की महामारी फैल गई।पं.लाखे ने बीमार लोगों की तन-मन-धन से सेवा की। निःस्वार्थ सेवा भाव के कारण ही लोगों ने ‘लोकप्रिय’ की उपाधि से विभूषित किया था।1920 के राष्ट्रीय कांग्रेस के ऐतिहा सिक नागपुर अधिवेशन में गाँधीजी ने असहयोग आंदो लन का प्रस्ताव रखा। इस अधिवेशन में पं. लाखे भी सम्मिलित हुए,अधिवेशन से लौट रायपुर में असहयोग आंदोलन के संचालन में सक्रिय हो गए।स्वदेशी तथा खादी का प्रचार किया।19 21 पं. माधवराव सप्रे ने ही राष्ट्रीय विद्यालय कीस्थापना की।लाखेजी मंत्री बने थे , रावणभाँठा में एक विशाल खादी प्रदर्शनी आयोजित की गई। वामनराव लाखे उस प्रदर्शनी के संयोजक थे।1922 में रायपुर जिला राजनीतिक परिषद के आयोजन में लाखे प्रमुख आयोजकों में से थे। इसी साल रायपुर जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष चुने गए।1930 में गाँधी द्वारा शुरु किए गये सविनय अवज्ञा आंदोलन का रायपुर में ही नेतृत्व वामनराव लाखे, प्यारेलाल सिंह, मौलाना अब्दुल रऊफ,महंत लक्ष्मी नारायण दास, शिवदास डागा ने किया। इन्हें ‘पाँच पाण्डव’ कहा जाता था। इनमें से भी लाखेजी को ‘युधिष्ठिर’ कहा जाता था। इससे स्पष्ट होता है कि उस समय उनकी गणना उच्च कोटि के नेताओं में होती थी।पं. लाखे को आरंग (रायपुर के समीप स्थित) में एक जनसभा में अंग्रेजी शासन के खिलाफ भाषण देने के कारण गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें एक साल की सजा तथा तीन हजार ₹ का जुर्माना सुनाया गया।1941के व्यक्तिगत सत्या ग्रह में भाग लेने के कारण उन्हें सिमगा से गिरफ्तार कर लिया गया तथा 4 माह के कारावास की सजा दी गई। पंडित लाखे ने 1945 में बलौदाबाजार में किसान को-आपरेटिव राइस मिल की स्थापना की। रायपुर में शिक्षा के विकास में भी उल्लेखनीय कार्य किया। उन्होंने एमव्हीएम स्कूल की स्थापना में महत्वपूर्ण योग दान दिया। उनकी मृत्यु के बाद इस स्कूल का नाम बदलकर वामन राव लाखे उच्चतर माध्यमिक शाला, रायपुर कर दिया गया। नगरपालिका परिषद के अध्यक्ष की हैसियत से नगर की कई शिक्षण संस्थाओं को सहयोग दिया। 15 अग स्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ। इस दिन रायपुर के मुख्य कार्यक्रम में पं. वामन राव लाखे ने ही झण्डारोहण किया था। 1948 में प्रांतीय सहकारी बैंक की बैठक में शामिल होने नागपुर गये और अस्वस्थ हो गये,यहीं उपचार के दौरान ही 21 अगस्त 1948 को उनका देहान्त हो गया। पं. वामन राव लाखे छत्तीसगढ़ के उन महान सपूतों में से एक हैं, जिनकी सेवाओं का अंचल सदैव ऋणी रहेगा।

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