{किश्त 148}
तिब्बती धर्मगुरु, नोबल शांति पुरस्कार विजेता दलाई लामा की कुछ वर्ष पूर्व छत्तीसगढ़ की यात्रा, सिरपुर के करीब सिंघना गुफा पहाड़ी पर स्थित नागा र्जुन गुफा में जाकर ध्यान लगाने से छत्तीसगढ़ चर्चा में रहा था। रसायन के महान जानकार नागार्जुन काछत्ती सगढ़ से बड़ा नाता है। कहा जाता था कि धातु से सोना बना सकते थे। रसरत्नाकर, महानग्रंथ के रचयिता तथा महायान पंथ के संस्थापक नागार्जुन इसी सिंघनागुफा में श्रीपुर (सिरपुर) प्रवासके दौरान साधना की थी।बोधि सत्व नागार्जुन,बौद्धधर्म की महायान शाखा के संस्था पक थे। वे सिरपुर (श्रीपुर) में रहे।छग में सातवाहन वंश की एक शाखा काशास न था। नागार्जुन, सातवाहन राजा में अच्छी मित्रता थी।नागार्जुन का जन्म सुंदरा भूति नदी के पास स्थित महाबालुकाग्राम में हुआ था। प्रसिद्ध साहित्यकार स्व.हरि ठाकुर ने पुस्तक ‘छत्तीसगढ़ गाथा’ में लिखा है कि सुंदराभूमि नदी को अब सोंढूर नदी कहते हैं। महाबारूका ग्राम आज का बारूका ग्राम है। कहाजाता है कि बोधिसत्व नागार्जुन ने श्रीपर्वत पर 12 वर्षों तक तपस्या की। ये पर्वत कोरा पुट जिले में है जो बस्तर से लगा क्षेत्र है।नागार्जुन बाद में ही नालंदा विश्व विद्यालय के कुलपति बने।रसायन, आयुर्वेद के नागार्जुन बड़े ही ज्ञाता थे। दलाई लामा के सिंघनगुफा में इतनी दिल चस्पी क्योंथी!कौन थे नागा र्जुन और उन का छत्तीसगढ़ से क्या संबंध था..? ‘ह्यूली’ लिखित ग्रंथ में व्हेनसांगकी जीवनी में छग को दक्षिण कोसल के नाम से संबोधित है,राहुल सांस्कृत्यायन के दर्शन दिग्दर्शन तथा जय चंद्र विद्यालंकार ने भारतीय इतिहास की रूपरेखा में नागार्जुन को दक्षिण कोसल का निवासी बतायाहै,भारत के प्राणाचार्य ग्रंथ के प्रणेता रत्नाकर शास्त्री ने नागार्जुन का जन्म छत्तीसगढ़ माना है।महामेघ सूत्र के तिब्बती संस्करण में भी नागार्जुन के जन्म के विषय में लिखा है कि भगवान बुद्ध के कई वर्ष पश्चात दक्षिण भारत में ऋशिला में सुंदराभूति नदी तट पर स्थित महाबालुका ग्राम में ही लिच्छिवी वंश में नागार्जुन का जन्म हुआथा, महामेघ सूत्र में भी ऋक्ष पर्वत को ही ऋशिला कहा है। साहित्यकार स्व.हरि ठाकुर का कहना था, कई पुराणों में महानदी को ऋण पर्वत से ही निकली नदी मानते हैं। सिहावा पर्वत के आसपास का क्षेत्र प्राचीन काल में ऋण प्रदेश के नाम से प्रसिद्ध रहा होगा। सुंदरा भूति नदी की पहचानसोंढूर नदी से हो सकती है,राजिम से कुछ दूर पहले पैरी नदी से मिलती है।धमतरी के ही पास बारूका नामक स्थान है जो महाबलुका का अप भ्रंश हो सकता है। पांडव वंशी शासक तीरथदेव का बलौदा में प्राप्त ताम्रपत्र में सुंदरिका मार्ग का उल्लेख मिला है।जिसका आशय सुंदरभूति नदीक्षेत्र के किसी मार्ग से हो सकता है,नेपाली ग्रंथ अम्नायाह के अनुसार नागार्जुन के पिता त्रिवि क्रम,माता का नाम सावित्री था।नागार्जुन के शैशवकाल में ही ज्योतिषियों ने भविष्य वाणी की थी कि बालक की अल्पायु में मृत्यु हो जायेगी, नागार्जुन के माता-पिता इस बात से चिंतित थे।नागार्जुन को कुछ बड़ा होने पर माता -पिता की चिंता का पता चला तो एक दिन चुपचाप घर से निकल गये। भटकते हुये नागार्जुन एक पर्वत शिखर पर पहुंचे वहां उन्हें बोधिसत्व खसपर्ण मिले और उन्हीं की सलाह पर नागार्जुन नालंदा विवि में अध्ययन करने पहुंचे।तब नालंदा विश्वविद्यालय के आचार्य वासुमित्र कुलपति थे।नागार्जुन ने आचार्य सरा ह से बौद्धदर्शन की शिक्षा ली,अमितायुष मंत्र से भी दीक्षित हुये।20 वर्ष की उम्र में ही बौद्धभिक्षुक नागार्जुन की गणना बड़े विद्वानों में होने लगी थी।